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पीएम मोदी ने कहा, वंदे मातरम हर दौर और कालखंड में प्रासंगिक, साल भर चलने वाले स्मरणोत्सव का उद्घाटन किया

New Delhi : प्रधानमंत्री मोदी ने आज शुक्रवार को राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम के 150 साल पूरे होने पर साल भर चलने वाले उत्सव का उद्घाटन किया. कार्यक्रम का शुभारंभ नयी दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में किया गया.  पीएम ने यहां एक स्मारक डाक टिकट और सिक्का भी जारी किया. इस क्रम में वंदे मातरम् वेबसाइड  भी लॉन्च की गयी. 

 

 


प्रधानमंत्री  मोदी ने कहा कि 1927 में महात्मा गांधी ने कहा था, वंदे मातरम् हमारे सामने पूरे भारत की एक ऐसी तस्वीर प्रस्तुत करता है जो अखंड है. हमारे राष्ट्रीय ध्वज में समय के साथ कई बदलाव हुए हैं, लेकिन तब से लेकर आज तक जब भी राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाता है, तो भारत माता की जय, वंदे मातरम् स्वतः ही हमारे मुंह से निकलता है,

 


पीएम मोदी ने कहा कि वंदे मातरम का अर्थ संकल्पों की सिद्धि है. बताया कि वंदे मातरम गुलामी के समय भारत की स्वतंत्रता के संकल्प का उद्घोष बन गया था. पीएम ने गुरुदेव रवींद्र नाथ ठाकुर का जिक्र करते हुए कहा कि  एक बार उन्होंने(गुरुदेव ) कहा था कि बंकिम चंद्र का लिखा हुआ आनंद मठ  सिर्फ उपन्यास नहीं है बल्कि एक ग्रंथ है.

 

पीएम  ने कहा कि गुलामी के कालखंड में आनंद मठ के शब्द कभी भी कैद नहीं रहे, वो गुलामी से आजाद रहे. पीएम मोदी ने वंदे मातरम को हर दौर और कालखंड में प्रासंगिक करार दिया.  कहा कि आनंद मठ अमर है. यह भारत की हजारों साल पुरानी पहचान रही है.  

 

श्री मोदी ने कहा,  सदियों तक दुनिया भारत की समृद्धि की कहानियां सुनती रही है. कहा कि एक समय ग्लोबल जीडीपी का लगभग एक चौथाई हिस्सा भारत के पास था. लेकिन जब बंकिम बाबू ने वंदे मातरम की रचना की, तो भारत अपने उस स्वर्णिम दौर से बहुत दूर चला गया था.

 

पीएम ने कहा, विदेशी आक्रमणकारियों के हमले और अंग्रेजों की शोषणकारी नीतियों ने हमें अपने चंगुल में ले लिया. हमारा देश जब गरीबी से कराह रहा था, तब भी बंकिम बाबू ने समृद्ध भारत का आह्वान किया. उन्हें विश्वास था कि भारत अपने स्वर्णित दौर को फिर से जिंदा कर सकता है. इसलिए उन्होंने वंदे मातरम का आह्वान किया.

 


पीएम मोदी ने कहा आजादी की लड़ाई में वंदे मातरम् की भावना पूरे राष्ट्र में व्याप्त थी.  लेकिन दुर्भाग्य से 1937 में वंदे मातरम् के महत्वपूर्ण पदों को अलग कर दिया गया था.  प्रधानमंत्री ने इसे दुखद करार देते हुए कहा कि राष्ट्रीय गीत को तोड़कर उसके टुकड़े कर दिये गये, जिसने आगे चलकर देश के विभाजन की नींव रखी.  


जान लें कि कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने 1937 में वंदे मातरम्'के कुछ छंदों को राष्ट्रीय गीत के रूप में स्वीकार किया था, जबकि कुछ अन्य छंदों पर विवाद होने के कारण उन्हें हटा दिया गया था. 

 

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