Ranchi : आदिवासी समाज की पहचान उनकी भाषा, संस्कृति और वेशभूषा से होती है. अब समय आ गया है कि इसे वैश्विक मंच पर पहचान दिलाई जाए. इसके लिए झारखंड के स्थानीय फिल्म निर्माताओं को एक नया मंच देने की आवश्यकता है.गुरुवार को पुरुलिया रोड स्थित सत्य भारती में स्थानीय फिल्म निर्माताओं की एक बैठक आयोजित की गई, जिसमें आदिवासी सिनेमा को बढ़ावा देने को लेकर चर्चा की गई. वक्ताओं ने प्रस्ताव रखा कि महीने में दो बार फिल्म स्क्रीनिंग की जाए, ताकि आदिवासी सिनेमा अधिक से अधिक लोगों तक पहुंच सके. इसके साथ ही स्थानीय फिल्मकारों को विशेष प्रशिक्षण भी दिया जाएगा.
चार वर्कशॉप आयोजित करने का प्रस्ताव
वक्ताओं ने बताया कि आदिवासी सिनेमा को विश्व में "चौथा सिनेमा" माना जा रहा है. मुंडारी, कुड़ुख, हो, खोरठा और संथाली जैसी भाषाओं में बनने वाली फिल्मों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने की आवश्यकता है. इसके लिए फिल्म निर्माताओं के बीच चार विशेष वर्कशॉप आयोजित की जाएंगी.
आदिवासी समाज के संघर्ष को फिल्म के माध्यम से दर्शाने पर जोर
वक्ताओं ने यह भी कहा कि फिल्म निर्माताओं को वर्तमान में आदिवासी समाज द्वारा अस्तित्व, पहचान, जल, जंगल और जमीन को बचाने के लिए किए जा रहे संघर्ष को अपने फिल्मों का विषय बनाना चाहिए. इन मुद्दों को आधार बनाकर फिल्में बनाई जाएं और उन्हें स्क्रीनिंग के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाया जाए.इस बैठक में दीपक बाड़ा, सुरेंद्र कुजूर, बैजु टोप्पो, जेनिफर बाखला, एनुस कुजूर, प्रिंसी लकड़ा, अनामिका टोप्पो, सुनीता लकड़ा, वाल्टर भेंगरा, पीसी मुर्मू, नीरज समद समेत कई अन्य लोग उपस्थित थे.
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