Soumitra Roy
“कोविड से जो मर गए, वे मुक्त हो गए.” – आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के इस बयान के बाद बड़ा सवाल यह है कि जो जिंदा बच गए हैं, उनके लिए आगे क्या है?
इन्वेस्टमेंट बैंक बार्कलेज के मुताबिक, मई में भारत ने हर हफ्ते 60 हजार करोड़ रुपए खोए. कोरोना की दूसरी लहर ने देश को 8.5 लाख करोड़ का झटका दिया है. जो कि देश के जीडीपी का 3.7 प्रतिशत है. बेरोजगारी की बात करें, तो यह 23 मई की स्थिति में 14.73% पर आ चुकी है. सीएमआईई के अनुसार, शहरों में यह 17% तो गांवों में 14% के करीब है.
अप्रैल 2020 में कोविड 1.0 ने देश के 13 करोड़ लोगों को सड़क पर ला खड़ा किया था. उनमें से 9 करोड़ दिहाड़ी मजदूर थे.
जनवरी 2021 तक रोजगार के 40.35 करोड़ मौकों में से 40 करोड़ रोजगार वापस आ गए, लेकिन जिन्हें काम मिला भी तो मजदूरी कम मिलने लगी. फिलहाल 39 करोड़ लोगों के पास काम है, जिसमें 7.4 करोड़ लोग वेतनभोगी हैं. सीएमआईई-कंज्यूमर पिरामिड सर्वे से पता चलता है कि इसमें शामिल 55% लोग कह रहे हैं कि काम तो है, पर पिछले साल से हालत खराब है.
क्यों? क्योंकि जिस तेजी से महंगाई बढ़ रही है, उससे भारत की 97% आबादी एक साल पहले ही तुलना में गरीब हो गई है. इसका मतलब क्या हो सकता है? इसका बहुत साफ मतलब है कि भारत की 97% आबादी में से ज्यादातर आज कर्जदार हैं.
उधर, अमीर थोड़े और दौलतमंद हुए हैं और उनमें से बहुत से लोग कोविड के दौर में प्राप्त हुए अतिरिक्त धन का कुछ हिस्सा शेयर बाजार में लगा रहे हैं. जिससे शेयर बाजार में कमोवेश तेजी बनी हुई है.
इन हालातों में 1 जून से कई राज्यों में शुरु हो रहे अनलॉक के बाद रिकवरी की इस बार ज्यादा उम्मीद नहीं है. क्योंकि मध्यवर्ग की रीढ़ टूट चुकी है. उद्यमों की क्षमता 60-65% से ज्यादा नहीं है. छोटे और मंझोले उद्योगों की माली हालत पहले ही खराब थी. कोविड की दूसरी लहर ने उसे और खराब कर दिया है.
कॉर्पोरेट सेक्टर और मोदी सरकार, दोनों खुद को देश की इकोनॉमिक रिकवरी के लिए झोंकना नहीं चाहतीं. देश बदहाली के रास्ते पर आगे बढ़ रहा है और सरकार अपनी इमेज बचाने में जुटी है.
डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.