Ranchi : झारखंड केंद्रीय विश्वविद्यालय (Central University of Jharkhand) में चल रहे भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICSSR) द्वारा प्रायोजित दो-सप्ताहिक क्षमता निर्माण कार्यक्रम (CBP) के छठे दिन का सत्र बौद्धिक दृष्टि से अत्यंत प्रेरक और गहन चर्चा से परिपूर्ण रहा.
कार्यक्रम की शुरुआत त्वमेव माता च पिता त्वमेव के शांत उच्चारण के साथ हुई, जिसने प्रतिभागियों को एकाग्रता और आध्यात्मिक ऊर्जा से भर दिया.पाठ्यक्रम निदेशक प्रो. तपन कुमार बसंतिया एवं डॉ. संहिता सुचरिता ने दिन के विषय विशेषज्ञों का स्वागत कर सत्र की औपचारिक शुरुआत की.
दिन के मुख्य वक्ता इग्नू (IGNOU), नई दिल्ली के शिक्षा संकाय से प्रो. अरविंद कुमार झा रहे, जिन्होंने मिश्रित-विधि दृष्टिकोण तथा गुणात्मक शोध परंपराओं पर केंद्रित कई विस्तृत और विचारोत्तेजक सत्र संचालित किए.
प्रो. झा ने अपने व्याख्यान में शोध की दार्शनिक आधारभूमि पर विशेष ध्यान दिया. उन्होंने शोध को मात्र अन्वेषण नहीं, बल्कि एक व्यवस्थित और तर्कसंगत प्रक्रिया बताया, जिसमें सूचना संग्रह, वर्गीकरण और विश्लेषण के माध्यम से ज्ञान का निर्माण होता है.
आगमनात्मक (Inductive) और7 निगमनात्मक (Deductive) तर्कों को "एक ही सिक्के के दो पहलू" बताते हुए उन्होंने स्पष्ट किया कि ये दोनों शोध प्रक्रियाएँ परस्पर पूरक हैं और एक-दूसरे को सुदृढ़ बनाती हैं.संज्ञानात्मक मनोविज्ञान के संदर्भ में पियाजे और वायगोत्स्की के सिद्धांतों को जोड़ते हुए उन्होंने समझाया कि प्रत्येक व्यक्ति अनुभव, संवाद और चिंतन के माध्यम से अपना अर्थ स्वयं रचता है.
उन्होंने कहा, मानव मस्तिष्क के न्यूरॉन भले ही 99.99% समान हों, पर प्रत्येक व्यक्ति की समझ, सीखने की प्रक्रिया और अर्थ-निर्माण बिल्कुल भिन्न होता है—हर इंसान अपनी विशिष्ट कहानी स्वयं रचता है.प्रतीकात्मक अन्तःक्रिया (Symbolic Interactionism) पर चर्चा ने प्रतिभागियों को सामाजिक पहचान और भूमिकाओं की नई व्याख्याओं पर विचार करने के लिए प्रेरित किया.
समापन सत्र में प्रो. झा ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उपलब्ध शोध छात्रवृत्तियों, फेलोशिप, ट्रैवल ग्रांट और अकादमिक विनिमय कार्यक्रमों की जानकारी दी. इससे प्रतिभागियों को आगे के शोध अवसरों को समझने में महत्वपूर्ण मार्गदर्शन मिला.
रांची विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. बिनोद नारायण ने “शोध में पुस्तकालय और ई-पुस्तकालय का उपयोग” विषय पर सत्र प्रस्तुत किया. उन्होंने पुस्तकालयों और डिजिटल संसाधनों की भूमिका—साहित्य खोज, इंडेक्सिंग सेवाओं, संस्थागत रिपॉज़िटरी, ई-लाइब्रेरी और डेटाबेस उपयोग—पर विस्तार से प्रकाश डाला. उन्होंने शोध सामग्री की विश्वसनीयता और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के प्रभावी तरीकों से प्रतिभागियों को परिचित कराया.
कार्यक्रम के छठे दिन प्रतिभागियों की सक्रियता और उत्साह देखने योग्य रहा. संवाद-आधारित इन सत्रों ने शोधार्थियों को न केवल शोध पद्धतियों की गहरी समझ प्रदान की, बल्कि शोध के प्रति नई दृष्टि विकसित करने के लिए भी प्रेरित किया.
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