गिरिडीह जिले के सुमित गुंजन को अद्भुत कलाकारी के हुनर ने दिलाई वैश्विक पहचान
पीछे मुड़ कर आगे कैनवास में उकेर देते हैं हूबहू तस्वीर
प्रदर्शन के लिए आईआईटी दिल्ली कर चुका है आमंत्रित
Vishmay Alankar
Hazaribagh: आज तक आपने मिट्टी, लकड़ी, सीमेंट, संगमरमर या पत्थरों को तराश कर मूर्तियां बनाने की कला देखी होगी या सुनी होगी, लेकिन सुमित गुंजन ऐसे कलाकार हैं, जो कोयले के अपशिष्ट से मूर्तियों को गढ़ रहे हैं. झारखंड के गिरिडीह जिले के रहने वाले सुमित ने बारीक कोयले में कुछ कंपोजिट मैटेरियल मिलाकर मूर्ति बनाने की कला विकसित की है. वर्तमान में वह बतौर कला शिक्षक एक प्राइवेट स्कूल में अपनी सेवा दे रहे हैं. सुमित स्कूल में बच्चों को चित्रकला और मूर्तिकला की शिक्षा देते हैं. कोयले से मूर्ति बनाने के अतिरिक्त सुमित गुंजन के पास एक और हुनर है, जो उनकी कलाकरी को और खास बनाता है. वह सामने किसी वस्तु को देखकर अपने पीछे दोनों हाथों से चित्रकारी कर लेते हैं. दोनों हाथों से तस्वीर बनाते वक्त हुए पीछे कैनवास की तरफ देखते भी नहीं वह केवल सामने इसकी तस्वीर बनी है उसे देखते हैं और पीठ की तरफ हाथ से कैनवास पर दोनों हाथों से तस्वीर उकेरते रहते हैं. इनकी इसी कला से प्रभावित होकर आईआईटी दिल्ली द्वारा इन्हें अपनी कला काे प्रदर्शित करने के लिए आमंत्रित किया गया था.
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दो गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड किया है अपने नाम
सुमित के नाम दो वर्ल्ड रिकॉर्ड भी हैं, जो गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में अंकित है. उन्होंने दुनिया में सबसे बड़ी 11,200 वर्ग फीट की पोर्ट्रेट पेंटिंग बनाई थी, जो बिरसा मुंडा की मोजेक पोर्ट्रेट थी. उन्होंने 27 दिसंबर 2022 को 40,000 से अधिक रद्दी ईंटों से इसे बनाया गया था. दूसरी बार 30 जून 2023 को संत कोलंबस ग्राउंड, हजारीबाग में सुमित ने अपने ही रिकॉर्ड को तोड़ दिया. उन्होंने शहीद सिदो-कान्हू का 12,000 वर्ग फीट में पोर्ट्रेट बनाया था. इसे 50,000 से अधिक रद्दी ईंटो से बनाया गया था.
बीसीसीएल अधिकारी ने भी हुनर को सराहा
झारखंड के खनिज संपदा में कोयला प्रमुख है. सुमित की कला देखकर बीसीसीएल, धनबाद के डायरेक्टर पर्सनल मुरली कृष्ण रमैया काफी प्रभावित हुए और उन्होंने सुमित को अपनी कला में कोयले को शामिल करने की सलाह दी. साथ ही उन्होंने आश्वासन भी दिया कि अगर कोयले को प्रोडक्ट के रूप में इस्तेमाल कर कोई मूर्ति या कुछ ऐसा बनाते हैं, तो वह इन्हें कुछ काम भी देंगे. सुमित बहुत समृद्ध नहीं है और तंगहाली में ही जीवन चलता है. पारिवारिक रूप से भी बहुत समृद्ध नहीं होने के कारण उन्हें लगा कि शायद कोयले से अगर मूर्ति बनाई जाए, तो कुछ कमाई हो जाएगी. यही सोचकर उन्होंने दिन-रात मेहनत की और परिणाम यह हुआ कि ऐसा करने वाले वह झारखंड के पहले कलाकार बन गए. अब उन्हें उम्मीद है कि कोयला खनन क्षेत्र में लगी कंपनियां उनकी कला को सम्मान देगी. बता दें कि हजारीबाग में 12 से 15 अक्टूबर तक लगे सिडबी के स्वावलंबन मेले में स्टाॅल लगा कर सुमित ने अपने हुनर से लोगों को काफी प्रभावित किया था.
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