Niraj kumar
Dhanbad: वे 19 साल के थे. युवा खून देश की गुलामी से उबलता था. देशभक्ति का ऐसा जुनून कि 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में कूद पड़े. नाम – गौर किशोर गांगुली. वे महात्मा गांधी से प्रभावित थे. अंग्रेजों ने आंदोलन के दौरान इन्हें फरीदपुर (वर्तमान में बांग्लादेश) से गिरफ्तार किया और रांची जेल में बंद कर दिया. जेल में वे कैदियों को स्वतंत्रता के लिए जागरूक करते रहे. जिससे परेशान होकर अंग्रेजों ने उन्हें पहले हजारीबाग सेंट्रल जेल फिर पटना जेल में शिफ्ट किया.
स्वतंत्रता सेनानी गौर किशोर गांगुली के पोते अर्घादीप गांगुली ने बताया कि उनके दादा ने मैट्रिक की परीक्षा 1941 में पास करने के बाद रांची गवर्नमेंट कॉलेज में इंटरमीडिएट आर्ट्स में नामांकन कराया . इसके बाद ही भारत छोड़ो आंदोलन में कूद पड़े. जिसकी वजह से अंग्रजों ने 13 अगस्त 1942 को उन्हें फरीदपुर (वर्तमान में बांग्लादेश) से गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. वे जुलाई 1943 में जेल से छूटे. स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने की वजह से अंग्रेजों ने उन पर बैन लगा दिया था. जिससे वे आगे की पढ़ाई रांची कॉलेज से नहीं कर सके.
पटना जेल में पिता और बेटा अगल-बगल की कोठरी में
अर्घादीप बताते हैं कि जब दादा पटना जेल में बंद थे, उसी समय दादा के पिता शषाधर गांगुली भी जेल में थे. जेल में दादा और उनके पिता को अगल-बगल की कोठरी में रखा गया था. गौर किशोर गांगुली ने वर्ष 2014 में 92 साल की उम्र में अपना बायोडाटा खुद बनाया. जिसमें उन्होंने लिखा कि भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान वे एक साल जेल में रहे, लेकिन स्वतंत्रता के बाद उन्होंने कभी केंद्र और राज्य सरकार से स्वतंत्रता सेनानियों को मिलने वाला पेंशन नहीं लिया.
गौर किशोर गांगुली का जन्म 21 अक्टूबर 1923 को बांग्लादेश के फरीदपुर में हुआ था. स्वतंत्रता आंदोलन की वजह से अंग्रेजों ने उन पर रांची में पढ़ने पर बैन लगा दी, तो उन्होंने फरीदपुर के राजेंद्र कॉलेज से 1945 में इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी की. 1948 में बांकुरा क्रिश्चियन कॉलेज से स्नातक और वर्ष 1951 में कोलकाता लॉ कॉलेज से पढ़ाई करने के बाद पुरुलिया कोर्ट में प्रैक्टिस शुरू की. 1956 में सब डिवीजन अलग होने के बाद वे जनवरी 1957 में धनबाद के मास्टर पाड़ा में शिफ्ट हो गए. अर्घादीप बताते हैं कि उनका निधन 22 अक्टूबर 2017 को हुआ. वे झारखण्ड के बड़े क्रिमिनल लॉयर में एक थे.
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