Search

पढ़ें, इंफोसिस पर पांचजन्य में छपा वह लेख, विवाद उठने पर RSS ने 1948 से छप रहे अपने मुखपत्र से ही झाड़ लिया पल्ला

इंफोसिस : साख और आघात (दिनांक 31-अगस्त-2021) आयकर रिटर्न पोर्टल में खामियों से करदाताओं को हो रही दिक्कतों से इंफोसिस की साख खतरे में है. यह पोर्टल इंफोसिस ने ही बनाया है. इससे पहले इंफोसिस ने जीएसटी पोर्टल भी बनाया था. इसमें तमाम खामियों से व्यापारियों को बहुत परेशानी हुई. ऐसी दिक्कतों से सरकार पर जनता के भरोसे पर असर पड़ता है. इंफोसिस क्या विदेश में दी जाने वाली अपनी सेवाओं में ऐसी लापरवाही कर सकती है, सवाल बहुत से हैं. जुलाई और अगस्त का महीना वर्ष का वह समय होता है, जब लोग अपना आयकर रिटर्न भरते हैं. यह आय और उस पर लगने वाले कर का हिसाब-किताब होता है. यह काम पूरी तरह से ऑनलाइन होता है. लोग इंटरनेट पर वेबसाइट के माध्यम से बड़ी ही सुगमता से अपना रिटर्न जमा कर देते हैं, लेकिन इस वर्ष अभी तक यह काम ठीक से आरंभ नहीं हो पाया है. रिटर्न दाखिल करने के लिए आयकर विभाग ने जो नयी वेबसाइट बनवायी है, उसमें बार-बार समस्याएं आ रही हैं. इसे बनाने का ठेका जानी-मानी सॉफ्टवेयर कंपनी इंफोसिस को दिया गया था. लेकिन ‘ऊंची दुकान, फीका पकवान’ और ‘नाम बड़े, दर्शन छोटे’ जैसी कहावतें चरितार्थ हो रही हैं. प्रश्न उठ रहा है कि इंफोसिस जैसी कंपनी ने एक सामान्य से काम में इतनी असावधानी क्यों बरती? क्या यह उपभोक्ता को संतोषजनक सेवाएं न दे पाने की सामान्य शिकायत है या इसके पीछे कोई सोचा-समझा षड्यंत्र छिपा है?

पहली बार नहीं हुई है गलती

किसी से पहली बार चूक हो तो माना जा सकता है कि यह संयोगमात्र है, लेकिन एक जैसी चूक बार-बार हो तो संदेह पैदा होना स्वाभाविक है. ऐसे आरोप लग रहे हैं कि इंफोसिस का प्रबंधन जान-बूझकर भारतीय अर्थव्यवस्था को अस्थिर करने का प्रयास कर रहा है. सोशल मीडिया पर कई जानकारों ने भी खुलकर इस बारे में शक जताया है. इन संदेहों और आरोपों के पीछे कुछ स्पष्ट कारण हैं. आयकर रिटर्न पोर्टल से पहले इंफोसिस ने ही जीएसटी की वेबसाइट विकसित की थी. जीएसटी देश की अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए बहुत बड़ा कदम था. लेकिन जब इसकी वेबसाइट लोगों के सामने आई तो सभी को भारी निराशा हुई. बार-बार वेबसाइट बंद होने और अन्य तकनीकी त्रुटियों के कारण लोगों में भारी असंतोष देखने को मिला था. इसी तरह कंपनी मामलों के मंत्रालय की वेबसाइट भी इंफोसिस ने ही बनायी और जो वेबसाइट बनकर तैयार हुई, उसने उद्यमियों और व्यापारियों के जीवन को आसान करने के बजाय और भी कठिन बना दिया.

