Ranchi : झारखंड अलग राज्य की लड़ाई लड़ने वाले झारखंड आंदोलनकारी बुधवार को प्रमाण पत्र लेने विभिन्न इलाकों से सुबह ही पहुंच गए. किसी की आंखों में गर्व था, तो किसी की बरसों पुरानी पीड़ा आज भी छलक रही थी.
बुधवार को रांची विश्वविद्यालय के आर्यभट्ट सभागार परिसर में झारखंड आंदोलनकारी प्रमाण पत्र लेने पहुंचे थे. यहां पर रांची, सिल्ली, बेड़ो, रातु, तमाड़, बुंडू समेत विभिन्न प्रखंडों के आंदोलनकारी शामिल थे.
प्रमाण पत्र बांटने के लिए अलग -अलग प्रखंड के स्टॉल लगाए गए थे. दीवारों पर आंदोंलनकारियों के लिस्ट बनाकर चिपकाए गए. जो बुजुर्ग और पढ़ नहीं पाते थे उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ा. लोग कतार में खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार करते दिखे.
बेड़ो के 70 वर्षीय बिरसा मिंज सुबह 7 बजे ही पहुंच गए. जेल नहीं गए, पुलिस की मार भी नहीं खाई, लेकिन बेड़ो से जमशेदपुर, बंगाल और पटना तक झारखंड राज्य के लिए संघर्ष में हर मोर्चे पर डटे रहे. उन्होंने बताया कि आज पहचान मिली है. दिल से खुशी है.
घाघरा नदी टोली के विजय टोप्पो भी पहुंचे थे. 54 साल की उम्र बीत चुकी था. जिला प्रशासन के पदाधिकारियों से प्रमाण पत्र हाथ में लेते ही भावुक हो उठे. आंदोलन के समय उनके तीन बच्चे थे. पुलिस से झड़प जरूर हुई, पर जेल नहीं गए. 30 साल पहले राज्य की मांग की थी. आज पहचान मिली है. अब हमारे बच्चों को आरक्षण और नौकरी मिले, यही उम्मीद है.
मांडर प्रखंड की विक्टोरिया कुजूर का दर्द आज भी ताजा है. उनके पति स्व. रामधनी भगत को आंदोलन के दौरान मार दिया गया था. आंखें नम करते हुए बोलीं, पति को पीट-पीट कर मार डाला. तीन देवर जेल भेजे गए थे. धान-बकरी खेत बंधक रखकर तीनों देवर को छुड़ाया. आज भी वो दिन भूल नहीं सकती, लेकिन प्रमाण पत्र से लगता है कि बलिदान बेकार नहीं गया.
सिल्ली प्रखंड के 72 वर्षीय रामलाल साहू भी सुबह 9 बजे प्रमाण पत्र लेने पहुंचे. दो बार जेल गए, पुलिस से भिड़ंत हुई.1993 में केशव महतो और ज्ञान रंजन के साथ आंदोलन किया था. अब पेंशन और हमारे बच्चों को आरक्षण मिले, यही हक की मांग है.
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