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करोड़ों खर्च, फिर भी नतीजा ‘शून्य’! पलामू टाइगर रिजर्व में बाघ विलुप्ति के कगार पर

Ranchi : झारखंड का गौरव रहा पलामू टाइगर रिजर्व (PTR) आज अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है. देश के सबसे पुराने टाइगर रिजर्व्स में शुमार यह अभयारण्य अब बाघों के लिए नाम भर का टाइगर रिजर्व बनकर रह गया है. 

 

1129 वर्ग किलोमीटर में फैले इस वन क्षेत्र में जहां 1973-74 में 50 बाघों की दहाड़ गूंजती थी, वहीं अब स्थिति यह है कि 2022 की गणना में सिर्फ एक बाघ दर्ज किया गया. 

 

वहीं, 2025 में 4 बाघों की मौजूदगी की संभावना जताई जा रही है. पलामू टाइगर रिजर्व की मौजूदा स्थिति झारखंड के वन प्रबंधन की विफलता की गवाही दे रही है

 

देश बढ़ा आगे, झारखंड फंसा पीछे

आजादी के बाद जब 1973 में देश के पहले नौ टाइगर रिजर्व बनाए गए थे, तब पलामू टाइगर रिजर्व झारखंड की पहचान के रूप में उभरा था. देश में अब 54 टाइगर रिजर्व हैं, और उनमें से ज्यादातर में बाघों की संख्या लगातार बढ़ रही है.

 

लेकिन पलामू की कहानी इसके ठीक उलट है यहां बाघों की संख्या हर दशक में घटती चली गई, और अब यह विलुप्ति के कगार पर है. देशभर में बाघों की संख्या 2006 में 1411 से बढ़कर 2022 में 3682 हो गई.

 

पलामू में कब कितने बाघ रहे

-1974: 50 बाघ
-1990: 45 बाघ
-2005: 38 बाघ
-2006: 17 बाघ
-2010: 6 बाघ
-2014: 3 बाघ
-2018: शून्य
-2022: 1 बाघ दर्ज
-2025: 4 बाघों की मौजूदगी की संभावना जताई जा रही है.

 

करोड़ों की ‘संरक्षण नीति’ धरातल पर फेल

बाघ संरक्षण के नाम पर हर साल करोड़ों रुपये बहाए जा रहे हैं, लेकिन नतीजा नकारात्मक है. 2018 से 2023 तक 277.70 करोड़ रुपये खर्च हुए और 2024-25 में 7 करोड़ से अधिक की राशि फिर खर्च की गई. इसके बावजूद बाघों की संख्या में कोई सुधार नहीं हुआ.

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