Washington : आखिरकार यह दुनिया कब तक रहेगी? इंसानों की प्रजाति कब तक जीवित रहेगी? यह सवाल हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और साइंटिस्ट एवी लोएब (Avi Loeb) ने दुनिया भर के वैज्ञानिकों से पूछा है. एवी लोएब ने पूछा है कि धरती के खत्म होने या इंसानों के खत्म होने की तारीख क्या होगी? एवी लोएब के अनुसार साइंटिस्ट सही दिशा में काम नहीं कर रहे हैं. एवी लोएब ने वैज्ञानिकों से अपील की है कि वे जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए काम करें. वैक्सीन बनायें. सतत ऊर्जा के विकल्प खोजें. सबको भोजन मिले, इसका तरीका निकाले.
अंतरिक्ष में बड़े बेस स्टेशन बनाने की तैयारी कर लें. साथ ही एलियंस से संपर्क करने की कोशिश करें. क्योंकि जिस दिन हम तकनीकी रूप से पूरी तरह मैच्योर हो जायेंगे, उस दिन से इंसानों की पूरी पीढ़ी और धरती नष्ट होने के लिए तैयार हो जायेगी. उस समय यही सारे खोज और तकनीकी विकास ही कुछ इंसानों को बचा पायेगी.
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हमारी तकनीकी सभ्यता की शुरुआत सैकड़ों साल पहले हुई थी.
बता दें कि हार्वर्ड यूनिवर्सिटी (Harvard University) के पूर्व छात्र सम्मेलन में एवी लोएब ने कहा कि सबसे ज्यादा जरूरी है इंसानों की उम्र को बढ़ाना. क्योंकि मुझसे पूछा जा चुका है कि हमारी तकनीकी सभ्यता कितने वर्षों तक जीवित रहेगी. ऐसे में मेरा जवाब है कि हम लोग अपने जीवन के मध्य हिस्से में है. हमारी तकनीकी सभ्यता की शुरुआत सैकड़ों साल पहले हुई थी. तब यह बच्चा था. अभी हम इसके किशोरावस्था को देख रहे हैं. यह लाखों साल तक बची रह सकती है. हम फिलहाल अपने टेक्नोलॉजिकल जीवन का युवापन देख रहे हैं. यह कुछ सदियों तक जीवित रह सकता है लेकिन इससे ज्यादा नहीं. यह एक गणितीय गणना के आधार पर एवी लोएब ने बताया. लेकिन क्या यह भविष्य बदला जा सकता है?
इंसान ज्यादा दिन धरती पर रह नहीं पायेंगे
एवी लोएब ने कहा कि जिस तरह से धरती की हालत इंसानों की वजह से खराब हो रही है, उससे लगता है कि इंसान ज्यादा दिन धरती पर रह नहीं पाएंगे. कुछ सदियों में धरती की हालत इतनी खराब हो जायेगी कि लोगों को स्पेस में जाकर रहना पड़ेगा. सबसे बड़ा खतरा तकनीकी आपदा (Technological Catastrophe) का है. ये तकनीकी आपदा जलवायु परिवर्तन (Climate Change) से जुड़ी होगी. इसके अलावा दो बड़े खतरे हैं इंसानों द्वारा विकसित महामारी और देशों के बीच युद्ध. इन सबको लेकर सकारात्मक रूप से काम नहीं किया गया तो इंसानों को धरती खुद खत्म कर देगी. या फिर वह अपने आप को नष्ट कर देगी. ये भी हो सकता है कि इंसानी गतिविधियों की वजह से धरती पर इतना अत्याचार हो कि वह खुद ही नष्ट होने लगे.
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ग्लेशियर पिघल रहे हैं, समुद्री जलस्तर बढ़ रहा है
एवी लोएब ने कहा कि इंसान उन खतरों से खुद को नहीं बचा पाते जिससे वो पहले कभी न टकराये हों. जैसे जलवायु परिवर्तन. इसकी वजह से लगातार अलग-अलग देशों में मौसम परिवर्तन हो रहा है. ग्लेशियर पिघल रहे हैं. समुद्री जलस्तर बढ़ रहा है. सैकड़ों सालों से सोए हुए ज्वालामुखी फिर से आग उगलने लगे हैं. जंगल आग से खाक हो रहे हैं. ऑस्ट्रेलिया की आग कैसे कोई भूल सकता है. उसमें करोड़ों जीव मारे गये थे
कहै कि फिजिक्स का साधारण मॉडल कहता है कि हम सब एलिमेंट्री पार्टिकल्स यानी मूल तत्वों से बने हैं. इनमें अलग से कुछ नहीं जोड़ा गया है. इसलिए प्रकृति के नियमों के आधार पर हमें मौलिक स्तर पर इनसे छेड़छाड़ करने का कोई अधिकार नहीं है. क्योंकि सभी मूल तत्व फिजिक्स के नियमों के तहत आपस में संबंध बनाते या बिगाड़ते हैं. अगर इनसे छेड़छाड़ की आजादी मिलती है तो इससे नुकसान ही होगा.
सूरज से पहले भी कई ग्रह बने हैं
एवी ने कहा कि इंसान और उनकी जटिल शारीरिक संरचना निजी तौर पर किसी भी आपदा की भविष्यवाणी नहीं कर सकती. क्योंकि यही हमारे मानव सभ्यता की किस्मत है. इसे इतिहास में इसी तरह से गढ़ा गया है. इंसान की सभ्यता कब तक रहेगी ये भविष्य में होने वाले तकनीकी विकास पर निर्भर करता है. वैसे भी इंसान खुद ही अपना शिकार कर डालेंगे. क्योंकि सूरज से पहले भी कई ग्रह बने हैं. हो सकता है कि कई ग्रह ऐसे हो जहां पर जीव रहते हों. उनके पास भी तकनीकी सभ्यता हो.
ये भी हो सकता है कि वो तकनीकी सभ्यता को अपनी पारंपरिक और प्राचीन सभ्यता के साथ मिलाकर चल रहे हों. ताकि तकनीकी सभ्यता के चक्कर में खुद की पहचान न खो जाये. जब रेडियोएक्टिव एटम धीरे-धीरे खत्म हो सकता है तो अन्य जीवन देने वाले एटम क्यों नहीं खत्म हो सकते.