Lagatar Desk : कोबरा पोस्ट ने गुरुवार को एक सनसनीखेज रिपोर्ट प्रकाशित की है. रिपोर्ट का नाम lootwallahs-01 रखा है. रिपोर्ट में अनिल अंबानी की कंपनी पर गंभीर आरोप लगाये गये हैं. साथ ही कहा गया है कि सरकार और कॉर्पोरेट की मिलीभगत से 41000 करोड़ रुपय की लूट कर ली गई.
पढ़ें, कोबरा पोस्ट की रिपोर्ट...
भारत की अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र को अक्सर विकास का इंजन माना जाता है. लेकिन जब यही निजी कंपनियां जनता के टैक्स के पैसे और निवेशकों के भरोसे का दुरुपयोग करने लगें, तब यह इंजन विकास नहीं बल्कि विनाश का कारण बन जाता है.
Cobrapost की जांच रिपोर्ट “The Lootwallahs: How Indian Business is Robbing Indians - Part I” इसी कड़वी सच्चाई को उजागर करती है.
इसमें दावा किया गया है कि देश के कुछ बड़े कारोबारी समूहों ने बैंक लोन, निवेश फंड और सार्वजनिक धन का दुरुपयोग करते हुए हजारों करोड़ रुपये का घोटाला किया. इस रिपोर्ट का केंद्र बिंदु है - Reliance ADA Group (ADAG), जिसे उद्योगपति अनिल अंबानी नियंत्रित करते हैं.
हजारों करोड़ की गड़बड़ी
Cobrapost की रिपोर्ट के अनुसार, अनिल अंबानी समूह ने वर्ष 2006 से अब तक लगभग 28,874 करोड़ रुपय की वित्तीय गड़बड़ी की. यह राशि विभिन्न बैंकों, डिबेंचरों, आईपीओ और बॉन्ड से जुटाई गई पूंजी से जुड़ी है.
इस रिपोर्ट में कहा गया कि इतनी बड़ी रकम को शेल कंपनियों, ऑफशोर इकाइयों और जटिल कॉर्पोरेट संरचनाओं के माध्यम से इधर-उधर किया गया, ताकि किसी नियामक एजेंसी को संदेह न हो.
रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया कि करीब 1.53 बिलियन डॉलर (लगभग 13,047 करोड़ रुपये) की रकम विदेशी रास्तों से भारत लाई गई. यह धन ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड्स, साइप्रस, सिंगापुर और मॉरिशस में रजिस्टर्ड कई कंपनियों के जरिए भेजा गया था.
इन कंपनियों को “Special Purpose Vehicles (SPVs)” कहा गया. यानी ऐसी संस्थाएं जो सिर्फ फंड ट्रांसफर करने और अवैध रकम को छिपाने के लिए बनाई गईं.
कैसे होता है फंड डायवर्शन
Cobrapost की रिपोर्ट के मुताबिक, ADAG ने कर्ज लेने और ट्रांसफर करने की एक चक्रीय प्रणाली बनाई थी. एक कंपनी बैंक से लोन लेती, दूसरी उससे जुड़ी कंपनी उस पैसे को “इंटर-कॉर्पोरेट लोन” या “प्रेफरेंस शेयर” के रूप में दूसरी इकाई को दे देती. यह प्रक्रिया कई परतों में चलती रही, जिससे अंततः असली खर्च या नुकसान का पता लगाना मुश्किल हो गया.
उदाहरण के लिए, एक मामले में कहा गया कि समूह की एक कंपनी ने “टेलीकॉम एक्सपेंशन” के नाम पर लोन लिया, लेकिन वह पैसा लक्जरी यॉट की खरीद में इस्तेमाल हुआ. जब जांच एजेंसियों ने सवाल उठाए, तो उस यॉट को किसी दूसरी सहायक कंपनी में ट्रांसफर कर दिया गया, ताकि रिकॉर्ड साफ दिखे.
