Mithilesh Kumar
Dhanbad : भारत की आजादी के लिए कुर्बान होने वाले दीवानों की जीवन की कहानियां भी अजीब हैं. ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ पूरा देश एक था. हर शहर, हर गांव से आजादी के दीवाने सड़कों पर उतर रहे थे. ऐसा ही एक दीवाना बिहार के मुंगेर जिले का महज 11 साल का बालक शिवशंकर ठाकुर था. जिसे दासता के हुलबे से आजादी के सूखे चने चबाना मंजूर था. वर्ष 1942 में यह बालक अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन से जुड़ा. अलग-अलग जगहों पर अंग्रेज अफसरों की घेराबंदी की. इससे अंग्रेजी शासक के माथे पर बल पड़ गए. शिवशंकर ठाकुर के कई साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया. यह देख वे भूमिगत हो गए और आंदोलन को धार देते रहे. अचानक अंग्रेजों को इसकी भनक लग गई और 23 जनवरी 1943 को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. पकड़े जाने के बाद उन्हें तारापुर जेल में डाल दिया गया. 11 महीने जेल में रहे, अंग्रेजों की यातनाएं सही. इसके बाद भी उनकी आजादी की दीवानगी कम नहीं हुई. जेल से बाहर आने के बाद अलग-अलग आंदोलन में सक्रिय रहे. शिवशंकर ठाकुर जी का धनबाद से गहरा लगाव था. मुंगेर धनबाद आए और यहीं से अपनी गतिविधयों को जारी रखा.
काम की तलाश में आए थे धनबाद
स्वतंत्रा सेनानी शिवशंकर ठाकुर की इकलौती संतान नीता कुमारी बताती हैं- पिता जी मूलतः बिहार के मुंगेर जिले के गोविंदपुर जोहड़ा गांव के रहने वाले थे. जब वे छठी कक्षा में थे, तभी से उन्हें अंग्रेजों की गुलामी खलने लगी थी. ग्रामीणों पर होता जुल्म देख वे अंग्रेजो के खिलाफ हो गए. देश की आजादी के लिए हर कदम उठाने का तैयार थे, इसके लिए चाहे जान ही क्यों न देनी पड़े. 15 अगस्त 1947 को देश की आजादी मिलने के बाद वे बड़े हुए. रोजगार की तलाश में 50 के दशक में धनबाद आए. पेयजल एवं स्वच्छता विभाग में नोकरी मिल गई, फिर यहीं के होकर रह गए. चिरागोड़ा के विनोद नगर में स्थायी आवास बनाया और 2 जनवरी 2016 को यहीं पर अंतिम सांस ली.
इंदिरा गांधी से पूछा- मुझे सम्मान क्यों दिया जा रहा
बातचीत के क्रम में नीता कुमारी ने अपने पिता से जुड़ा एक दिलचस्प वाकाया सुनाया. कहा कि पिताजी को 70 के दशक में स्वतंत्रता सेनानी सम्मान के लिए दिल्ली बुलाया गया था. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने हाथों से सम्मान सौंपा था. कार्यक्रम के दौरान ही पिताजी ने इंदिरा गांधी से पूछा कि आखिर उनको यह सम्मान क्यों दिया जा रहा है. वह तो अभी एक सामान्य व्यक्ति हैं. तब इंदिरा गांधी ने कहा था कि वह 1971 में रूस की संसद में गई थीं. वहां कुछ बुजुर्ग को आते देख राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री खड़े हो गए थे. पूछने पर रूसी प्रधानमंत्री ने बताया कि यह देश के स्वतंत्रता सेनानी हैं. इन्हें सम्मानित करने के लिए बुलाया गया है. इसके बाद मैंने भी अपने देश की आजादी के दीवानों को सम्मानित करने का चलन शुरू किया. आप भी इस सम्मान के पात्र हैं, इसीलिए आपको बुलाया है.
जिला प्रशासन से लेकर राष्ट्रपति तक ने किया था सम्मानित
स्वतंत्रा सेनानी शिवशंकर ठाकुर को इंदिरा गांधी के अलावा तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी, राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम, झारखंड के प्रथम राज्यपाल प्रभात कुमार तथा 15 अगस्त 2015 को धनबाद जिले के डीसी सम्मानित कर चुके थे. उन्हें भारत सरकार से रेल सफर के लिए फस्ट क्लास ऐसी का पास मिला था. हर महीने पेंशन भी मिलती थी. उनके निधन के बाद पांच माह तक उनकी पत्नी को भी ये सुविधाएं मिलं. वर्ष 2016 में ही उनकी पत्नी का भी निधन हो गया. आज उनका घर बेटी नीता कुमारी संभाल रही हैं.
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