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रांची का War Cemetery, जहां हर पत्थर एक शहीद की कहानी कहता है

Ranchi : रांची की हरी-भरी वादियों में स्थित War Cemetery एक कब्रिस्तान नहीं है, बल्कि प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में शहीद हुए वीर सैनिकों की अमर गाथाओं का पवित्र स्थल है. 1956 में Commonwealth War Graves commission और Ministry of Defence के संयुक्त प्रयास से स्थापित यह स्मारक आज भी उन 704 वीरों की याद में खड़ा है, जिन्होंने दुनिया के सबसे बड़े युद्धों में अपने प्राण न्यौछावर कर दिए.

 

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इन 704 समाधियों में 51 भारतीय वीर शामिल हैं, जिनमें से 4 झारखंड की मिट्टी के लाल हैं, जिनके नाम है कमल पी. तोपनो (इंडियन जनरल सर्विस कॉप्स), कालीप तोपनो, पौलुस कच्छप, देवांगन मरांडी (बिहार रेजिमेंट). बाकी स्मारक ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूजीलैंड और अन्य देशों के उन सैनिकों के हैं जिन्होंने मानवता की रक्षा के लिए युद्धभूमि में अंतिम सांस ली.

 

यहां हर समाधि के ऊपर एक headstone लगा है, पत्थर पर लिखें गए शब्द, परिजनों का अंतिम विदाई संदेश है. इन संदेशों को पढ़ते हुए मन भारी हो जाता है, आंखें नम हो जाती हैं. हर एक पंक्ति यह बताती है कि किसी का बेटा, किसी का भाई, किसी का पिता, कभी लौटकर घर नहीं आया.

 

यह स्थल हमें एक गहरी सीख देता है, यहां न ऊंच-नीच है, न जात-पात, न रैंक का फर्क. बड़े से बड़ा अधिकारी और सबसे छोटा सिपाही सब एक पंक्ति में, एक समान सम्मान के साथ. यही वजह है कि यहां कदम रखते ही लगता है, जैसे इंसानियत हर भेदभाव से ऊपर है.


Commonwealth War Graves Commission की स्थापना 1917 में Royal Charter ने की थी. यह अंतरराष्ट्रीय संस्था दुनिया भर में लगभग 27 देशों में युद्ध स्मारकों और कब्रों की देखरेख करती है. इनका मानना है कि हर शहीद हमारे जैसा इंसान था और उनकी कहानियों को जीवित रखना हमारी ज़िम्मेदारी है.

 

रांची का यह War Cemetery सिर्फ पत्थरों का ढेर नहीं, बल्कि उन अमर वीरों की आत्माओं का पवित्र स्थान है, जिनकी कुर्बानी ने इतिहास लिखा.यह वह जगह है, जहां जाकर आप महसूस करेंगे कि असली पहचान जाति, धर्म या पद से नहीं, बल्कि उस बलिदान से होती है जो इंसान देश और इंसानियत के लिए देता है.

 

 


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