NewDelhi : सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगायी है कि 70 साल से अधिक उम्र के कैदियों को रिहा कर दिया जाये. खबर है कि मेधा पाटकर ने SC से कैदियों को अंतरिम जमानत या आपात परोल पर रिहाई के लिए तत्काल कदम उठाने को लेकर केंद्र और सभी राज्यों को निर्देश देने की अपील की है. पाटकर के अनुसार इसलिए ऐसा किया जाना चाहिए, ताकि 70 साल से अधिक उम्र के कैदियों की रिहाई से देश की जेलों में भीड़ भाड़ कम हो सके.
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नेल्सन मंडेला 27 वर्षों तक जेल में बंद रहे
जानकारी के अनुसार अधिवक्ता विपिन नैयर के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपनी याचिका में पाटकर ने कहा कि नेल्सन मंडेला ने टिप्पणी की थी कि कोई भी किसी राष्ट्र को तब तक सही मायने में नहीं जानता, जब तक कि वह वहां की जेलों के भीतर की हकीकत ना जान ले. लगभग 27 वर्षों तक जेल में बंद रहे इस महान नेता का दृढ़ विश्वास था कि किसी राष्ट्र का मूल्यांकन इस आधार पर नहीं किया जाना चाहिए कि वह अपने शीर्ष नागरिकों के साथ कैसा व्यवहार करता है, बल्कि अपने निम्नतम नागरिकों के साथ कैसा व्यवहार करता है.
पाटकर ने एनसीआरबी के आंकड़ों का हवाला दिया
मेधा पाटकर ने अपनी याचिका में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा प्रकाशित जेल आंकड़ों को हवाला दिया है. आंकड़ों के अनुसार भारत में जेलों में सजा प्राप्त कुल कैदियों में 19.1 प्रतिशत की उम्र 50 साल और उससे अधिक है. याचिका में कहा गया कि इसी तरह 50 साल या इससे अधिक उम्र के 10.7 प्रतिशत विचाराधीन कैदी हैं. पचास या इससे अधिक उम्र के के कुल 63,336 कैदी (जेल में बंद कुल कैदियों का 13.2 प्रतिशत) हैं. 16 मई को राष्ट्रीय कारागार सूचना पोर्टल के अनुसार 70 और इससे अधिक उम्र के 5,163 कैदी हैं. हालांकि इसमें महाराष्ट्र, मणिपुर और लक्षद्वीप के आंकड़ें नहीं हैं.
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सुप्रीम कोर्ट ने उच्चाधिकार प्राप्त समितियों का गठन करने को कहा था
याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने 23 मार्च 2020 को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को कैदियों की श्रेणी निर्धारित करने के लिए उच्चाधिकार प्राप्त समितियों का गठन करने को कहा था जिन्हें आपात परोल या अंतरिम जमानत पर रिहा किया जा सके. कहा गया कि 13 अप्रैल 2020 को न्यायालय ने स्पष्ट किया था कि उसने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को जेलों से कैदियों की अनिवार्य रिहाई का निर्देश नहीं दिया था और पूर्व के निर्देश का मतलब यह सुनिश्चित करना था कि राज्य और केंद्रशासित प्रदेश, देश में मौजूदा महामारी के संबंध में अपने यहां की जेलों में हालात का आकलन करें और कुछ कैदियों को छोड़ें तथा रिहा किये जाने वाले कैदियों की श्रेणी बनायें.
बुजुर्गों के संक्रमित होने का खतरा अधिक
याचिका में कहा गया कि निर्देश के आधार पर राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा समितियों का गठन किया गया. अधिकतर समितियों ने अपराध की गंभीरता और कैदियों को जमानत मिलने पर इसका दुरुपयोग होने की आशंका को ध्यान में रखते हुए श्रेणी बनायी. ज्यादातर वर्गीकरण कैदियों की सामाजिक स्थिति और प्रशासनिक सहूलियत के आधार पर हुआ और संक्रमण के ज्यादा खतरे की आशंका को ध्यान में नहीं रखा गया. याचिका में कहा गया कि सबसे ज्यादा उम्रदराज या बुजुर्ग कैदियों खासकर 70 साल से अधिक उम्र के कैदियों के संक्रमित होने का ज्यादा खतरा है.
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