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सरकार का शराब कारोबार पर मालिकाना खत्म, झारखंड में फिर से शुरू हुआ सिंडीकेट राज

Akshay Kumar Jha

Ranchi : झारखंड राज्य बेवरेज कॉरपोरेशन लिमिटेड (JSBCL) का गठन 26 नवंबर को 2010 को हुआ था. इसका गठन शराब कारोबार से व्यापारिक संगठनों के एकाधिकार (सिंडीकेट) को समाप्त करने के लिए किया गया था. साथ ही JSBCL को यह भी सुनिश्चित करने का जिम्मा दिया गया था कि ग्राहकों को उनकी मांग के मुताबिक उचित दाम पर असली शराब मिल सके. कॉरपोरेशन को राजस्व बढ़ाने के अलावा शराब बेचने के लिए लाइसेंस उपलब्ध कराने का काम दिया गया.

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JSBCL ने तीन जिलों से शुरू किया था काम

कॉरपोरेशन ने अपना काम पहले तीन जिलों (धनबाद, देवघर और जामताड़ा) से शुरू किया था, जो पूरे राज्य में फैला. कॉरपोरेशन राज्य में शराब का थोक कारोबार करता है. कॉरपोरेशन के पास 21 जिलों में गोदाम हैं, जहां से राज्य भर की 1429 खुदरा दुकानों में शराब की सप्लाई होती है. कॉरपोरेशन ने 39 शराब कंपनियों के साथ राज्य में शराब बेचने का करार किया है. कॉरपोरेशन में अभी 107 स्वीकृत पद के मुकाबले 57 पद पर कर्मी काम कर रहे हैं. सभी कर्मी संविदा पर कॉरपोरेशन में काम कर रहे हैं. जिसे अब सरकार खत्म कर रही है.

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थोक से लेकर खुदरा तक एक ही सिंडीकेट का होगा कब्जा

झारखंड में शराब कारोबार अब 2010 के पहले जैसा हो जाएगा. थोक से लेकर खुदरा दुकानों तक एक ही सिंडीकेट का वर्चस्व हो जायेगा. अब राज्य में उत्पाद विभाग के पास सिर्फ लाइसेंस फीस लेने की जिम्मेदारी बच जायेगी. थोक बिक्री भी प्राइवेट हाथ में जाने से सिंडीकेट काफी मजबूत हो जायेगा. इतने मजबूत कि विभाग चाह कर उनपर लगाम नहीं लगा पायेगा. जाहिर है कि इसके एवज में सरकारी तंत्र को शराब सिंडीकेट मैनेज करेगा.

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आयुक्त को अधिकार, चुनिंदा लोगों का होगा वर्चस्व

झारखंड उत्पाद विभाग द्वारा जिलों के मुताबिक शराब के थोक विक्रेता चुने जाएंगे. रांची जैसे बड़े जिले में तीन, तो संथाल के कुछ छोटे जिलों को मिलाकर एक ही थोक विक्रेता रहेगा. राज्य भर में करीब 25-30 शराब थोक विक्रेता होंगे. जिले में बिक्री के आधार पर इनसे लाइसेंस फीस ली जायेगी. इसके लिए 50 लाख, 75 लाख और एक करोड़ के तीन स्लैब तैयार किये गये हैं. यह फीस साल भर के लिए ली जायेगी. जो नॉन रिफंडेबल होगी. यानी लाइसेंस बांट कर सरकार के खजाने में करीब 22-25 करोड़ की रकम जाम होगी. राज्य में थोक विक्रेता बहाल करने का काम लॉटरी सिस्टम से किया जाएगा. लेकिन इस प्रक्रिया मं  उत्पाद आयुक्त को इतना अधिकार दे दिया गया है,  कि थोक विक्रेता चुनने का काम कमिश्नर के हाथ में ही होगा. ऐसे में वे ही लोग इस प्रक्रिया में शामिल हो पाएंगे, जिनकी शराब कारोबार गहरी पैठ है. ऐसे में राज्य में शराब कारोबार पर कुछ लोगों का ही वर्चस्व हो जायेगा.

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2.5 फीसदी मुनाफे पर थोक विक्रेता कैसे करेंगे काम

जेएसबीसीएल को सरकार की तरफ से गोदाम मिला हुआ था. कमर्चारी अनुबंध पर काम कर रहे थे. शराब कंपनी ही शराब ढुलाई का खर्च वहन करती थी. जेएसबीसीएल लीकर कंपनियों से शराब उधार खरीदती थी और नकद बेचती थी. जितनी शराब बिकती थी, उसका तीन फीसदी मुनाफा जेएसबीसीएल लेती थी, जो सरकारी खजाने में जाता था. लेकिन अब ऐसा नहीं होगा. थोक विक्रेता को गोदाम, स्टाफ और धंधा चलाने के लिए पूंजी सभी की व्यवस्था करनी होगी. इन सबके के लिए प्राइवेट थोक विक्रेताओं को 2.5 फीसदी मुनाफा दिया जायेगा. मुनाफे की इसी रकम से थोक विक्रेता को सारा काम करना है. जो कि संभव नहीं है. ऐसे में थोक विक्रेता इस कारोबार में दूसरा हथकंडा अपनाएंगे. इससे शराब की क्वालिटी पर असर पड़ सकता है. जिसे पहले जेएसबीसीएल वॉचडॉग की तरह देखता था. सारा कारोबार सिंडीकेट के हाथों में जाने की वजह से उत्पाद विभाग मूकदर्शक बन जायेगा.

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