Latehar: चकला के अभिजीत ग्रुप पावर प्लांट में जमीन देने वाले रैयत अब आंदोलन की तैयारी में हैं. जिन वादों के साथ उनकी जमीन ली गयी थी, वह अब तक पूरी नहीं हो सकी है. इससे उनमें असंतोष है. रैयत पुनर्वास और पुनर्व्यवस्थापन नीति लागू करने के साथ ही अन्य मांगों को लेकर आंदोलन की रणनीति बना रहे हैं. जब से कंपनी के स्क्रैप बिकने की खबर आयी है तब से प्रोजेक्ट में कार्य कर रहे कर्मी और रैयतों की चिंता बढ़ गयी है.
बता दें कि दस साल पहले उग्रवादियों ने अभिजीत पावर प्लांट पर हमला किया था. उसमें चार गार्ड की घटनास्थल पर ही मौत हो गई थी और एक घायल हो गया था. उस घटना में रामदुलार साव, दृगपाल लोहरा, बिसरु उरांव और इंताफ खान की मौत हो गयी थी. वहीं घायल बंधनू उरांव की जान बच गयी थी. बाद में इनमें दो मृतकों के आश्रितों को सरकारी नौकरी लगी थी. दो परिवार को नहीं मिली. उनकी जिंदगी बदहाली के कगार पर है.
बताया जाता है कि प्लांट जब लगा था तो रैयतों को अपनी जमीन का अच्छा मुआवजा, घर के एक सदस्य को प्रोजेक्ट में नौकरी, बच्चों की पढ़ाई के लिए अच्छे विद्यालय और स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए बेहतर अस्पताल की उम्मीद थी. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. रैयतों को उनकी जमीन का मुआवजा भी पूरा नहीं मिला. कामगारों की मानें तो कंपनी पर हजार से लेकर लाखों रुपए मजदूरी बकाया है. उन्हें चिंता है कि प्लांट से स्क्रैप चला गया तो बकाया पैसा भी नहीं मिलेगा.
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बताया जाता है कि सरकार के साथ जब कंपनी का समझौता हुआ था तो उस समय कॉरपोरेट घरानों ने पुनर्वास एवं पुनर्व्यवस्थापन नीति के तहत जमीन दाताओं को जमीन का मुआवजा देने, प्रोजेक्ट से प्रभावित होने वाले रैयत परिवारों का पुनर्वास एवं पुनर्व्यवस्थापन करने, प्रभावित परिवारों के जीवन निर्वाहन स्तर का उत्थान करने, परिवार के सदस्यों को प्रोजेक्ट में रोजगार देने, आधारभूत संरचनाओं के निर्माण स्वास्थ्य, शिक्षण एवं अन्य सामुदायिक सुविधाएं पूर्ण करने का वादा किया था, जो पूरा नहीं हुआ.
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