Ranchi : मध्य भारत के चार राज्यों (मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और दक्षिणी उत्तर प्रदेश) के 103 जिलों पर किए गए एक अध्ययन में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है. अध्ययन में पता चला है कि 103 जिलों में से करीब 30 फीसदी जिले ऐसे हैं, जो जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए पर्याप्त रूप से तैयार नहीं हैं. इतना ही नहीं इन जिलों में बढ़ते तापमान, अनियमित वर्षा और सूखे जैसी स्थितियों से मुकाबले के लिए संस्थागत और पारिस्थितिक संसाधनों की गंभीर कमी है.
पीएचडी स्कॉलर ने 50 संकेतकों का किया विश्लेषण
यह शोध इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एनवायरनमेंट एंड क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित हुआ है, जिसे जीबी पंत यूनिवर्सिटी, उत्तराखंड के कृषि अर्थशास्त्र विभाग में पीएचडी स्कॉलर चैतन्य अशोक अढव ने डॉ. हरिनाथ सिंह के मार्गदर्शन में किया है. अध्ययन में जलवायु अनुकूलता को परखने के लिए कुल 50 संकेतकों का विश्लेषण किया गया, जिनमें वर्षा पैटर्न, वन क्षेत्र, सिंचाई सुविधा, साक्षरता दर, फसल बीमा, सड़कों और बाजारों की उपलब्धता जैसे पहलू शामिल थे.
28.71% अत्यधिक सक्षम व 27.39% जिले कम सक्षम
अध्ययन में पाया गया कि केवल 28.71% जिले अत्यधिक सक्षम हैं, जबकि 27.39% जिले कम सक्षम की श्रेणी में आते हैं. कम सक्षम जिलों में भोपाल, दमोह, गुना, मुरैना, पन्ना, सीधी और टीकमगढ़ जैसे जिले शामिल हैं, जहां बुनियादी ढांचे, शिक्षा और संसाधनों की भारी कमी के कारण जलवायु संकट से निपटने की तैयारी बेहद कमजोर है. वहीं अहिल्या नगर, सांगली, कोल्हापुर (महाराष्ट्र) और रायपुर (छत्तीसगढ़) जैसे जिले जलवायु अनुकूलता में अधिक सक्षम पाए गए, जिनमें बेहतर संस्थागत पहुंच, सड़कें और अन्य आधारभूत सुविधाएं प्रमुख कारण रहे
स्थानीय स्तर पर जलवायु योजनाएं बनाने की जरूरत पर जोर
विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि राष्ट्रीय स्तर की नीतियों से आगे बढ़ते हुए, क्षेत्रीय और जिला स्तरीय जलवायु योजनाएं बनाई जानी चाहिए. साथ ही जल संरक्षण, फसल विविधीकरण, ग्रामीण सेवाओं और समुदाय-आधारित संसाधन प्रबंधन जैसे उपायों को प्राथमिकता देने की जरूरत है. अध्ययनकर्ता अढव ने कहा है कि जलवायु से निपटने की क्षमता केवल तकनीकी संसाधनों पर नहीं, बल्कि सामाजिक पूंजी और स्थानीय संस्थानों की तैयारी पर भी निर्भर करती है.