Ranchi : राष्ट्रपति चुनाव में हुए मतदान के बाद से प्रदेश की राजनीति में तरह–तरह की अटकलों पर चर्चा तेज है. इन अटकलों में ‘झामुमो-कांग्रेस सरकार अब ज्यादा दिन नहीं चलने वाली’ बात प्रमुखता से है. राष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस विधायकों द्वारा क्रॉस वोटिंग की भी चर्चा है. हालांकि इसकी पुष्टि आगामी 21 जुलाई को ही हो पाएगी, जब चुनाव के नतीजे आएंगे.
राष्ट्रपति चुनाव में इन सबसे से अलग एक जनजातीय महिला के पक्ष में सत्तारूढ़ जेएमएम ने वोट करके अलग छवि बनाई है. ऐसे करके जेएमएम ने 2024 के लोकसभा व विधानसभा चुनाव में आदिवासी वोट बैंक और मजबूत कर लिया है. दूसरी ओर, पार्टी शीर्ष नेतृत्व के दिये निर्देश का पालन कर कांग्रेसी विधायकों ने भले ही यशवंत सिन्हा के पक्ष में वोट किये हों. लेकिन यह भी तय है कि जनजातीय महिला को समर्थन नहीं करने का खमियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ सकता है. प्रदेश भाजपा भी इस मुद्दे को आग देने में और कोई कसर नहीं छोड़ेगी.
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सरना धर्म कोड का भी फायदा सीधे-सीधे झामुमो को
प्रदेश की राजनीति में चर्चा तो पहले से ही है, कि झारखंड विधानसभा के विशेष सत्र से पारित सरना धर्म कोड का भी फायदा सीधे-सीधे झामुमो को ही मिलेगा. भले ही कांग्रेसी नेता यह कहते फिरें, कि गठबंधन सरकार में हमने सरना धर्म कोड पारित किया, पर जिस तरह मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व में सरना धर्म कोड पारित हुआ है, उसका क्रेडिट तो झामुमो ही ले जा रही है.
कल्याणकारी योजनाओं का फायदा झामुमो को
इससे पहले गठबंधन सरकार के मुखिया हेमंत सोरेन द्वारा जिन-जिन कल्याणकारी योजनाओं की शुरूआत की गयी है, इसका फायदा भी झामुमो को मिलने की चर्चा है. गिरिडीह चिंतन शिविर में कांग्रेसी विधायकों ने स्पष्ट कहा था कि सभी सरकारी योजनाओं का क्रेडिट झामुमो को मिल रहा है. इसमें सरकार आपके द्वारा कार्यक्रम तो सबसे प्रमुख है.
बयानों से भी साफ, आदिवासी वोटरों पर पल्ला किसका भारी
झामुमो और कांग्रेस विधायकों द्वारा द्रौपदी मुर्मू को क्रमशः समर्थन देने और नहीं देने पर रखे पक्ष से साफ हो गया कि भविष्य में आदिवासी वोटरों पर पल्ला किसका भारी होगा. मतदान बाद झामुमो के सभी विधायकों ने एक ही बयान पर जोर दिया कि झामुमो जनजातीय समाज की अस्मिता और उत्थान की बात करती है. ऐसे में जब एक जनजातीय महिला देश के सर्वोच्च पद पर बैठने जा रही है, तो भला झामुमो पीछे कैसे रह सकता है. दूसरी तरफ कांग्रेस के अधिकांश विधायकों के पास इस सवाल का जवाब नहीं था कि आखिर उन्होंने एक जनजातीय महिला के पक्ष में वोट क्यों नहीं किया. कांग्रेसी नेता केवल यह तर्क देते दिखे कि भाजपा ने हमेशा आदिवासी वोटरों का फायदा ही उठाया है. यह तर्क भले ही कांग्रेस के हिसाब से सही हो, पर इससे पार्टी को तो फायदा नहीं होने वाला. हां, झामुमो को फायदा होगा ही, इससे इन्कार नहीं किया जा सकता.
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