Ranchi: रांची विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ लीगल स्टडीस के सभागार में आज अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के तत्वावधान में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विषय पर एक राष्ट्रीय परिचर्चा का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम में नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी, कई शिक्षाविद, विधि विशेषज्ञ और विभिन्न विषयों के छात्र-छात्राओं की बड़ी संख्या में उपस्थिति रही.
परिचर्चा की शुरुआत में वक्ताओं ने ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ की अवधारणा को विस्तार से समझाया. उन्होंने कहा कि इसका उद्देश्य भारत में लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनावों को एक साथ कराना है, ताकि बार-बार होने वाले चुनावों से समय, धन और प्रशासनिक बोझ कम किया जा सके. 1952 में भारत में पहली बार एक साथ चुनाव हुए थे लेकिन राज्यों में सरकारें समय से पहले गिर जाने के कारण यह क्रम टूट गया.
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित उच्च स्तरीय समिति ने मार्च 2024 में इस विषय पर 18,000 पन्नों की विस्तृत रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी थी. इस रिपोर्ट के आधार पर केंद्रीय मंत्रिमंडल ने दिसंबर 2024 में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ बिल को मंजूरी दी और इसे संसद में प्रस्तुत किया.
बाबूलाल मरांडी ने कहा कि एक साथ चुनाव देश की प्रशासनिक दक्षता बढ़ाएगा और लोकतंत्र को अधिक स्थायित्व देगा. उन्होंने बताया कि हर कुछ महीने में किसी न किसी राज्य में चुनाव होते रहते हैं जिससे सरकारी मशीनरी और जनता दोनों पर बोझ बढ़ता है. यदि चुनाव एक साथ होंगे तो समय और पैसा बचेगा और विकास कार्यों में निरंतरता बनी रहेगी.
परिचर्चा में उपस्थित शिक्षाविदों और छात्रों ने भी इसके लाभ और चुनौतियों पर चर्चा की. वक्ताओं ने बताया कि बार-बार चुनाव होने से मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट लागू रहता है, जिससे विकास कार्य रुक जाते हैं. वहीं, एक साथ चुनाव से सरकारी खर्च में कमी आएगी, प्रचार अभियान सीमित होंगे और प्रशासनिक संसाधनों का बेहतर उपयोग संभव होगा.
सांख्यिकीय अध्ययन के अनुसार यदि देश में एक साथ चुनाव लागू किए जाएं तो 2029 में अनुमानित लागत लगभग 7,951 करोड़ रुपये होगी जबकि अलग-अलग चुनाव कराने पर खर्च कई गुना अधिक होगा. इसके अलावा एक साथ चुनाव से मतदान प्रतिशत बढ़ने और राष्ट्रीय जीडीपी ग्रोथ में 1.5 प्रतिशत तक वृद्धि का अनुमान जताया गया है.
कार्यक्रम में छात्रों ने भी सवाल पूछे और अपने सुझाव साझा किए. अंत में वक्ताओं ने कहा कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ केवल राजनीतिक सुधार नहीं बल्कि प्रशासनिक पारदर्शिता और जनहित की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम साबित हो सकता है.
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