Ranchi : पार्वती तिर्की की कविताएं आदिवासी जीवन, प्रकृति और सांस्कृतिक स्मृतियों को बेहद सादगी और संवेदनशीलता के साथ व्यक्त करती हैं. उनका कविता-संग्रह फिर उगना वर्ष 2023 में राधाकृष्ण प्रकाशन से प्रकाशित हुआ था और हिन्दी कविता के समकालीन परिदृश्य में एक नई आवाज़ के रूप में चर्चित हुआ.
सम्मान से बढ़ा आत्मविश्वास : पार्वती तिर्की
पुरस्कार की घोषणा पर पार्वती तिर्की ने कहा कि मैंने कविताओं के माध्यम से संवाद की कोशिश की है. इस संवाद का सम्मान आत्मविश्वास बढ़ाता है. लेखन का मकसद ही विभिन्न संस्कृतियों के बीच विश्वास का रिश्ता बनाना है.
नई भाषा, नई संवेदना की कविताएं
फिर उगना की कविताएं धरती, जंगल, चिड़ियां और चांद-सितारों का प्रतीक नहीं, बल्कि जीवंत अनुभवों की तरह प्रस्तुत करती हैं. वे आदिवासी जीवन के संघर्ष, आधुनिकता के दबाव और सांस्कृतिक जिजीविषा के बीच चल रहे तनाव को बारीकी से उजागर करती हैं.
राजकमल प्रकाशन ने दी बधाई
राजकमल प्रकाशन समूह के अध्यक्ष अशोक महेश्वरी ने कहा कि पार्वती का लेखन दिखाता है कि परंपरा और आधुनिकता साथ-साथ कविता में सांस ले सकती हैं. यह सम्मान हिन्दी कविता में हो रहे नए परिवर्तनों का संकेत है.
झारखंड से बनारस और फिर साहित्य में पहचान
पार्वती तिर्की का जन्म झारखंड के गुमला जिले में हुआ. उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में स्नातक, स्नातकोत्तर और पीएचडी की पढ़ाई की. वर्तमान में वे राम लखन सिंह यादव कॉलेज, रांची विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक के पद पर कार्यरत हैं.
युवा कविता को मिली नई ऊर्जा
पार्वती तिर्की को मिला यह सम्मान हिन्दी कविता की युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणादायक माना जा रहा है. उनकी रचनाएं बताती हैं कि कविता अब सिर्फ शहरों या परंपरागत धारणाओं की मोहताज नहीं, वह गांव, जंगल और हाशिए के जीवन से भी अपने स्वर गढ़ रही है.