Kiriburu (Shailesh Singh) : सारंडा एवं कोल्हान रिजर्व वन क्षेत्र के जंगलों के विनाश का कब्र नहीं, बल्कि स्वयं के लिये कब्र निरंतर खोद रहे यहां के गांवों में बसे लोग और भूमि व लकड़ी माफिया. सारंडा के रोवाम, घाटकुड़ी, गंगदा आदि अधिकांश गांवों के अलावे कोल्हान जंगल के बुंडू, अगरवां, बियुबेड़ा आदि गांवों में निवास करने वाले बच्चे व ग्रामीण प्रचंड गर्मी से त्राहि-त्राहि कर रहे हैं. इन गांवों में भीषण गर्मी व लू लगने से दर्जनों बच्चे व ग्रामीण तेज बुखार, उल्टी, दस्त आदि से परेशान हैं. इन बीमार बच्चों का इलाज के लिए चिकित्सा की कोई सुविधा नहीं मिल पा रही है. ग्रामीणों के पास आवागमन अथवा यातायात की सुविधा, पर्याप्त पैसा नहीं है कि वे अन्यत्र इलाज कराने जायें. ऊपर से भीषण गर्मी व लू इन्हें घर में कैद रहने को मजबूर कर दी है.
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रोवाम निवासी सह इक्को विकास समिति के अध्यक्ष रामो सिद्धू ने बताया कि उनकी बेटी के अलावे विभिन्न गांवों के दर्जनों बच्चे व ग्रामीण उक्त बीमारी से आक्रांत हैं. इनमें से कुछ की स्थिति अत्यंत खराब है. चिकित्सकों की टीम यहां कैंप लगाकर मरीजों का इलाज कराये. सारंडा में कुछ लोग प्रकृति का दिया यह अनमोल जंगलों को काट कर खेत व मैदान बनाते जा रहे हैं. इन जंगलों को काट कर वे अपना व परिवार के लिये निरंतर कब्र क्यों खोद रहे हैं. जब-जब देश में भीषण अकाल पड़ी है तब-तब तमाम जंगलों ने अपने यहाँ रहने वाले लोगों को भूख से मरने नहीं दिया. क्योंकि प्रकृति ने उन्हें हर मौसम में खाने के लिये कुछ न कुछ दिया. आज से चार-पांच दशक पूर्व तक लोग खदानों या कल-कारखानों में काम या रोजगार मांगने नहीं जाते थे.
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अगर कोई जबरन ले जाता तो वे भाग कर वापस जंगल गांव आ जाते थे. क्योंकि प्रकृति ने उन्हें खाने पीने के सारी संसाधन उपलब्ध करायी हुई थी, लेकिन जैसे-जैसे हम जंगलों व प्रकृति का दोहन करने लगे, तब से प्रकृति ने भी विध्वंशक रूप धारण कर लिया. कल तक यही पेड़-पौधे हमें छाया, ठंडी हवा, वर्षा, सभी मौसम में खाने के लिये फल व अन्य वनोत्पाद देती थी. वहीं आज शरीर को झुलसा देने वाली गर्मी, वर्षा व जल स्तर में भारी गिरावट, वनोत्पाद में कमी अर्थात् मौत के सारे उपाय प्रारम्भ कर रही है.
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कोरोना के दौरान पूरा देश अपने लोगों की जान बचाने के लिये ऑक्सीजन सिलेंडर के लिये तड़प रहा था, लेकिन यह जंगल अपने लोगों को मुफ्त आक्सीजन देकर हजारों लोगों को कोरोना से बचाये रखा. लेकिन लोगों ने बदले में उसी जंगल को मामूली स्वार्थ की खातिर काट कर मैदान बनाने व उसमें आग लगाने का कार्य किया है. पांच वर्ष पूर्व एनजीटी के आदेश पर वन विभाग की जीआईएस सर्वे (सेटेलाईट डाटा) के अनुसार सारंडा का लगभग 80 हजार हेक्टेयर वन क्षेत्र में से लगभग तीन हजार (3,082.36) हेक्टेयर रिजर्व वन क्षेत्र की भूमि पर वर्ष 1980 के दशक से लेकर उक्त समय अतिक्रमण किया गया था. उस डाटा के अनुसार गुआ रेंज में 840 हेक्टेयर, ससंग्दा (किरीबुरु) रेंज में 1556 हेक्टेयर, कोयना रेंज में 106 हेक्टेयर, समता रेंज में 602 हेक्टेयर वन भूमि शामिल थी. लेकिन इस सर्वे के बाद भी हजारों एकड़ जंगल को काट वन भूमि को अतिक्रमण किया गया.