Ranchi : झारखंड में ऑक्सीजन की किल्लत नहीं है. यह तो इससे ही पता चलता है कि झारखंड से कई राज्यों को ऑक्सीजन की निर्बाध आपूर्ति की जा रही है. फिर भी राजधानी सहित राज्य के कई हॉस्पिटलों में कोरोना संक्रमित मरीजों की जान जा रही है. जान जाने का एक कारण ऑक्सीजन की आपूर्ति नहीं हो पाना है. इसके लिए भी राज्य सरकार के पास बेजोड़ तर्क है. तर्क है ऑक्सीजन सिलेंडरों की कमी. ऑक्सीजन स्टोर करने के लिए सिलेंडरों की भारी किल्लत को देखते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने केंद्र सरकार से 17000 सिलेंडर की मांग की है.
इसके अलावा गुजरात के निर्माताओं को दी गयी मेडिकल ऑक्सीजन टैंकों, सिलेंडरों के ऑर्डर को जल्द देने के लिए गुजरात के मुख्यमंत्री को पत्र भी लिखा गया है. लेकिन देखा जाए, तो इस महामारी के दौर में हेमंत सरकार ऑक्सीजन की कमी का विकल्प तलाश नहीं करके केवल चिट्ठी-चिट्ठी का गेम खेल रही है. अगर सरकार चाहती तो सिलिंडर के विकल्प के तौर पर ऑक्सीजन कंसंट्रेटर खरीदती. ऐसा होने से कोरोना संक्रमित मरीजों को बहुत ज्यादा राहत मिलती.
हवा से ऑक्सीजन इक्ट्ठा कर मरीजों को उपलब्ध कराता है ऑक्सजीन कंसंट्रेटर
ऑक्सजीन कंसंट्रेटर एक मेडिकल डिवाइस है, जो आसपास की हवा से ऑक्सीजन को एक साथ इकट्ठा करता है. पर्यावरण की हवा में 78 फीसदी नाइट्रोजन और 21 फीसदी ऑक्सीजन गैस होती है. दूसरी गैस बाकी 1 फीसदी हैं. ऑक्सीजन कंसंट्रेटर इस हवा को अंदर लेता है, उसे फिल्टर करता है, नाइट्रोजन को वापस हवा में छोड़ देता है और बाकी बची ऑक्सीजन मरीजों को उपलब्ध कराता है.
झारखंड में रोजाना बनायी जा रही 525 टन ऑक्सीजन, औसतन खपत सिर्फ 62 से 70 टन
एक अनुमान के मुताबिक, कोरोना संकट के बीच झारखंड में रोजाना औसतन 525 टन ऑक्सीजन बनायी जा रही है. जबकि यहां औसतन खपत सिर्फ 62 से 70 टन है. झारखंड से सामने आ रहे ऑक्सीजन संकट की मुख्य वजह सिलिंडर की कमी है. राज्य में बड़ी मात्रा में ऑक्सीजन का उत्पादन हो रहा है. रिपोर्ट्स की मानें तो ऑक्सीजन सही समय पर रिफिलिंग यूनिट भी पहुंच रहा है. हालांकि, रिफिलिंग यूनिट में सिलेंडरों की भारी कमी की वजह से मरीजों को ऑक्सीजन नहीं मिल पा रहा.
ऑक्सीजन कंसंट्रेटर अगर जिलावार सरकार उपलब्ध कराती, तो नहीं होता राजधानी में संक्रमितों का भार रांची के कई सरकारी व निजी हॉस्पिटलों से यह बात भी सामने आयी है कि जिन मरीजों को ऑक्सीजन कंसंट्रेटर उपलब्ध कराया गया है. उससे स्थिति अन्य संक्रमितों की तुलना में काफी बेहतर है. अगर राज्य सरकार इसे अपने स्तर पर खरीद कर जिलावार उपलब्ध कराती, तो शायद राजधानी में अन्य जिलों के मरीजों का भार कम होता.