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कोरोना मरीजों की तरह देश की इकोनॉमी की सांसें भी टूटने लगी हैं

Soumitra Roy

कोविड (कोरोना) के मरीजों की तरह ही भारत की इकोनॉमी की सांसें भी टूट रही हैं. कोविड की दूसरी लहर ने बीते एक महीने में 5 लाख करोड़ से ज़्यादा का नुकसान कराया है. सरकारी कुव्यवस्था ने नुकसान को बढ़ाया ही है. 

कंफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स के अध्ययन में ये आंकड़ा निकलकर आया है. सिर्फ दिल्ली में 25 दिन के भीतर 25 हज़ार करोड़ का नुकसान कारोबारियों को हुआ है. 5 लाख करोड़ का जो नुकसान हुआ है, उसमें से 3.5 लाख करोड़ का नुकसान रिटेल सेक्टर को हुआ है, जबकि 1.5 लाख करोड़ थोक करोबारियों की जेब से गए हैं. 

CMIE का डेटा कह रहा है कि मार्च में जो बेरोज़गारों की संख्या करीब 4.4 करोड़ थी, उसमें अप्रैल के अंत तक बड़ा इज़ाफ़ा होने वाला है. यह देश की खराब आर्थिक स्थिति को और खराब की तरफ ले जा सकता है.

भारत का औद्योगिक उत्पादन फरवरी में ही माइनस 3.5% था. मार्च में मज़दूरों के पलायन और लॉकडाउन से इसमें और गिरावट आई है. 

मोदी सरकार ने औद्योगिक ऑक्सीजन को अस्पतालों की तरफ मोड़ दिया है. इससे स्टील, उर्वरक और पेट्रोलियम जैसे कोर इंडस्ट्री का काम ठप पड़ गया है.  केंद्र व राज्यों की सरकार ने समय रहते ऑक्सीजन की व्यवस्था की नहीं. कोरोना की दूसरी लहर से लड़ने के लिये जरुरी ऑक्सीजन प्लांट लगाये नहीं. अब इसका खामियाजा औद्योगिक फैक्टरियों को भुगतना पड़ रहा है.

ये सारे अनुमान अभी शुरुआती ही हैं. अच्छी बात यह है कि भारत की जीडीपी में 14.5% की हिस्सेदारी रखने वाला राज्य महाराष्ट्र में कोविड का असर कम हो रहा है. उम्मीद करें कि मई के आखिर तक हालात सुधर जाएं. अगर यह नहीं हो पाता है तो बेड़ा ग़र्क ही समझें. क्योंकि कोविड की दूसरी लहर ने मिडिल क्लास के 30% परिवारों को कंगाल कर दिया है. 

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