Ranchi : आदिवासी अस्तित्व बचाओ मोर्चा के संयोजक अजय तिर्की ने सिरमटोली सरना स्थल में कहा कि जब-जब कुड़मी एसटी का स्टेटस मांगेगा, तब-तब आदिवासी विद्रोह करने के लिए सड़क पर उतरेंगे. आदिवासी समाज अपने अस्तित्व से समझौता नहीं करता है.
आदिवासी समुदाय शुरू से आंदोलनकारी है. आदिवासी समाज 2018 से ही कुड़मी को एसटी सूची में शामिल करने का विरोध करता आ रहा है. कुड़मी आदिवासी बनने के लिए कोई भी मापदंड पूरा नहीं करता है. अगर केंद्र सरकार ने कुड़मी को एसटी दर्जा दिया, तो यह आंदोलन शांतिपूर्ण स्थान पर उग्र रूप ले लेगा.
कुड़मी प्रवासी, मुंडाओं की संस्कृति पर किया कब्जा -ग्लैडसन डुंगडुंग
सामाजिक कार्यकर्ता ग्लैडसन डुंगडुंग ने कहा कि प्रसिद्ध एथ्रोलॉजिस्ट एसी रॉय और ईटी डॉल्टन ने अपने शोध में स्पष्ट रूप से लिखा है कि कुड़मी समुदाय मूल रूप से प्रवासी है. वे महाराष्ट्र से आए है. इन लोगों ने मुंडाओं के गांवों पर कब्जा किया.
वे मुंडाओ के गांव में हातु मुंडा बन गए. ग्लैडसन ने बताया कि डिस्ट्रिक्ट ऑफ बंगाल नामक पुस्तक में सोनाहातु स्थित चोकाहातु का उल्लेख झारखंड के सबसे बड़े ससन दीरी (मुंडाओं का पारंपरिक समाधि स्थल) के रूप में किया गया है.
जब सोनाहातु क्षेत्र में मुंडाओं की संख्या कम है, तो यहां सबसे बड़ा ससन दीरी क्यों है? उन्होंने कहा कि दरअसल, यह इस बात का प्रमाण है कि अतीत में यह इलाका मुंडाओं का प्रमुख निवास क्षेत्र रहा होगा.
बाद में प्रवासी समुदायों ने मुंडाओ को भगाकर अपना गांव बना लिए ग्लैडसन के अनुसार, एसी रॉय और ईटी डॉल्टन दोनों ने अपने अध्ययन में लिखा है कि मानभूम क्षेत्र में जहां-जहां कुड़मी बसते गए, वहां संथाल, मुंडा, उरांव और खड़िया को भगाते गए.
जहां पत्थलगड़ी है वहां की पहचान और संस्कृति का प्रतीक है. कुड़मी समुदाय ने मुंडाओं के गांवों में बसकर इस परंपरा को अपनाया, लेकिन इसका मूल स्वामित्व मुंडाओं का ही है.
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