जनता के पैसे से बना निजी साम्राज्य
रिपोर्ट के अनुसार, समूह की नौ बड़ी कंपनियों पर कुल 1,78,491 करोड़ रुपये का कर्ज था. इनमें से अधिकांश कर्ज सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (जैसे SBI, PNB, Bank of Baroda आदि) से लिया गया था.
जब इन कंपनियों के कारोबार ने गिरावट दिखाई, तो बैंकों को लगभग 1,62,976 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा. यह वही पैसा था जो आम नागरिकों ने टैक्स और बचत के रूप में सरकार व बैंकों में जमा किया था. यानी जनता के पैसे से कॉर्पोरेट जगत ने अपने साम्राज्य खड़े किए और फिर घाटे के नाम पर उस धन को डुबो दिया.
शेल कंपनियों और टैक्स हैवन की भूमिका
Cobrapost की जांच बताती है कि इस घोटाले का बड़ा हिस्सा टैक्स हैवन देशों से जुड़ा है. इन देशों में गोपनीयता इतनी अधिक है कि वास्तविक मालिक का नाम उजागर नहीं किया जा सकता. ADAG से जुड़ी दर्जनों शेल कंपनियां ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड्स, साइप्रस, मॉरिशस और सिंगापुर में पंजीकृत थीं.
ये कंपनियां भारत में स्थित होल्डिंग कंपनियों में निवेश के नाम पर पैसा भेजती थीं, जो आगे जाकर “इन्वेस्टमेंट” या “रिफाइनेंसिंग” के रूप में उपयोग किया जाता था. इस व्यवस्था का असली उद्देश्य था – पैसे की उत्पत्ति को छिपाना और जांच व नियामक एजेंसियों से बचना.
नियामक एजेंसियों की भूमिका और निष्क्रियता
रिपोर्ट में सवाल उठाया गया है कि इतने बड़े स्तर पर फंड ट्रांसफर और वित्तीय अनियमितताओं के बावजूद RBI, SEBI और वित्त मंत्रालय ने समय रहते कोई सख्त कार्रवाई क्यों नहीं की ? जांच के मुताबिक, कुछ एजेंसियों को इन लेनदेन पर संदेह था, लेकिन या तो फाइलें लंबित रहीं या राजनीतिक दबावों के चलते कार्रवाई नहीं हुई. इससे एक बड़ा संदेश गया कि अगर कोई कॉर्पोरेट समूह पर्याप्त प्रभावशाली है, तो वह कानून के शिकंजे से बच सकता है.
ADAG का पक्ष
Reliance ADA Group ने Cobrapost की रिपोर्ट को दुर्भावनापूर्ण, झूठी और शेयर बाजार को प्रभावित करने के उद्देश्य से बनाया गया अभियान बताया है. समूह ने कहा है कि इसमें जो भी डेटा इस्तेमाल हुआ है, वह पहले से ही सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध था और Cobrapost ने उसे तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया है. उनका कहना है कि उनके सभी लेनदेन वैध हैं और ऑडिटेड रिपोर्टों में दर्ज हैं. अनिल अंबानी समूह ने इस रिपोर्ट के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की चेतावनी भी दी.
टिप्पणी
इस पूरे प्रकरण का असर केवल एक समूह तक सीमित नहीं है. इसने यह दिखाया कि भारत में कॉर्पोरेट गवर्नेंस अभी भी बेहद कमजोर है. जब बैंक किसी बड़े औद्योगिक घराने को अरबों रुपये का कर्ज देते हैं, तो वे मान लेते हैं कि “बड़ा नाम” मतलब “सुरक्षित निवेश”.
परंतु जब वही समूह कर्ज नहीं लौटाते, तो नुकसान अंततः करदाताओं को होता है. इससे बैंकों की बैलेंस शीट कमजोर होती है, नए लोन देना मुश्किल होता है और अंततः अर्थव्यवस्था की रफ्तार पर असर पड़ता है.


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