Simdega: कल, यानी 07 नवंबर 2025 को भारतीय हॉकी अपने गौरवशाली 100 वर्ष पूरे करने जा रही है. 7 नवंबर 1925 को मध्यप्रदेश के ग्वालियर में बने भारतीय हॉकी संघ (Indian Hockey Federation) ने देश में खेलों की नई पहचान बनाई थी. इस ऐतिहासिक मौके पर हॉकी इंडिया के आह्वान पर देशभर में शताब्दी समारोह मनाया जाएगा.
कल पूरे देश के 500 जिलों में 1000 हॉकी मैचों का आयोजन किया जाएगा. इसी क्रम में हॉकी की नर्सरी कहे जाने वाले सिमडेगा जिले में भी महिला और पुरुष वर्ग का विशेष हॉकी मैच खेला जाएगा.
यह आयोजन एस्ट्रोटर्फ हॉकी स्टेडियम, सिमडेगा में होगा. सिमडेगा ने देश को अब तक आधा सैकड़ा अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी दिए हैं, जिनमें स्व. माइकल किंडो, सिलबानुस डुंगडुंग और सलीमा टेटे जैसे ओलंपियन शामिल हैं.
भारतीय हॉकी का गौरवशाली सफर
भारतीय हॉकी संघ का गठन 7 नवंबर 1925 को ग्वालियर के मोती महल में हुआ था. देश के अलग-अलग प्रांतों में चल रही हॉकी संस्थाओं को एक मंच पर लाकर कर्नल ब्रूस टर्नबुल को पहला अध्यक्ष चुना गया. 1926 में भारतीय टीम ने न्यूजीलैंड दौरे पर 21 मैच खेले, जिनमें से 18 में जीत दर्ज की. इसी दौरे में मेजर ध्यानचंद का जादू पहली बार दुनिया ने देखा.
इसके बाद 1928 एम्स्टर्डम ओलंपिक में भारत ने पहला स्वर्ण पदक जीता. टीम के कप्तान झारखंड के सपूत मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा थे. यही भारत और एशिया का पहला ओलंपिक स्वर्ण पदक था. अब तक भारतीय हॉकी टीम कुल 13 ओलंपिक पदक जीत चुकी है — 8 स्वर्ण, 1 रजत और 4 कांस्य.
झारखंड का योगदान
इन 100 वर्षों में झारखंड ने देश को 7 ओलंपियन दिए हैं :
1. 1928 – मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा
2. 1972 – स्व. माइकल किंडो
3. 1980 – सिलबानुस डुंगडुंग
4. 1984 – मनोहर टोपनो
5. 1992 – अजीत लकड़ा
6. 2016 – सुश्री निक्की प्रधान
7. 2020 – सुश्री सलीमा टेटे
ध्यानचंद और भारतीय हॉकी की मिसाल
मेजर ध्यानचंद ने अपनी स्टिक से सिर्फ गोल ही नहीं किए, बल्कि देश की पहचान बनाई.
1932 के लॉस एंजिल्स ओलंपिक में भारत ने अमेरिका को 24–1 से हराया.
1936 के बर्लिन ओलंपिक में ध्यानचंद ने जर्मनी को 8–1 से मात दी. यह जीत हिटलर की जमीन पर मिली थी.
1948 में आजाद भारत ने लंदन ओलंपिक में अंग्रेजों को हराकर तिरंगा फहराया.




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