- भीख नहीं, हक चाहिए , लातेहार में उग्र हुआ वन पट्टा आंदोलन, प्रशासन को दी खुली चेतावनी!
Latehar : अबुआ दिशोम अभियान झारखंड सरकार ने वन अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत वनवासियों को भूमि पट्टे प्रदान करने के लिए शुरू किया था. इस अभियान का उद्देश्य उन लोगों को भूमि का अधिकार देना है जो वन क्षेत्रों में रहते हैं, वनों और उनके संसाधनों की रक्षा करते हैं.
अभियान की शुरुआत 6 नवंबर, 2023 किया गया था लेकिन इस दिशा में कुछ खास ठोस पहल नहीं हुई. इसको लेकर लातेहार के ग्रामीणों जिला प्रशासन के खिलाफ अनिश्चितकालीन धरना शुरू करने का ऐलान किया है.
सोमवार को जिला मुख्यालय आदिवासी और वनवासी समुदाय की ऐतिहासिक जुटान का गवाह बना. धरनास्थल पर 'अबुआ दिशोम, अबुआ राज' और 'हम भीख नहीं मांगने आए हैं, हम अपना हक मांगने आए हैं' जैसे नारे लगातार गूंजते रहे.
प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि जिला प्रशासन वन अधिकार कानून 2006 (Forest Rights Act) के प्रावधानों का खुलेआम उल्लंघन कर रहा है. उनका कहना है कि कानून में जिन अधिकारों को संविधान और संसद ने आदिवासी व वनवासी समुदायों को सौंपा है, उन्हें आज भी विभागीय तंत्र द्वारा छीनने का प्रयास हो रहा है.
वहीं, धरना दे रहे संगठनों ने आरोप लगाया कि वन विभाग ने उपग्रह चित्रों और तकनीकी रिपोर्टों का दुरुपयोग करके सैकड़ों दावे रद्द कर दिए, जिनमें 168 दावे 2022 से लंबित हैं. इन सभी दावों को ग्राम सभा, SDLC और DLC ने पहले ही मंजूरी दी थी, लेकिन DFO की गलत रिपोर्टिंग के कारण वन पट्टा जारी नहीं किया गया.
वन अधिकार कानून की अनदेखी का आरोप
धरने में उपस्थित प्रतिनिधियों ने कहा कि अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 की धारा 4(1) के अनुसार केंद्र सरकार ने 1 जनवरी 2008 से सभी वन अधिकार निहित कर दिए हैं. लेकिन लातेहार में आज भी प्रशासन उस अधिकार को मान्यता देने में टालमटोल कर रहा है.
लोगों ने आरोप लगाया कि ग्राम सभा, जो इस कानून में सबसे बड़ी इकाई है.उसके निर्णयों को SDLC (अनुमंडल स्तरीय समिति) और DLC (जिला स्तरीय समिति) द्वारा लगातार दरकिनार किया जा रहा है.
ग्राम सभा की भूमिका पर सवाल
आंदोलनकारियों ने विस्तार से बताया कि कानून और नियमावली के तहत दावों की जांच, सत्यापन और संकल्प पारित करने का अधिकार केवल ग्राम सभा को है. लेकिन लातेहार में प्रशासन इन दावों को SDLC या DLC बैठकों में बैठकर अपनी मनमानी से निरस्त या कटौती कर रहा है, जो पूरी तरह अवैध है. जिला प्रशासन ग्राम सभा के निर्णयों को रद्द कर रहा है. यह न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि ग्राम स्वराज की भावना के खिलाफ है.
मुख्य मांगें
धरनास्थल पर पढ़े गए प्रस्ताव और मांगपत्र में निम्नलिखित 15 प्रमुख बिंदु शामिल थे-
ग्राम सभा की कानूनी भूमिका का सम्मान हो. SDLC और DLC द्वारा मनमाने निर्णय और रकबा कटौती तत्काल बंद की जाए.
अबुआ बीर दिशोम अभियान के तहत की गई अवैध समितियों के पुनर्गठन को रद्द किया जाए.
भौतिक सत्यापन में वन और राजस्व विभाग के अधिकारी उपस्थित रहें, अनुपस्थित रहने वालों पर कानूनी कार्रवाई की जाए.
दूसरी सूचना के बाद भी अधिकारी अनुपस्थित रहें तो SDLC/DLC ग्राम सभा के निर्णय को अंतिम माने.
किसी भी दावे पर निर्णय केवल ग्राम सभा के संकल्प पर आधारित हो, न कि विभागीय रिपोर्ट पर.
यदि दावा अभिलेख में त्रुटि हो, तो उसे निरस्त करने के बजाय ग्राम सभा को पुनः भेजा जाए.
अंचल कार्यालयों में फाइलों को लटकाने की प्रथा बंद की जाए.
किसी भी दावे को निरस्त करने पर दावेदार को व्यक्तिगत सूचना दी जाए, ताकि अपील की जा सके.
DLC अपने आदेश की प्रतिलिपि ग्राम सभा और दावेदारों को उपलब्ध कराए.
DFO के गलत सिफारिशों पर निरस्त किए गए सभी दावों की पुन: समीक्षा हो.
2022 में पारित 168 दावों पर तत्काल वन पट्टा जारी किया जाए.
प्रत्येक माह SDLC और DLC की बैठकें अनिवार्य की जाएं.
वन विभाग द्वारा वनवासियों पर दर्ज फर्जी मुकदमों और उत्पीड़न पर रोक लगे.
पलामू टाइगर प्रोजेक्ट के नाम पर जबरन पुनर्वास बंद किया जाए.
प्रशासन लिखित रूप से स्पष्ट करे कि क्या पलामू टाइगर प्रोजेक्ट और महुआडाड़ आरक्ष क्षेत्र में वन अधिकार कानून लागू है या नहीं.
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