संवेदनशील वेबसाइटों से खिलवाड़

ये सभी वे सरकारी वेबसाइट हैं, जिनसे कंपनियों, कारोबारियों और सामान्य करदाताओं को बार-बार काम पड़ता है. सरकारें निजी कंपनियों को ठेका देकर वेबसाइट्स बनवाती हैं. सामान्य रूप से सबसे कम बोली लगाने वाले को ठेका दिया जाता है. इसे ‘एल-1’ कहते हैं. यह देखा जा रहा है कि इंफोसिस सबसे निचली बोली लगाकर ठेका ले लेती है. चूंकि वह देश की सबसे प्रतिष्ठित सॉफ़्टवेयर कंपनी है, इसलिए सरकारी एजेंसियां भी उसे ठेका देने में झिझकती नहीं हैं. लेकिन संदेह का मुख्य कारण भी यही बात है. कोई कंपनी इतनी कम बोली पर महत्वपूर्ण सरकारी ठेके क्यों ले रही है? चाहे जीएसटी हो या आयकर पोर्टल, इन दोनों में हुई गड़बड़ी ने अर्थव्यवस्था में करदाताओं के विश्वास को तोड़ने का काम किया है. कहीं ऐसा तो नहीं कि कोई देशविरोधी शक्ति इंफोसिस के माध्यम से भारत के आर्थिक हितों को चोट पहुंचाने में जुटी है? हमारे पास यह कहने के कोई पुख्ता साक्ष्य नहीं हैं, किंतु कंपनी के इतिहास और परिस्थितियों को देखते हुए इस आरोप में कुछ तथ्य दिखायी दे रहे हैं.

इंफोसिस की ‘देशविरोधी’ फंडिंग

इंफोसिस पर नक्सलियों, वामपंथियों और टुकड़े-टुकड़े गैंग की सहायता करने के आरोप लगते रहे हैं. देश में चल रही कई विघटनकारी गतिविधियों को इंफोसिस का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सहयोग मिलने की बात सामने आ चुकी है. द वायर, ऑल्ट न्यूज और स्क्रॉल जैसी दुष्प्रचार वेबसाइट के पीछे भी इंफोसिस की फंडिंग मानी जाती है. जातिवादी घृणा फैलाने में जुटे कुछ संगठन भी इंफोसिस की चैरिटी के लाभार्थी हैं. जबकि कहने को यह कंपनी सॉफ़्टवेयर बनाने का काम करती है. क्या इंफोसिस के प्रमोटर्स से यह प्रश्न नहीं पूछा जाना चाहिए कि देशविरोधी और अराजकतावादी संगठनों को उसकी फंडिंग के पीछे क्या कारण हैं? क्या ऐसे संदिग्ध चरित्र वाली कंपनी को सरकारी निविदा प्रक्रियाओं में सम्मिलित होने की छूट होनी चाहिए? कंचन गुप्ता, वरिष्ठ पत्रकार @KanchanGupt यह दूसरा बड़ा सरकारी प्रोजेक्ट है, जिसे इंफोसिस ने चौपट कर दिया. कंपनी सबसे कम बोली लगाकर ठेके ले रही है. लेकिन या तो उसके पास यह काम करने की क्षमता ही नहीं है या वह इसे ठीक से करना ही नहीं चाहती. दो बड़ी विफलताएं मात्र संयोग नहीं हो सकतीं. श्री अय्यर, लेखक @SreeIyer1 सरकार ने आयकर सॉफ्टवेयर में आ रही समस्याओं को दूर करने के लिए इंफोसिस को 15 सितंबर तक समय दिया है, लेकिन क्या कंपनी इसे समयसीमा में ठीक करने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ संसाधन लगाएगी? विजय पटेल, ट्विटर से @vijaygajera
  एनआर नारायणमूर्ति के पुत्र रोहन मूर्ति ने हावर्ड विश्वविद्यालय में मूर्ति क्लासिकल लाइब्रेरी ऑफ इंडिया की स्थापना कराई है. स्वयं को भारतविद् बताने वाले अमेरिकी प्रोफेसर शेल्डन पोलॉक को इसका एडिटर बनाया गया है. शेल्डन पोलॉक भारतीय संस्कृति और धर्मग्रंथों को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करने के ईसाई मिशनरी अभियान का बड़ा मोहरा हैं. यह लाइब्रेरी नई पीढ़ी के ब्रेनवॉशिंग के लिए प्रयोग हो रही है.

तीन काम, तीनों में खामी

  • आयकर रिटर्न पोर्टल णसिस ने बनाया, अब तक ठीक से शुरू नहीं हो पाई. फाइलिंग
  • जीएसटी की वेबसाइट इंफोसिस ने बनाई, खामियों से व्यापारियों में रोष पैदा हुआ.
  • कंपनी मामलों के मंत्रालय की वेबसाइट इंफोसिस ने बनाई उद्यमियों को हुई कठिनाई.

