Jamshedpur (Ashok kumar) : पूर्व सांसद सह आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने कहा कि विपक्ष के प्रत्याशी यशवंत सिन्हा को अप्रत्यक्ष रूप से आदिवासी महिला द्रोपदी मुर्मू को अपमानित करना शोभा नहीं देता है. द्रोपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनना लगभग तय है. यह भारतीय जनतंत्र और संविधान की गरिमा का अद्भुत सत्य है. जो संपूर्ण राष्ट्र के सहयोग और योगदान से संभव हुआ है. परंतु वंचित वर्गों के लिए यह विशेष गर्व और सम्मान का ऐतिहासिक पल है. डॉ. मार्टिन लूथर किंग जूनियर के अनुसार वंचितों की सुरक्षा और संवर्धन के लिए बने कानूनों या वंचित व्यक्तियों की पदस्थापना से बहुत कुछ बदल नहीं जाता है। परंतु उक्त प्रतीकों से कुछ न कुछ जरूर बदलता है। समाज में सोच बदलता है. किसी भी सामाजिक न्याय के सकारात्मक प्रतीकात्मक बदलाव का स्वागत मानवीय मूल्यों में वृद्धि ही करता है, ह्रास नहीं.
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यशवंत सिन्हा के समर्थकों में उत्साह नहीं
यशवंत सिन्हा विपक्षी दलों के राष्ट्रपति प्रत्याशी हैं. परंतु उनके समर्थकों के बीच अबतक उत्साह और वैचारिक एकता की घोर कमी दिखाई पड़ती है. सिन्हा साहब का दावा है कि वे “रबड़ स्टांप” राष्ट्रपति नहीं बनेंगे, वे शिक्षा और अनुभव में श्रेष्ठ हैं. वे विचारधारा की लड़ाई लड़ रहे हैं. उनका यह दावा भारतीय संविधान और भारतीय जनतांत्रिक व्यवस्था और प्रक्रिया का नासमझी और निरादर है. भारत के राष्ट्रपति और अमेरिका के राष्ट्रपति की व्यवस्था और कार्यपालिका शक्तियां बिल्कुल भिन्न हैं. क्या सिन्हा जी पूर्व के सभी राष्ट्रपतियों को रबर स्टंप घोषित कर अपमानित करने की हिमाकत कर सकेंगे ? क्या वे राष्ट्रपति बन जाएं तो संविधान के अनुच्छेद – 74 के तहत केंद्रीय कैबिनेट के aid and advise (सहयोग एवं सुझाव) के विपरीत कार्य करेंगे ? खिसियानी बिल्ली खंबा नोचे वाली कहावत को चरितार्थ करना शोभा नहीं देता है. राष्ट्रपति का पद कोई आईएएस/ आईपीएस का पद नहीं है. यह पूर्णत: एक राजनीतिक पद है. इसका निर्णय राजनीतिक दल और राजनीतिक प्रक्रिया से चुने हुए विधानमंडल और संसद के जनप्रतिनिधि करते हैं. यह पद किसी एकेडमिक या शैक्षणिक योग्यता और लिखित / मौखिक परीक्षा का मोहताज नहीं है. ऐसा होता तो संविधान-कानून के ज्ञाताओं में से सुप्रीम कोर्ट के किसी चीफ जस्टिस को इस पद पर काबिज कर दिया जाता.
द्रोपदी मुर्मू को मिला था नीलकंठ पुरस्कार
माननीय द्रोपदी मुर्मू ओड़िशा विधानसभा में दो बार विधायक बनी. मंत्री भी बनी. सर्वश्रेष्ठ विधायक के रुप में नीलकंठ पुरस्कार प्राप्त किया. झारखंड प्रदेश के राज्यपाल के रूप में 6 वर्षों का निर्विवाद कार्यकाल पूरा किया. झारखंड प्रदेश और केंद्र में भाजपा के सरकारों के बावजूद उन्होंने झारखंड की आत्मा-छोटानागपुर और संताल परगना टेनेंसी कानूनों की रक्षा की. सरकारों की इच्छा के खिलाफ फैसला किया. चूकि दोनों कानून झारखंडी और खासकर आदिवासियों की सुरक्षा कवच है. छोटानागपुर और संताल परगना का संयुक्त भूभाग और महान शहीदों बिरसा मुंडा और सिदो मुर्मू के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ हुए जनक्रांतियों का प्रतिफल है झारखंड. यह दुर्लभ फैसला मुर्मू जी के साहस, निष्ठा और जनहित में दिया गया ऐतिहासिक फैसला है. शहीदों और झारखंडी इतिहास को सम्मानित करने वाला फैसला है. तब उन्होंने लगभग 192 संगठन/ व्यक्तियों के ज्ञापन पत्रों को स्वीकार किया. सीएनटी/एसपीटी कानूनों को बचाने वाले जन आंदोलनों को सम्मान दिया.
सीएनटी/एसपीटी एक्ट बचाने के लिये किया आंदोलन
झारखंड में कार्यरत राजनीतिक दलों से ज्यादा आदिवासी जनसंगठनों ने सीएनटी/ एसपीटी कानूनों को बचाने का जोरदार आंदोलन किया था. जिसमें आदिवासी सेंगेल अभियान सबसे आगे था. हमारे ओर से झारखंड हाई कोर्ट में झारखंड सरकार की ओर से किये गए गलत संशोधन के खिलाफ दायर मुकदमा संख्या: 6595/ 2016 dt 17.11.2016 को भी मुर्मू जी ने संज्ञान में लिया और पत्र संख्या: 883 dt 15.3. 2017 के तहत मुख्य सचिव झारखंड को जवाब मांगा. झारखंड सरकार जवाब नहीं दे सकी. अंततः उन्हें TAC में 3.11.2016 को और विधानसभा में 23.11.2016 को पारित गलत बिल को वापस करना पड़ा. द्रोपदी मुर्मू ने संविधान की मर्यादा को अक्षुण रखा. TAC या आदिवासी सलाहकार परिषद में प्रस्तावित गलत नियुक्ति-नियमावली आदि को कई बार अस्वीकार किया था. जो वर्तमान राज्यपाल माननीय रमेश बैस ने भी किया है.
आदिवासी महिला को अपमानित करने का कृत्य शोभनीय नहीं
यशवंत सिन्हा की ओर से भारतीय संविधान, राष्ट्रपति के गरिमामय पद और भारतीय जनतांत्रिक पद्धति को और अप्रत्यक्ष रूप से द्रोपदी मुर्मू एक आदिवासी महिला को अपमानित करने का कृत्य शोभनीय नहीं है. बल्कि निंदनीय है. राष्ट्रपति का पद किसी भी व्यक्ति के जाति, धर्म, लिंग, पद, पार्टी और अहंकार आदि से बहुत बड़ा है.
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