Seraikela (Bhagya Sagar Singh) : मिट्टी से बने विविध वस्तुओं के निर्माण का पुश्तैनी धंधा “कुम्हार” परिवार सदियों से करते आ रहे हैं. हर दस गांवों के मध्य इनके कुछ परिवारों की उपलब्धता रहा करती थी एवं समाज में इनकी विशेष पूछ भी रहती थी. कारण पूजा हो या मांगलिक कार्य, भोजन बनाने की वस्तु हो या जल भरने के घड़े व सुराही, मनोरंजन की वस्तुएं हो या मकान के छप्पर के लिये खपड़ा हर आवश्यक व उपयोगी वस्तुओं का निर्माण इन्हीं के द्वारा होता था. लेकिन मौजूदा समय में अनेक पुश्तैनी धंधों की तरह इनके धंधे पर भी असर पड़ा है. विगत कुछ दशकों से एलम्युनियम एवं प्लास्टिक के बहुतायत उपयोग के कारण मिट्टी से बनी वस्तुओं के बाजार पर असर पड़ा है.

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नगरपंचायत क्षेत्र में हैं लगभग 30 कुम्हार परिवार
सरायकेला नगरपंचायत क्षेत्र में लगभग 30 कुम्हार परिवार हैं. अगल-बगल के गांवों में भी अनेक कुम्हार परिवार सदियों से बसे हुए हैं. पुश्तैनी धंधे को बचाये रखना अब इनके लिए काफी कष्टदायक हो गया है. नई पीढ़ी रोजगार के अन्य साधन तलाश रही है तथा ग्रामीण क्षेत्र के कुम्हार यहां-वहां मजदूरी करने को विवश हैं. आज न तो इन्हें क्षेत्र में मिट्टी मिल रही है और न ही बाजार. इनके पास पूंजी भी नहीं कि बनाये वस्तुओं को कुछ दिन रख कर ग्राहकों की प्रतीक्षा करें. कुछ कुम्हार अपने पुश्तैनी धंधे को सिसकते एवं घसीटते हुए चला भी रहे हैं. लेकिन इन्हें भी परिवार सहित दो वक्त की रोटी की व्यवस्था हेतु बनाई हुई वस्तुओं को थोक कारोबार करने वाले को कम कीमत पर बेचना पड़ता है.
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साप्ताहिक हाट परिसर में दुकान लगाने को नहीं मिलती समतल जगह
सरायकेला के संतोष प्रजापति जो “माटी कला बोर्ड” के सदस्य भी हैं उन्होंने कहा कि माटी कला बोर्ड की पहल पर हमें विद्युत चालित चक्के ऋण पर मिले हैं. सरकार हमारे धंधे को बचाए रखने एवं रोजगार उपलब्ध कराने पर ध्यान नहीं देती है. पहले हमलोग किसी के भी खेत या सरकारी भूखंडों से मिट्टी लाते थे. लेकिन आज हमें मिट्टी निकालने नहीं दिया जाता है. मिट्टी के लिए भूखंड चिन्हित करनी चाहिये. सरायकेला साप्ताहिक हाट परिसर पर दुकान लगाने को समतल जगह नहीं मिलती है. कई बार मिट्टी के घड़े इत्यादि गिर कर टूट जाते हैं.
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मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हार को बैंक भी नहीं देती लोन
नगरपंचायत में जब हमलोगों के दुकान परिसर को समतल कराने का आग्रह किया गया तो बोला गया कि तुमलोग अपने खर्च पर मिट्टी भराई करो. जबकि हम दुकान लगाने का मासूल भी देते हैं. उन्होंने कहा कि मिट्टी से बने वस्तुओं का कारोबार करने वालों को बैंक भी ऋण देने से आनाकानी करती है. जबकि हमें भी केसीसी जैसी सुविधा मिलनी चाहिए. आज कल सिर्फ पूजा-त्योहारों तक ही मिट्टी के बने बर्तनों का उपयोग सिमट कर रह गया है. पूजा एवं त्योहार मौसमी होते हैं. जब तक ऋण की सुविधा नहीं मिलेगी हमलोग अपने धंधे को बढ़ा नहीं सकते.
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