विपक्षी दलों की रहस्यमय चुप्पी

आयकर रिटर्न के पोर्टल के साथ षड्यंत्र के संदेह का एक अन्य कारण राजनीतिक भी है. हर छोटे-मोटे मुद्दे पर हंगामा करने वाले विपक्षी नेता इस विषय पर मौन हैं. लोग पूछ रहे हैं कि कहीं कांग्रेस के इशारे पर ही कुछ निजी कंपनियां अव्यवस्था पैदा करने के प्रयास में तो नहीं है? इंफोसिस के मालिकों में से एक नंदन नीलेकणी कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ चुके हैं. कंपनी के संस्थापक एनआर नारायण मूर्ति का वर्तमान सत्ताधारी विचारधारा के प्रति विरोध किसी से छिपा नहीं है. इंफोसिस अपने महत्वपूर्ण पदों पर विशेष रूप से एक विचारधारा विशेष के लोगों को बिठाती है. इनमें अधिकांश बंगाल के मार्क्सवादी हैं. ऐसी कंपनी यदि भारत सरकार के महत्वपूर्ण ठेके लेगी तो क्या उसमें चीन और आईएसआई के प्रभाव की आशंका नहीं रहेगी?

‘आत्मनिर्भर भारत’ को ठेस का प्रयास?

एक आरोप यह भी है कि इंफोसिस जान-बूझकर अराजकता की स्थिति पैदा करना चाहती है, ताकि सरकारी ठेके स्वदेशी कंपनियों को ही देने की नीति बदलनी पड़े. इंफोसिस का अधिकांश व्यापार भारत से बाहर है. क्या यह संभव है कि यह कंपनी अपने किसी विदेशी क्लाइंट को ऐसी खराब सेवाएं दे? जब भी किसी भारतीय कंपनी पर खराब सेवाएं देने का आरोप लगता है, तो कहीं न कहीं इससे भारतीयों की कार्यकुशलता और ‘आत्मनिर्भर भारत’ के अभियान पर भी दाग लगता है. आज विवाद में भले ही इंफोसिस का नाम है, लेकिन इससे अन्य भारतीय कंपनियों की छवि पर भी बुरा प्रभाव अवश्य पड़ता है. इंफोसिस का संदिग्ध व्यवहार इस तरह के संदेहों को जन्म दे रहा है.

भ्रष्ट अफसरशाही भी है सहायक

इंफोसिस की संदिग्ध गतिविधियों में बड़ा हाथ भ्रष्ट सरकारी अफसरशाही का भी माना जा रहा है. वित्त मंत्रालय के अधिकारियों ने वेबसाइट की खराबी के लिए इंफोसिस के प्रबंधन पर दबाव बनाने का कोई विशेष प्रयास नहीं किया. अंतत: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को स्वयं हस्तक्षेप करना पड़ा. उन्होंने जैसे ही इंफोसिस के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सलिल पारेख को तलब किया, तुरंत ही वेबसाइट शुरू हो गई. यह काम निचले स्तर के अधिकारी भी आसानी से कर सकते थे. कंपनी पर आर्थिक दंड लगाकर उसे आगे के लिए ब्लैकलिस्ट भी किया जा सकता है.

डेटा चोरी के प्रयास में हैं कंपनियां

इंफोसिस का यह पूरा गड़बड़झाला एक और बड़े षड्यंत्र का संकेत है. विदेशी शक्तियों की कुदृष्टि हमेशा से भारतीयों के डेटा पर रही है. कुछ वर्ष पहले ही अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस के ओपन सोसाइटी फाउंडेशन और गूगल डॉट ओआरजी ने मिलकर भारत में एक फंड बनाया था. इसने आधार प्रोजेक्ट से जुड़ी एक कंपनी को खरीदकर कुछ दिन बाद बंद कर दिया था. आरोप है कि यह पूरा सौदा इस भारतीय कंपनी के पास पड़े आधार डेटा की चोरी के लिए किया गया था. इसी तरह जीएसटी से जुड़ा डेटा लीक होने के आरोप भी समय-समय पर लगते रहे हैं. कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि इंफोसिस ऐसा ही कुछ आयकरदाताओं की सूचनाओं के साथ करने की तैयारी में हो. (सौजन्य : पांचजन्य) इसे भी पढ़ें- 25">https://lagatar.in/465-posts-of-judges-are-lying-vacant-in-25-high-courts-recommendation-for-appointment-through-collegium-system/">25

हाईकोर्ट में जजों के 465 पद पड़े हैं रिक्त, कोलेजियम सिस्टम से नियुक्ति की सिफारिश
[wpse_comments_template]

Comments

Leave a Comment

Follow us on WhatsApp