Ranchi: रांची विश्वविद्यालय स्थित यूजीसी-एमएमटीटीसी द्वारा आयोजित सात दिवसीय शिक्षक प्रशिक्षण कार्यशाला के अंतर्गत आज दो महत्वपूर्ण शैक्षणिक सत्रों का आयोजन हुआ. इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य पारंपरिक भारतीय ज्ञान प्रणाली को आधुनिक संदर्भ में पुनर्परिभाषित करना रहा.
पहले सत्र में डॉ अभय कृष्ण सिंह, विभागाध्यक्ष, भूगोल विभाग, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, ने ‘आपदा प्रबंधन, पर्यावरणीय संरक्षण और भारतीय ज्ञान परंपरा’ विषय पर महत्वपूर्ण व्याख्यान दिया.
उन्होंने आपदा और प्राकृतिक संकटों के बीच का अंतर स्पष्ट किया और बताया कि भारतीय पारंपरिक जल संरक्षण प्रणालियां जैसे बावड़ी, जोहड़, एरी प्रणाली और पूर्वोत्तर की जाबो पद्धति आज भी प्रासंगिक हैं. इसके अलावा, महाभारत और अर्थशास्त्र में उल्लिखित आपदा-प्रबंधन नीतियों को वर्तमान सरकारी योजनाओं के संदर्भ में उपयोगी माना.
दूसरे सत्र में रांची विश्वविद्यालय की डॉ स्मृति सिंह ने ‘तन्त्रयुक्ति: अनुसंधान की भारतीय पद्धति’ विषय पर गहन चर्चा की. उन्होंने बताया कि प्राचीन भारतीय ग्रंथों में तन्त्रयुक्ति — अर्थात सुव्यवस्थित तर्क प्रणाली — को शास्त्र रचना का मूल आधार माना गया था. उन्होंने यूनेस्को 2024 की रिपोर्ट का उल्लेख करते हुए कहा कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र में स्वदेशी शोध पद्धतियों की भागीदारी केवल 36% है, जिसे बढ़ाना जरूरी है. तन्त्रयुक्तियां इस दिशा में एक प्रभावी विकल्प साबित हो सकती हैं.
कार्यक्रम के समापन में दोनों वक्ताओं ने इस बात पर बल दिया कि अगर पारंपरिक ज्ञान को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जोड़ा जाए तो यह न केवल अतीत की धरोहर बनेगा, बल्कि वर्तमान समस्याओं का समाधान करने और भविष्य की दिशा तय करने में भी सहायक होगा.