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प्रोन्नति में आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के तीन अहम फैसले
विपक्ष भले ही सरकार पर आरोप लगाये, लेकिन हकीकत यही है कि हेमंत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ही यह कदम उठाया हैं.- 27 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट के एक बेंच ने कहा था कि प्रोन्नति में आरक्षण के लिए प्रतिनिधित्व वाला राज्य सरकारें ही तय करेंगी.
- इस साल 28 जनवरी तीन जजों की बैंच ने भी यह निर्णय दिया था कि प्रोन्नति में आरक्षण देने के लिए अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के आंकड़े जुटाना जरूरी है. आंकड़े एकत्र करना और अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के आकलन के मानक तय करना राज्य का दायित्व है.
- इससे पहले 2006 के एम नागराज फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि प्रमोशन में आरक्षण के मामले में राज्य सरकारों को 50 फीसदी आरक्षण की सीमा को ध्यान रखना होगा.
सरकार को पहले आंकड़े जुटाने होंगे कि
- ये वर्ग कितने पिछड़े रह गए हैं?
- पर्याप्त प्रतिनिधित्व - इनका प्रतिनिधित्व कितना कम हैं.?
- प्रशासनिक दक्षता - कामकाज पर इसका क्या असर पड़ेगा.?
के मामले में हम 1974 से भी खराब स्थिति में पहुंच गये हैं, मेन स्ट्रीम मीडिया बता रहा सब चंगा है
57,182 पद प्रोन्नति के आधार पर भरे जाते हैं
बता दें कि अध्ययन रिपोर्ट तैयार करने के लिए एल खियांग्ते, के.के सोन और वंदना डांडेल की अध्यक्षता में एक तीन सदस्यीय उच्चस्तरीय समिति का हेमंत सरकार ने गठन किया था. समिति को सरकारी सेवाओं और पदों के अधीन प्रोन्नति में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता पर एक रिपोर्ट तैयार करना था. रिपोर्ट में बताया गया कि सरकार के 34 विभागों में से 31 प्रमुख विभागों में कुल स्वीकृत पदों की संख्या 3,01,1 98 है, जिनमें से 57,182 पद प्रोन्नति के आधार पर भरे जाते हैं. इसे भी पढ़ें - PVR">https://lagatar.in/merger-of-pvr-and-inox-leisure-shares-of-pvr-rose-7-percent-ajay-bijli-will-be-the-new-md/">PVRऔर INOX Leisure का मर्जर, अजय बिजली होंगे नये एमडी, पीवीआर के शेयर 7 फीसदी चढ़े [wpse_comments_template]

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