class="aligncenter wp-image-1010867 size-full" src="https://lagatar.in/wp-content/uploads/2025/02/medal1.jpg"
alt="" width="600" height="400" /> सुषमा के पिता का बचपन में ही देहांत हो गया था. मां को कभी-कभी ही काम मिलता है, सप्ताह में लगभग एक हजार रुपये कमाती हैं, जिससे घर के लिए चावल, दाल और रोटी का इंतजाम करना पड़ता है. जो पैसा बचता है, उसका उपयोग कॉलेज आने के लिए ऑटो किराए और पढ़ाई में किया जाता है. ठेकेदार से मजदूरी का भुगतान देर से मिलता है, जिसके कारण कभी-कभी कॉलेज की क्लास भी छूट जाती है. लेकिन जो समय मिलता है, वह पढ़ाई में लगा देती हैं. आज गोल्ड मेडल लेकर वह बहुत खुश हैं और उनका सपना प्रोफेसर बनने का है. वहीं सब्जी बेचने वाले माता-पिता, बंसती देवी और पिता विनोद कुमार, बेटे अभिषेक कुमार को राज्यपाल के हाथों से गोल्ड मेडल लेते हुए देख रहे थे. मां-बाप कोने में बैठे थे और बेटा गोल्ड मेडल लेने के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहा था. जैसे ही मंच से अभिषेक का नाम पुकारा गया. वैसे ही मां-बाप दोनों अपनी कुर्सियों से खड़े हो गए और खुशी से अपने बेटे के लिए ताली बजाने लगे. अभिषेक ने बताया कि उनके माता-पिता कम पढ़े-लिखे हैं और खुले आसमान के नीचे साग-सब्जी हाट बाजारों में बेचने जाते हैं. माता-पिता की मेहनत के कारण ही वह आज पढ़-लिख पा रहे हैं. फिलहाल वह विप्रो कंपनी में काम के साथ पढ़ाई भी कर रहे हैं. इसे भी पढ़ें -झारखंड">https://lagatar.in/jharkhands-health-minister-will-explain-the-connection-between-the-brain-and-spinal-cord/">झारखंड
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