Ranchi: मनरेगा आयुक्त सिद्धार्थ त्रिपाठी की सेवा वापस वन विभाग को दे दी गयी है. वो 14 नवंबर 2015 से लगातार.. मनरेगा आयुक्त की कुर्सी पर विराजमान थे. जबकि किसी भी आईएएस कैडर में कोई वन आईएफएस अधिकारी तीन महीने से ज्यादा नहीं बने रह सकते हैं. लेकिन वो पांच साल से ज्यादा समय से मनरेगा आयुक्त बने हुए थे. इस खबर को लगातार… ने प्रमुख्ता से प्रकाशित किया था. जिसके बाद विधानसभा में भी झरिया विधायक पूर्णिमा देवी ने सवाल उठाया था कि आखिर कैसे सिद्धार्थ त्रिपाठी पांच सालों से मनरेगा आयुक्त बने हुए हैं. सोमवार को कार्मिक विभाग की तरफ से अधिसूचना जारी की गयी है और सिद्धार्थ त्रिपाठी को स्थानांतरित करते हुए इनकी सेवा वन पर्यावरण जलवायु परिवर्तन विभाग को वापस कर दी गयी है.
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3 महीने से ज्यादा एक IFS नहीं बने रह सकता IAS कैडर पर
22 मार्च 2019 को कार्मिक प्रशासनिक सुधार तथा राज्यभाषा विभाग में सूचना का अधिकार के तहत एक जानकारी मांगी जाती है. पूछा जाता है कि कितने समय तक एक नॉन आईएएस कैडर के पदाधिकारी का आईएएस कैडर के पद पर बने रहना वैधानिक है. जवाब मिला कि इसकी जानकारी The Indian Administrative Service (Cadre) Rules 1954 में है.
वेबसाइट से इस बाबत जानकारी ली जा सकती है. नियम के मुताबिक, कोई भी नॉन आईएएस कैडर आईएएस की पद पर सिर्फ तीन महीने ही रह सकता है. अगर राज्य सरकार उस नॉन आईएएस कैडर की अवधि विस्तार करना चाहती है, तो उसे भारत सरकार से इसकी अनुमति लेनी होगी. वो भी सिर्फ छह महीने के लिए. इसके बाद भी राज्य सरकार नॉन आईएएस कैडर का अवधि विस्तार करती है, तो केंद्र सरकार को इसके लिए यूपीएससी को लिखना होगा. वहां से अनुमति मिलने के बाद ही नॉन कैडर आईएएस की अवधि विस्तार हो सकती है.
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एनजीओ ने लगाये हैं संगीन आरोप
रांची के एक एनजीओ ने त्रिपाठी पर वन विभाग से जुड़े कुछ संगीन आरोप लगाये. एनजीओ ने केंद्रीय सतर्कता आयोग (cvc) को जांच करने को लिखा. सीवीसी ने केंद्रीय वन मंत्रालय को संज्ञान लेने को कहा. वहां से झारखंड के वन विभाग के प्रधान सचिव को 20 मार्च 2019, 16 सितंबर 2019, 08 जनवरी 2020 और 03 जून 2020 को जांच के लिए लिखा गया. लेकिन विभाग ने सिद्धार्थ त्रिपाठी के खिलाफ जांच शुरू नहीं की. वन विभाग से कार्रवाई नहीं होती देख केंद्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने राज्य के मुख्य सचिव को लिखा. दिल्ली से 06 नवंबर 2020 को और 08 फरवरी 2021 को मुख्य सचिव को जांच के लिए लिखा गया.
भी तक मुख्य सचिव के स्तर से भी किसी कार्रवाई की सूचना नहीं है. मुख्य सचिव को लिखी चिट्ठी में भारत सरकार के वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने साफ लिखा है कि सिद्धार्थ त्रिपाठी पर गंभीर आरोप हैं. अच्छे तरीके से जांच करायी जाये. साथ ही कार्रवाई की जानकारी मंत्रालय को दी जाये.
2015 से लेकर अभी तक सचिवालय में शायद ही ऐसा कोई अफसर होगा, जिसका तबादला नहीं हुआ हो. लेकिन सिद्धार्थ त्रिपाठी अपवाद हैं. झारखंड में आईएएस अधिकारियों के लिए 117 पद चिन्हित हैं. इनमें से एक पद मनरेगा आयुक्त का भी है. 14 नवंबर 2015 से आईएफएस सिद्धार्थ त्रिपाठी इस पद पर हैं. केंद्र सरकार के नियम के अनुसार त्रिपाठी इस पद पर तीन महीने से ज्यादा नहीं रह सकते.
यानी 14 फरवरी 2016 तक इस पद पर बने रह सकते थे. छह महीने के विस्तार के लिए केंद्र सरकार से अनुमति ली जानी थी, जो नहीं ली गयी. छह महीने के बाद सिद्धार्थ त्रिपाठी को इस पद पर रखने के लिए केंद्र सरकार को यूपीएससी से अनुमति लेनी चाहिए थी. वह भी नहीं ली गयी.
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