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डिजिटल डोपामाइन का जाल: कहीं आपका बच्चा भी तो इसकी गिरफ्त में नहीं?

Ranchi: रांची की 13 साल की वर्णिका, एक होनहार छात्रा. लेकिन पिछले कुछ महीनों में उसका व्यवहार बदलने लगा. स्कूल से लौटते ही घंटों मोबाइल फोन में खो जाना, देर रात तक जागना और सुबह स्कूल के लिए मना करना उसकी दिनचर्या बन गई थी. वर्णिका की मां दिव्या को लगा, ये उम्र का असर है. लेकिन जब पढ़ाई गिरने लगी, दोस्तों से बातचीत बंद हो गई और वर्णिका हर वक्त चिड़चिड़ी रहने लगी. तब जाकर उन्होंने एक बाल मनोवैज्ञानिक से संपर्क किया.


विशेषज्ञों का कहना है कि सोशल मीडिया, ऑनलाइन गेम्स और वीडियो ऐप्स बच्चों को डोपामाइन की “हिट” दे रहे हैं.  यानी तेज़ी से मिलने वाला सुख. ये बार-बार मस्तिष्क को उत्तेजित करता है, जिससे बच्चा असली दुनिया से कटने लगता है. 
लेकिन समाधान भी है. स्क्रीन टाइम को सीमित करना, बच्चों को शारीरिक गतिविधियों में लगाना, टेक-फ्री ज़ोन बनाना और डिजिटल डिटॉक्स करना इस समस्या से बाहर निकालने के उपाय हो सकते हैं. आज वर्णिका पहले से बेहतर है. सुबह उठती है, स्कूल में अच्छा कर रही है और डांस क्लास में मन लगा रही है. डॉक्टरों की एक ही सलाह “टेक्नोलॉजी को दोस्त बनाएं, मालिक नहीं.


वर्णिका की वापसी  स्क्रीन से ज़िंदगी की ओर


वर्णिका 13 साल की, एक होशियार लड़की थी. लेकिन जब उसकी दुनिया स्मार्टफोन के चार इंच की स्क्रीन में सिमट गई, तो असली ज़िंदगी पीछे छूट गई. हर शाम, स्कूल से आते ही वर्णिका घंटों टिकटॉक और इंस्टाग्राम पर रील्स देखने लगी. नींद उड़ गई, पढ़ाई बिगड़ने लगी और चुप्पी उसका स्वभाव बन गई. उसकी मां, दिव्या, उसे देखते हुए बस यही सोचती रहीं “क्या ये मेरी वही बेटी है, जो कहानियों में खो जाती थी? आखिरकार, उन्होंने मदद ली बाल मनोवैज्ञानिक डॉ.काव्या से.


समझ आया कि ये सिर्फ आदत नहीं, डोपामाइन का असर था, वो केमिकल जो स्मार्टफोन से मिलने वाले छोटे-छोटे इनामों के कारण मस्तिष्क को बार-बार उत्तेजित करता है.


दिव्या ने ठान लिया वर्णिका को वापस लाना है


वर्णिका की मां दिव्या ने स्क्रीन टाइम घटाया, डांस क्लास शुरू करवाई, रात को फोन बंद करके कहानियां पढ़ीं और साथ मिलकर गेम खेले. तीन महीने बाद, वर्णिका बदल गई. अब वह फिर से खुलकर हंसती है, दोस्तों के साथ खेलती है और मोबाइल सिर्फ एक हिस्सा है ज़िंदगी नहीं.
 क्या आपका बच्चा भी 'डोपामाइन हाई' पर है?


स्मार्टफोन अब बच्चों के लिए सिर्फ एक गैजेट नहीं, बल्कि एक डोपामाइन मशीन बन चुका है.13 साल की वर्णिका इसका उदाहरण है. एक होशियार, मिलनसार बच्ची जो धीरे-धीरे डिजिटल लत की तरफ बढ़ रही थी.


चिड़चिड़ापन, नींद की कमी, ध्यान भटकना, और सामाजिक दूरी  ये सब संकेत हैं कि बच्चा “डिजिटल डोपामाइन” के जाल में है.
डॉक्टर काव्या कहती हैं कि, डिवाइस तत्काल संतोष देते हैं, लेकिन दीर्घकालिक संतुलन छीन लेते हैं.


तो आप क्या कर सकते हैं?


* स्की्न टाइम सीमित करें.


* बच्चों को शारीरिक और रचनात्मक गतिविधियों से जोड़ें.


* बेडरूम और भोजनस्थल को टेक-फ्री बनाएं.


* डोपामाइन डिटॉक्स का एक दिन रखें.


* डिजिटल वेलनेस की शिक्षा दें.


वर्णिका की मां दिव्या ने यही किया और तीन महीने में उनकी बेटी फिर से मुस्कुराने लगी. आप भी यह बदलाव ला सकते हैं, अगर आप सतर्क और सक्रिय रहें.