Ranchi : कोरोना के साथ-साथ राज्य में अब ब्लैक फंगस “म्यूकरमाइकोसिस” का खतरा भी मंडरा रहा है. राज्यभर में ब्लैक फंगस के 27 मरीजों की पुष्टि हुई है. वहीं अबतक दो लोगों की इससे मौत भी हो चुकी है.
फंगस पर नियंत्रण के लिए फ्यूमिगेशन सबसे बड़ा और जरूरी हथियार
मेडिकल एक्सपर्ट की मानें तो फंगल इंफेक्शन को रोकने के लिए फ्यूमिगेशन सबसे बड़ा और जरूरी हथियार है. ब्लैक फंगस के जितने भी मरीज मिले हैं, वो पहले कोरोना संक्रमित थे. कई मरीज निजी अस्पताल में अपना इलाज करा रहे थे. वैसे अस्पताल जिन्होंने मरीजों के इलाज करने वाले एरिया को डिकॉन्टैमिनेट नहीं किया, वहां खतरा अब भी बरकार है. यदि अस्पताल कोरोना मरीजों के इलाज करने वाली जगह को डिकॉन्टैमिनेट करता है, तब इंफेक्शन का खतरा कम होगा.
एक्सपर्ट बताते हैं कि जहां भी ब्लैक फंगस के मरीज रखे जाएं वहां एक अलग से स्पेस को खाली रखना जरूरी है, ताकि कुछ समय के अंतराल पर पर उस एरिया का फ्यूमिगेशन किया जा सके. बिना फ्यूमिगेशन के इंफेक्शन पर कंट्रोल कर पाना मुश्किल है. अस्पतालों को इंफेक्शन कंट्रोल प्रोटोकॉल का भी पालन करना चाहिए, ताकि फंगस पर कंट्रोल किया जा सके.
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इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन सिलेंडर से साबित हुआ खतरनाक
कोरोना काल में मरीजों को ऑक्सीजन की सबसे ज्यादा जरूरत पड़ी. अचानक ऑक्सीजन सिलेंडर की मांग बढ़ गयी. ऐसी परिस्थिति में औधोगिक इस्तेमाल के लिए रखे गए ऑक्सीजन सिलेंडर को भी रिफिल कर मरीजों को दिया गया और ये सबसे ज्यादा खतरनाक साबित हुआ है. एक्सपर्ट मानते है कि आनन-फानन में वैसे सिलेंडर को बिना डिसइफेक्ट किया, उसमें ऑक्सीजन रिफिल किया गया. लंबे समय तक औद्योगिक इस्तेमाल के लिए रखे गए सिलेंडर में फंगस था और इन्हीं सिलेंडर में ऑक्सीजन भरकर अस्पतालों में भेज दिया गया, जिससे फंगस फैलने लगा.
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रिम्स के ओल्ड ट्रॉमा सेंटर और डेंगू वार्ड में भर्ती हैं ब्लैक फंगस के मरीज
रिम्स के ओल्ड ट्रॉमा सेंटर और डेंगू वार्ड में ब्लैक फंगस के मरीजों का इलाज चल रहा है. ट्रॉमा सेंटर में 12 मरीज भर्ती हैं. इनमें ब्लैक फंगस के छह मरीजों की पुष्टि हो चुकी है, जबकि छह संदिग्ध हैं. वहीं रिम्स के डेंगू वार्ड में 15 मरीज भर्ती है. इनमें नौ मरीज संदिग्ध हैं, जबकि तीन मरीजों में ब्लैक फंगस की पुष्टि हुई है. वहीं दो मरीजों में व्हाइट फंगस की पुष्टि हुई है.