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Exclusive: बिहार ने ऑरियन 900 एनएलजेडी 12 लाख में खरीदा, झारखंड पुलिस ने 17.50 लाख में

Ranchi: लगातार न्यूज पोर्टल पर 6 और 7 जून को आपने पढ़ा, किस तरह झारखंड पुलिस के अफसरों ने सुरक्षा उपकरण "एक्स-रे बैगेज और नाईट विजन कैमरा" दो गुणा से लेकर चार गुणा कीमत पर खरीदा. आज हम एनएलजेडी, यानी नन लीनियर जंक्शन डिटेक्टर की खरीद में हुई गड़बड़ी के बारे में बता रहे हैं. इस उपकरण की खासियत यह है कि यह छिपे हुए इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस के बारे में जानकारी देता है. चाहे वह डिवाइस चालू हो, बंद हो या ऑफ हो. यह डिवाइस एक खास एरिया में रेडियो फ्रीक्वेंसी भेज कर छुपे हुए इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस को पकड़ लेता है. 

 

एनएलजेडी की खरीद भी बाजार मूल्य से बहुत ज्यादा कीमत पर की गई है. झारखंड पुलिस ने ओरियन 900 मॉडल की एनएलजेडी डिवाइस खरीदी है. जिसकी कीमत के रुप में पुलिस मुख्यालय ने 17.50 लाख रुपये का भुगतान किया. लेकिन इसी मॉडल की एनएलजेडी की खरीद बिहार पुलिस ने मात्र 12 लाख में की थी.

 

6 और 7 जून को प्रकाशित खबर...

 

 

एनएलजेडी की खरीद के सिलसिले में विज्ञापन जारी होने के बाद टेंडर प्रक्रिया में कई कंपनियों ने हिस्सा लिया. तीन कंपनियां जेसी माईकल इन कॉर्प, लाईफ लाईन सिक्योरिटी एंड सिस्टम और एमआईएम टेकनीशियन क्रमशः एल-वन, एल-टू व एल-थ्री के रुप में सफल हुए. तीनों कंपनियों ने अपने अनुभव में जो दस्तावेज जमा किया, उसके मुताबिक एक ही मॉडल की एनएलजीडी डिवाइस सप्लाई करने की बात की. तीनों कंपनियों ने एक ही ओईएम दिया. तकनीकि समिति ने इस तथ्य पर ध्यान ही नहीं दिया और कंपनियों को सफल कर दिया.

 

दस्तावेज बताते हैं कि एमआईएम और अरिहंट ट्रेडिंग कंपनी के बीच सीधा संबंध है. एमआईएम कंपनी ने अपने अनुभव के सिलसिले में जो दस्तावेज दिए हैं, वह यूपी जेल प्रशासन को बेचे गए एनएलजेडी डिवाइस की है, जो असल में अरिहंत ट्रेडिंग कंपनी को मिला क्रयादेश ही है. एल-वन कंपनी जेसी माईकल के दस्तावेज भी अरिहंत ट्रेडिंग के लिए जारी दस्तावेज ही है. जिसके मुताबिक अरिहंत ट्रेडिंग ने बिहार पुलिस को मार्च 2022 में 7 एनएलजेडी बेचा था. जिसकी कुल कीमत 84 लाख थी. यानी एक की कीमत 7 लाख रुपये.

 

इसी तरह एल-टू कंपनी लाईफ लाईन सिक्योरिटी सिस्टम ने भी वर्ष 2021 में उत्तराखंड पुलिस को 55.67 लाख में 4 एनएलजेडी डिवाइस बेचे थे. यानी करीब 13 लाख रुपये प्रति एनएलजेडी. 

 

यहां यह सवाल उठता है कि महंगी मशीनों की खरीद के लिए बनी क्रय समिति और तकनीकि समिति के अधिकारी किन दस्तावेजों के आधार पर फैसला लेते रहे. यह जांच का विषय है कि अधिकारी तथ्यों से अनजान थे या तथ्यों को जानते हुए भी किसी दवाब में काम कर रहे थे.  या फिर एक खास अफसर का वरदहस्त प्राप्त वायरलेस दारोगा विकास राणा और प्रशाखा पदाधिकारी राहुल कुमार व प्रीतम ने तकनीकि समिति के सीनियर अफसरों को अंधेरे में रखने में सफल रहा.

 

विकास राणा को किसने पुलिस मुख्यालय से लेकर होमगार्ड तक के लिए खरीदे जाने वाले सुरक्षा उपकरणों की खरीद के लिए बनी तकनीकि समिति में शामिल किया गया. तत्कालीन आईजी प्रोविजन के कार्यकाल में विकास राणा की कहानी 5 साल पहले से शुरु होती है. इन बातों का खुलासा हम आगे करेंगे.

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