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Exclusive : हिमाचल व यूपी ने जिस एक्स-रे-बैगेज को 10-12 लाख में खरीदा, झारखंड पुलिस ने 24 लाख में

Saurav Singh

Ranchi: झारखंड पुलिस मुख्यालय के स्तर से की जा रही उपकरणों की खरीद में बड़े पैमाने पर लापरवाही व भ्रष्टाचार का मामला सामने आ रहा है. पिछले कई सालों से चल रहे इस घोटाले में तीन कनीय पदाधिकारियों के अलावा सीनियर आइपीएस अधिकारी संदेह के दायरे में हैं. पूरे मामले को लेकर आईजी रैंक के एक अधिकारी ने विसिल ब्लोअर एक्ट के तहत सीनियर अफसरों व सरकार से पूरे मामले की शिकायत की है. Lagatar Media ने उस शिकायत पत्र को पढ़ा है.

 

दस्तावेज के मुताबिक जिस एक्स-रे-बैगेज को हिमाचल पुलिस ने 10 लाख में खरीदा, यूपी पुलिस ने 12 लाख में खरीदा, उसी एक्स-रे-बैगेज को झारखंड पुलिस ने 24 लाख में खरीदा. यानी ढ़ाई व दोगुणी कीमत पर. मूल्य का इतना बड़ा अंतर सप्लायर कंपनी द्वारा ज्यादा मुनाफा कमाने व अफसरों के कमीशन के खेल से कहीं अधिक का नजर आता है. 

 

जानकारी के मुताबिक 5 एक्स-रे-बैगेज की खरीद के लिए पुलिस मुख्यालय ने GEM पोर्टल पर वर्ष 2022 में दो निविदा विज्ञापन जारी किया था. एक विज्ञापन के जरिये 3 और दूसरे के माध्यम से 2 एक्स-रे-बैगेज मशीन खरीदा गया. एल-वन कंपनी अरिहंत ट्रेडिंग कंपनी ने प्रति एक्स-रे-बैगेज मशीन 24 लाख रुपये की दर से 5 मशीनों की आपूर्ति की.

 

तथ्यों यह पता चलता है कि झारखंड पुलिस को सुरक्षा उपकरण सप्लाई करने वाली 4-5 कंपनियां हैं. इन कंपनियों ने आपस में कार्टेल बना लिया है. एक्स-रे-बैगेज मशीन की खरीद के लिए हुई निविदा में अरिहंत ट्रेडिंग कंपनी, लाईफ लाईन सिक्योरिटी एंड सिस्टम और एमआईएम टेक्निशियन क्रमशः एल-वन, एल-टू और एल-थ्री बनी थी. दस्तावेजों से यह पता चलता है कि इन तीनों कंपनियों ने एक ही तारीख को एक ही कंपनी से ओईएम प्रमाण पत्र हासिल किया था. 

 

एल-वन, एल-टू व एल-थ्री बनी तीनों कंपनियों ने विहांत टेक्नोलॉजी नामक कंपनी से 29 सितंबर 2022 को ओईएम प्रमाण पत्र प्राप्त किया था. कंपनी के किसी एस मुखर्जी नामक व्यक्ति ने पत्र संख्या 1, 2 व 3 के माध्यम से ओईएम प्रमाण पत्र जारी किया था. मतलब विहांत टेक्नोलॉजी ने जिन तीनों कंपनियों को प्रमाण पत्र दिया, वह तीनों निविदा में सफल हुई.

 

जो तीन कंपनियां एल-वन, एल-टू व एल थ्री हुईं, उनके मालिकों के नाम क्रमशः चिराग जैन, जितेंद्र कोचर और ताजुद्दीन अंसारी है. एक और कंपनी है, जिसका नाम जेसी माईकल इन कंपनी है. यह कंपनी पुलिस मुख्यालय द्वारा सुरक्षा उपकरणों की खरीद के टेंडर में शामिल होता रहा है. दस्तावेज बताते हैं कि जेसी माईकल प्राईवेट लिमिटेड नामक एक कंपनी है. इस कंपनी के 4 डायरेक्टर हैं. जिनके नाम जितेंद्र कोचर, चिराग जैन, रुपा अग्रवाल व मोहन जी है. इन तथ्यों से यह पता चलता है कि एल-वन कंपनी अरिहंत ट्रेडिंग व लाईफ लाईन सिक्योरिटी सिस्टम के बीच आपस में संबंध है. मतलब यह कि टेंडर में मिलीभगत वाली कंपनियां एल-वन, एल-टू व एल थ्री होते रहे हैं.

 

इतना ही नहीं दस्तावेजों से यह भी पता चलता है कि टेंडर में भाग लेने वाली कंपनियां अरिहंत ट्रेडिंग ने जो दस्तावेज उपलब्ध करायें, उसमें तथ्यों को छिपाया. दूसरे राज्यों की पुलिस के जो सप्लाई किया था, उसकी कीमत को छिपा लिया था. और अधिकारियों ने इस पर ध्यान ही नहीं दिया.

 

इससे एक बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या पुलिस मुख्यालय के अधिकारी बिना कुछ जांचे-परखे टेंडर फाईनल करते हैं. यह तक पता लगाने की कोशिश नहीं करते कि जो सामान खरीद रहे हैं, उसकी वास्तविक कीमत क्या है. क्या ओपेन टेंडर के नाम पर कंपनियों को मनमर्जी कमाई की छूट देना सही है. क्या कनीय पदाधिकारी इतने पावरफुल हो जा रहे हैं कि उनके सामने आइपीएस अधिकारी सिर्फ हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य हो जाते हैं.