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विश्व आदिवासी दिवस मनाए जाने के बाद भी आदिवासी समाज के अस्तित्व पर गहराता जा रहा है संकट

Ranchi : हर साल 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस मनाया जाएगा, लेकिन झारखंड में यह एक आयोजन बनकर रह गया है. आजाद भारत से लेकर झारखंड राज्य के 25 वर्षों तक आदिवासी समाज की उपेक्षा और शोषण की कहानी हर दिन दिखने को मिल रहा है.

 

इसी कड़ी में सामाजिक कार्यकर्ता एवं जय आदिवासी केंद्रीय परिषद के अध्यक्ष  निरंजना हेरेंज और केंद्रीय सरना समिति के अध्यक्ष बबलु मुंडा ने संवाददाता को बताते हुए कहा कि आज आदिवासी समाज के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है. इसको रोकने के लिए आदिवासी समाज को हर घर से अपने हक अधिकार के लिए निकलना होगा. 

 

झारखंड में विकास नहीं, विनाश झेल रहे हैं आदिवासी

 

बबलु मुंडा ने कहा कि बिहार से अलग राज्य नया झारखंड बना है. यहां के आदिवासियों के आर्थिक, शैक्षणिक और बुनियादी सुविधाएं मिलनी थी. इनकी जल, जंगल और जमीन को सुरक्षा प्रदान करना था. लेकिन विडंबना यह है कि झारखंड बनने के बाद जल, जंगल और जमीन तेजी से उनके हाथों से फिसलता जा रहा है. आदिवासियों की धार्मिक, सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहरों पर भू-माफियाओं और बाहरी ताकतों का कब्जा बढ़ता जा रहा है.

 


महिलाओं पर संकट, धर्मांतरण, धमकी और बहकावे की हो रही है साजिशें

 

आदिवासी बहन-बेटियों को भी अब सुरक्षित नहीं माना जा रहा है. धर्मांतरण, लालच, धमकी और बहकावे के जरिए उन्हें दूसरे समुदायों में ले जाया जा रहा है. इससे आदिवासी पहचान और उनके सम्मान पर असर पड़ रहा है.

 

राजनीति ने सिर्फ आदिवासी वोट लिया, हक नहीं दिया

 

पेसा कानून, सरना धर्म कोड, भूमि सुरक्षा जैसे मुद्दों पर केवल वादे किए गए. सत्ता में आने के बाद सभी राजनीतिक पार्टियां आदिवासी हितों को भूल जाती हैं. अंचल से थाना तक कोई उनकी बात नहीं सुनता है. उनका जल-जंगल-जमीन लूटा जा रहा है, और सत्ता मौन है.

 

स्थानीय कलाकारों की उपेक्षा, संस्कृति पर हमला

 

केद्रीय सरना समिति के अध्यक्ष बबलु मुंडा ने बताया कि विश्व आदिवासी दिवस पर बाहर से कलाकार बुलाए जा रहे हैं, जबकि स्थानीय आदिवासी कलाकारों और उनकी सांस्कृतिक विरासत को नजरअंदाज किया जा रहा है. भाषा और संस्कृति तभी बच सकती है जब आदिवासी समाज खुद इसके लिए खड़ा हो.

 


सरना कस्टम में है, लेकिन सिस्टम में नहीं

 

जय आदिवासी केंद्रीय परिषद के अध्यक्ष निरंजना हेरेंज ने कहा कि झारखंड अलग इसलिए हुआ था ताकि आदिवासी समाज को सांस्कृतिक और प्रशासनिक पहचान मिल सके. लेकिन सरना धर्म आज भी सिर्फ परंपरा में है, सरकारी व्यवस्था में इसे कोई स्थान नहीं दिया गया है. यही वजह है कि आदिवासी भाषा, संस्कृति और पहचान लगातार कमजोर हो रही है.

 


झारखंड में नहीं दिख रहा आदिवासी नेतृत्व

 

झारखंड में आदिवासी समाज का कोई ठोस नेतृत्व नहीं दिख रहा है. जो उनके विश्वास को जीत सके. निचले तबके के आदिवासियों की आवाज दब रही है. 40% खनिज संपदा रखने वाले राज्य में आदिवासी बेरोजगार और विस्थापन का दंश झेल रहा है. इनके हाथ से रोजगार के अवसर भी छीन लिए जा रहे हैं.

 

आदिवासी समाज को खुद से लड़ना होगा

 

निरंजना हेरेंज ने बताया कि आदिवासी समाज स्वयं जागरूक होकर अपने हक की लड़ाई लड़े. क्योंकि आदिवासी समाज पर लगातार शोषण, इनकी जमीन लूटी जा रही है. इनके साथ अत्याचार बढ़ते जा रहे हैं. आदिवासी समाज को अपने भीतर से नेतृत्व को आगे बढ़ाना होगा. आदिवासी समाज को एकता बनाए रखना होगा.

 

 

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