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विपक्ष का भरोसा क्यों खोता जा रहा है चुनाव आयोग

Faisal Anurag

चुनाव आयोग के खिलाफ धरना. 24 घंटे के बैन के खिलाफ कोलकाता में गांधी प्रतिमा के समक्ष ममता बनर्जी का धरना हो सकता है. राजनीति से प्रेरित हो, लेकिन इसने बंगाल में चुनाव आयोग को लेकर उठे कई सवालों को जीवंत कर दिया है. तृणमूल कांग्रेस से राज्यसभा सदस्य डेरेक ओब्रायन ने चुनाव आयोग पर तीखा हमला करते हुए उसे Extremely Compromised  यानी अत्यधिक समझौता परस्त करार दिया है. संवैधानिक संस्थाओं की साख को लेकर उठ रहे संदेहों के बीच बंगाल के एक नेता का यह प्रतिकार नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है. यह पहला अवसर नहीं है, जब चुनाव आयोग ने किसी नेता को चुनाव प्रचार करने के लिए बैन किया हो. लेकिन चुनाव आयोग की पिछले कुछ दिनों की भूमिका को लेकर सवाल उठते रहे हैं.

असम में भाजपा नेता हेमंत विश्व शर्मा के खिलाफ चुनाव आयोग ने पहले 48 घंटे का बैन लगाया, लेकिन फिर भाजपा के आग्रह किए जाने के बाद समय सीमा को घटा कर 24 घंटे कर दिया. यह फैसला उस समय लिया गया, जब असम प्रधानमंत्री की सभा के पहले ही बदला गया. हेमंत विश्व शर्मा कांग्रेस को छोड़ कर भाजपा में शामिल हुए हैं. वे प्रमुख रणनीतिकार माने जाते हैं. असम के बाहर भी पूरे पूर्वोत्तर में भाजपा उनका इस्तेमाल करती है. चुनाव आयोग की समय सीमा कम करने के निर्णय का असम के अनेक नेताओं ने विरोध किया था. यदि 2019 के लोकसभा चुनाव को याद किया जाये, तो उस समय भी चुनाव आयोग के कई फैसलों को विपक्ष ने पक्षपातपूर्ण बताया था.

बंगाल में तो अब खुल कर कहा जाने लगा है कि आठ चरणों में विधानसभा चुनाव कराने का फैसला भी निष्पक्ष नहीं है. तृणमूल के रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने तो साफ कहा है कि आठ चरणों में चुनाव कराने का निर्णय एक खास दल के पक्ष में किया गया है. ममता बनर्जी ने भी चुनाव आयोग के बैन करने के तरीके में पक्षपात का आरोप लगाया है. ममता बनर्जी को बैन करने के बाद चुनाव आयोग ने भाजपा के एक नेता राहुल सिन्हा पर भी 48 घंटे का बैन लगाया है.

यह वही राहुल सिन्हा हैं जिन्होंने ट्वीट कर  कहा था कि  सितालकुची में चार की जगह 8 को गोली मारनी चाहिए थी. यह बयान चुनाव अभियान के सांप्रदायिकीकरण का चरम है. यही कारण है कि बंगाल में चुनाव आयोग के उस फैसले को लेकर भी सवाल उठाये जा रहे हैं जिसमें एक भाजपा नेता की हत्या के बाद दिनहाटा में आयोग ने विशेष पुलिस आब्जर्वर भेजा था. लेकिन केंद्रीय बल की गोली से मरे चार युवकों के मामले में उसने त्वरित कार्रवाई नहीं की. ममता बनर्जी सहित विपक्ष के नेताओं के प्रभावित क्षेत्र में तीन दिनों का दौरा रद्द कर दिया था.

दरअसल इस समय बंगाल में चुनाव प्रचार में भाषा का स्तर तमाम सीमाओं का अतिक्रमण कर चुका है. भारत के चुनावी इतिहास में इस तरह की भाषा कम ही इस्तेमाल की गयी है. चुनाव आयोग ने इस तरह की भाषा को रोकने में कारगर होना तो दूर, उस पर संज्ञान भी नहीं लिया है. आखिर राजनीतिक मर्यादाओं का पालन करने की जिम्मेदारी तो सबसे पहले उन ही नेताओं की है जो बड़े पदों पर हैं.लेकिन वे ही भाषा की मर्यादा का अतिक्रमण कर रहे हैं.

बंगाल में चुनावों के समय तल्खी का पुराना इतिहास है. तृणमूल और वामफ्रंट के चुनावी अभियानों में भी अपवाद को छोड़ कर ऐसा नहीं देखा गया है कि नेताओं पर निजी हमले किये गये हों. लेकिन 2021 का चुनाव इस अर्थ में नायाब है कि केवल निजी हमले किये जा रहे हैं, जिसमें न केवल हिकारत है बल्कि भाषा भी अपमानजनक है. ममता बनर्जी और नरेंद्र मोदी दोनों को लेकर यह सवाल उठे हैं.

इस बीच प्रशांत किशोर को लेकर भी पूरे देश में एक तीखा विवाद खड़ा हो गया है. सोशल मीडिया पर उनके खिलाफ कहा जा रहा है कि बीच चुनाव में उन्होंने ने ममता बनर्जी को धोखा दिया हे. हालांकि प्रशांत किशोर अब क्लब हाउस चैट के कुछ हिस्सों के लीक किये जाने को लेकर सफाई दे रहे हैं. प्रशांत किशोर ने कहा कि उनके उस हिस्से को जानबूझ कर प्रकाश में लाया गया है, जिसमें उन्होंने भाजपा की बंगाल में ताकत को लेकर टिप्प्णी की है.

इसी टिप्पणी को भाजपा की जीत के उनके दावे के रूप में पेश किया जा रहा है. प्रशांत किशोर के अनुसार उनकी बातों में कुछ भी नया नहीं है. वे दिसंबर से ही इन्हीं बातों को दुहरा रहे हैं, जिसमें भाजपा के 40 प्रतिशत वोट शेयर की संभावाओं का विश्लेषण है. वास्तविकता यह है कि तृणमूल कांग्रेस 45 प्रतिशत से ज्याद वोट शेयर के साथ एक बड़ी जीत हासिल करेगी.

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