Ranchi: झारखंड हाईकोर्ट ने प्रीति हत्याकांड के फर्जी केस में जेल में रहे युवकों की याचिका पर सुनवाई की. प्रार्थी अजीत कुमार एवं अन्य की ओर से मुआवजा दिये जाने और दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए दायर याचिका पर सुनवाई हुई. कोर्ट ने मौखिक रूप से कहा कि क्यों न इस प्रकरण में दोषी पुलिस अधिकारियों के वेतन से पैसा काटकर पीड़ित युवकों को दिया जाए ? अजित कुमार की ओर से उपस्थित अधिवक्ता आकाश दीप ने इसकी जानकारी दी. वहीं राज्य सरकार की ओर से अधिवक्ता मनोज कुमार अदालत के समक्ष उपस्थित हुए. इस मामले की सुनवाई हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस संजय द्विवेदी की अदालत में हुई. राज्य सरकार द्वारा अगली सुनवाई में कोर्ट को बताना है कि अब तक इस मामले में क्या कार्रवाई हुई है. अब इस मामले की अगली सुनवाई 10 जून हो होगी.
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गौरतलब है कि 15 फरवरी 2014 को रांची के चुटिया की रहने वाली प्रीति नाम की एक युवती लापता हो गई थी. ठीक दूसरे ही दिन 16 फरवरी 2014 को बुंडू थाना क्षेत्र स्थित मांझी टोली पक्की रोड के पास एक युवती का शव बरामद हुआ. शव जली हुई हालत में मिला था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ था कि मृत युवती की हत्या के बाद अपराधियों ने उसे जला दिया था. शव अज्ञात था, पुलिस ने प्रीति के परिजनों को पहचान करने को कहा. कद-काठी लगभग एक जैसी होने के कारण परिजनों ने प्रीति के शव होने की आशंका जताई थी. जिसके बाद पुलिस ने डीएनए मैच कराए बिना मान लिया की शव प्रीति का है.
इस मामले में पुलिस ने प्रीति के अपहरण के बाद हत्या कर जलाने का मामला दर्ज किया. पुलिस ने धुर्वा के तीन युवकों को गिरफ्तार भी किया. जिसके नाम अजित कुमार, अमरजीत कुमार व अभिमन्यु उर्फ मोनू हैं. तीनों युवकों को 17 फरवरी 2014 को जेल भेज दिया गया. जिसके बाद 15 मई 2014 को रांची पुलिस ने तीनों के खिलाफ अपहरण, सामूहिक दुष्कर्म और हत्या कर के जलाने के मामले में आरोप पत्र भी दाखिल कर दिया था. तीनों युवक इनकार करते रहे कि उनका इस मामले से कोई लेना-देना नहीं, लेकिन पुलिस ने उनकी नहीं सुनी.
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सीआइडी की जांच के बाद इस केस के अनुसंधानकर्ता सुरेंद्र कुमार, तत्कालीन चुटिया थाना प्रभारी कृष्ण मुरारी और तत्कालीन बुंडू थाना प्रभारी संजय कुमार निलंबित किया गया था. साबित हुआ था कि इन तीनों ने बिना सही अनुसंधान के तीनों छात्रों को गिरफ्तार किया और उन्हें जेल भिजवा दिया. जेल से बाहर आने के बाद पीड़ित युवकों के परिजनों ने राज्य मानवाधिकार आयोग की शरण ली थी. जिसके बाद अगस्त 2021 में सात साल के बाद तीनों निर्दोष छात्रों को एक-एक लाख रुपये का मुआवजा मिला था.