Ranchi : झारखंड केंद्रीय विश्वविद्यालय के शिक्षा विभाग तथा अर्थशास्त्र एवं विकास अध्ययन विभाग द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित “सामाजिक विज्ञानों में मात्रात्मक एवं गुणात्मक शोध विधियां” विषयक दो-सप्ताहिक आईसीएसएसआर–प्रायोजित क्षमता निर्माण कार्यक्रम (CBP) के दसवें दिन की शुरुआत प्रार्थना और ‘आज का विचार’ से हुई.
इसके बाद पाठ्यक्रम निदेशक प्रो. तपन कुमार बसंतिया और डॉ. संहिता सुचरिता ने दिन के विशेषज्ञ वक्ताओं का स्वागत करते हुए औपचारिक रूप से सत्रों की शुरुआत की.
डेटा विश्लेषण के गहन आयामों से परिचय
पहले और दूसरे शैक्षणिक सत्र का संचालन एक्सएलआरआई, जमशेदपुर के अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफेसर डॉ. पूर्णचंद्र पाधन ने किया. उनका व्याख्यान “मात्रात्मक शोध में डेटा विश्लेषण: पैरामीट्रिक और नॉन-पैरामीट्रिक सांख्यिकी की भूमिका” पर केंद्रित रहा.
उन्होंने शोध में सांख्यिकीय निर्णय लेने की मूलभूत अवधारणाओं को सरलता से समझाया, जिसमें मात्रात्मक–गुणात्मक चर, सतत–असतत डेटा और परिकल्पना परीक्षण की तार्किक प्रक्रिया शामिल थी.
डॉ. पाधन ने प्रतिभागियों को बताया कि किस परिस्थिति में पैरामीट्रिक परीक्षण उपयुक्त होते हैं और कब नॉन-पैरामीट्रिक विधियां अधिक विश्वसनीय साबित होती हैं. Sign Test, Wilcoxon Signed Rank Test, Mann–Whitney U Test तथा Kruskal–Wallis Test जैसे परीक्षणों की व्याख्या ने प्रतिभागियों की शोध–संबंधी समझ को और मजबूत किया.
उन्होंने डेटा की तैयारी से जुड़ी तकनीकें—जैसे नॉर्मलाइजेशन और स्टैंडर्डाइजेशन—भी विस्तार से समझाईं, जो उच्च-गुणवत्ता वाले सांख्यिकीय विश्लेषण की आधारशिला मानी जाती हैं.
कुलपति–प्रतिभागी संवाद: शोध, शिक्षा और समाज पर सार्थक चर्चा
दूसरे प्रमुख सत्र में झारखंड केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. क्षिति भूषण दास ने प्रतिभागियों से खुलकर संवाद किया. उन्होंने देशभर के विभिन्न राज्यों और विषयों से आए प्रतिभागियों की सराहना करते हुए कहा कि ऐसे कार्यक्रम शैक्षणिक उत्कृष्टता को बढ़ावा देते हैं.
उन्होंने प्रतिभागियों को प्रेरित करते हुए कहा कि आप यहां क्षमता निर्माण के लिए आए हैं. एक शिक्षक वही दीपक है जो स्वयं जलकर दूसरों के जीवन में प्रकाश फैलाता है.
प्रो. दास ने बताया कि वास्तविक शोध पीएच.डी. के बाद शुरू होता है, क्योंकि आज के विद्यार्थी तथ्य-जांच की संस्कृति रखते हैं और अधिक प्रश्न पूछते हैं. उन्होंने LOCF (Learning Outcome–Based Curriculum Framework) को रोजगारपरकता, नैतिकता और भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों को सुदृढ़ करने वाला बताया. भारतीय संचार परंपरा का उदाहरण देते हुए उन्होंने नारद मुनि को पहला संदेशवाहक और संजय को “लाइव कमेंटेटर” कहा.
उन्होंने सामाजिक विज्ञान शोध की आवश्यकता पर प्रश्न उठाते हुए बताया कि यह नीति-निर्माण और समाज की वास्तविक समस्याओं के समाधान के लिए अनिवार्य है. शोध–प्रकाशन की संख्या आधारित दौड़ पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा यदि कोई व्यक्ति साल में पंद्रह शोध-पत्र लिखता है, तो शोध कब करता है? उन्होंने प्रतिभागियों को अपने आसपास के समाज से शोध विषय चुनने और नए प्रश्नों पर काम करने के लिए प्रेरित किया.
कैंपस विजिट से मिली व्यावहारिक समझ
दिन के अंतिम चरण में प्रतिभागियों ने विश्वविद्यालय परिसर का भ्रमण किया. उन्होंने सामाजिक विज्ञान विभागों, शैक्षणिक भवनों, मास कॉम्युनिकेशन स्टूडियो और अन्य सुविधाओं का निरीक्षण किया.
इस दौरान शिक्षकों, कर्मचारियों और छात्रों के साथ अनौपचारिक संवाद ने उन्हें विश्वविद्यालय की कार्यप्रणाली और शोध गतिविधियों की व्यावहारिक समझ प्रदान की. कई प्रतिभागियों ने अपने शोध से संबंधित महत्वपूर्ण अवलोकन भी दर्ज किए.
दिन का समापन विशेषज्ञ वक्ताओं और आयोजकों के प्रति प्रतिभागियों के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ. कार्यक्रम का दसवां दिन शोध की गहराई, शिक्षण मूल्यों और सामाजिक समझ का एक समृद्ध मिश्रण साबित हुआ.
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