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सुप्रीम कोर्ट ने कहा, महिलाओं के खिलाफ अपराध में शादी या मेल-मिलाप का सुझाव न दें अदालतें, लक्ष्मण रेखा पार न करें

 NewDelhi : सुप्रीम कोर्ट ने यौन उत्पीड़न के एक आरोपी को पीड़िता से राखी बंधवाने की शर्त पर जमानत देने के मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के एक फैसले को पलटते हुए एक गाइडलाइन भी जारी की है. गाइडलाइन के तहत सुप्रीम कोर्ट ने यौन अपराधों से जुड़े मामलों में महिलाओं के खिलाफ रुढ़िवादी रुख से बचने की सलाह दी है.  SC ने कहा कि  अदालतें अपनी ओर से पीड़िता व आरोपी के बीच शादी, मेलमिलाप या समझौता करने की शर्त, सुझाव न दें. सुप्रीम कोर्ट  ने अपनी गाइडलाइन में कहा है  कि जमानत शर्तों को आरोपी और पीड़ित के बीच संपर्क को अनिवार्य या अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. जमानत शर्तों क तहत  शिकायतकर्ता को आरोपी द्वारा किसी भी उत्पीड़न से बचाने के लिए प्रयास करना चाहिए. इस क्रम में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जहां आवश्यक समझा जाये, शिकायतकर्ता / अभियोजन पक्ष की सुनवाई की जा सकती है कि क्या कोई अजीब परिस्थिति है जिसके कारण उसकी सुरक्षा के लिए अतिरिक्त शर्तों की आवश्यकता हो सकती है. इसे भी पढ़ें : ">https://lagatar.in/nirmala-sitharaman-said-in-rajya-sabha-be-it-vijay-mallya-or-nirav-modi-and-mehul-choksi-all-are-coming-to-india/39360/">

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आरोपी जमानत देने पर  शिकायतकर्ता को तुरंत सूचित किया जा जाये  

SC ने कहा कि जहां भी जमानत दी जाती है, शिकायतकर्ता को तुरंत सूचित किया जा जाये कि आरोपी को जमानत दे दी गयी है. जमानत शर्तों में महिलाओं और समाज में उनके स्थान को लेकर रुढ़िवाद या पितृसत्तात्मक धारणाओं से परे हटकर निर्देश होने चाहिए. सीआरपीसी की आवश्यकताओं के अनुसार कड़ाई होनी चाहिए. इसे भी पढ़ें :  सुनंदा">https://lagatar.in/in-sunanda-pushkar-death-case-shashi-tharoors-request-court-to-acquitte-him-hearing-again-on-23-march/39348/">सुनंदा

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अदालतों को न्यायक्षेत्र या अधिकारों की मर्यादा की जानकारी होनी चाहिए

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यायालयों को किसी मामले की सुनवाई करते समय, अभियोजन पक्ष और अभियुक्तों के बीच शादी करने के लिए किसी भी धारणा (या किसी भी कदम को प्रोत्साहित) का सुझाव या सुनवाई नहीं देना चाहिए, क्योंकि यह उनकी शक्तियों और अधिकार क्षेत्र से परे है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कोर्ट अपनी तरफ से मेल मिलाप या समझौता करने की शर्त, सुझाव न दें. कहा कि अदालतों को अपने न्यायक्षेत्र या अधिकारों की मर्यादा की जानकारी होनी चाहिए. उस लक्ष्मण रेखा से बाहर ना जायें. संवेदनशीलता हर कदम पर दिखनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने हिदायत दी कि जिरह, बहस, आदेश और फैसले में हर जगह पीड़ा का अहसास कोर्ट को भी रहना चाहिए. खास कर जज अपनी बात रखते समय ज्यादा सावधान, संवेदनशील रहें, ताकि पीड़ित का आत्मविश्वास न डगमगाये और न ही कोर्ट की निष्पक्षता पर कोई असर पड़े. इसे भी पढ़ें : प्रताप">https://lagatar.in/arvind-subramaniam-also-resigns-from-ashoka-university-after-pratap-bhanu-mehta/39333/">प्रताप

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