Ranchi: भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने झारखंड में कृषि के लिए आकस्मिक उपाए सुझाया है. इसमें कहा है कि झारखंड के अधिकांश जिलों में 17 जुलाई, तक अत्यधिक वर्षा हो चुकी है. झारखंड का मध्य-उत्तर-पूर्वी पठारी क्षेत्र सबसे बड़ा है, जिसमें रांची से लेकर साहेबगंज, पाकुड तक के 14 जिले शामिल हैं, जबकि उप-क्षेत्र (पश्चिमी ठार) में पलामू, गढ़वा, लातेहार आदि सात जिले शामिल हैं.
वहीं दक्षिण-पूर्वी पठारी क्षेत्र सबसे छोटा उप-क्षेत्र है, जिसमें केवल तीन जिले - पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम और सरायकेला-खरसावां शामिल हैं. झारखंड में सिर्फ 28 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में खेती होती है. ऊंची भूमि का क्षेत्र 10 लाख हेक्टेयर, मध्यम ऊंची भूमि का क्षेत्र 7 लाख हेक्टेयर, मध्यम भूमि का क्षेत्र 5 लाख हेक्टेयर और नीचली भूमि का क्षेत्र 6 लाख हेक्टेयर है.
रिज और फरो की बुआई विधि अपनाएं
महुआ की मध्यम अवधि की किस्मों की बुवाई 7-10 अगस्त तक की जा सकती है, जिसके लिए रिज और फरो (ना ली) की बुवाई विधि अपनाई जा सकती है. ऊंची भूमि में आकस्मिक फसले जैसे रामतिल, काला तिल, कुल्थी, तोरिया और मटर को अगस्त और सितंबर के पूरे महीने में उगाया जा सकता है. मध्यम अवधि (180-190 दिन) की अरहर की किस्मों की बुवाई 7 सितंबर तक की जा सकती है, जो रामतिल, काला लिल, कुल्थी और तोरिया की तुलना में बेहतर लाभ देगी.
मध्यम ऊंची में धान की रोपाई कम करने का सुझाव
मध्यम ऊंची भूमि दून में जहां किसान आमतौर पर धान रोपाई करते हैं, वहां धान की रोपाई कम करने का सुझाव दिया गया है. इसके स्थान पर अरहर, मक्का, ज्वार और बाजरा की बुवाई रिज और फेरो विधि विधि से 7 से 10 अगस्त 025 तक की जा सकती है. वहीं मध्यम ऊंची भूमि (दून) जो अत्यधिक संवेदनशील है, वहां धान की रोपाई के स्थान पर डायरेक्ट सोडेड राइस के तहत बुवाई की जा सकती है, जिसमें समुचित निराई-गुडाई की व्यवस्था हो.
नर्सरी नष्ट हो गई हो तो फिर से तैयार करने की सलाह
जिन क्षेत्रों की मध्यम और नीची भूमि में रोपाई की जा चुकी है, पर यदि अत्यधिक वर्षा से नर्सरी नष्ट हो गई हो, तो मध्यम अवधि की धान की नर्सरी फिर से तैयार की जाए, जो 7-10 अगस्त तक रोपाई हेतु तैयार हो. अत्यधिक वर्षा से कुएं, तालाब, नदियां और बांध जैसे जलस्रोत भर चुके हैं. इन्हें अगस्त-सितंबर के सूखे की स्थिति में सहायक/जीवनरक्षक सिंचाई के रूप में उपयोग किया जा सकता है.
इस अत्यधिक वर्षा का उपयोग रबी की दालों और तिलहन जैसे चना, मसूर, मटर, सरसों और अलसी की बुवाई हेतु भी किया जा सकता है. इन आकस्मिक उपायों को कृषि विभाग, आत्मा), केवीके आदि के अधिकारियों में व्यापक रूप से प्रचारित और प्रसारित किया जाना चाहिए ताकि सभी फसलों का अधिकतम क्षेत्र में बेहतर उत्पादन हो सके.