Ranchi: हर साल 5 जून को वर्ल्ड एनवायरनमेंट डे मनाया जाता है. ये सिर्फ एक दिन नहीं, बल्कि वो मौका होता है जब पूरी दुनिया एक साथ मिलकर धरती को बचाने की बात करती है. इस साल इस दिन की थीम है - प्लास्टिक प्रदूषण को हराएं.
साल 1973 से ये अभियान चला रहा है. वर्ल्ड एनवायरनमेंट डे आज दुनिया का सबसे बड़ा पर्यावरण जागरूकता मंच बन चुका है – जिसमें हर साल करोड़ों लोग हिस्सा लेते हैं.आज दुनिया में हर साल 400 मिलियन टन से ज्यादा प्लास्टिक बनता है और हैरानी की बात ये है कि आधा प्लास्टिक ऐसा होता है जिसे सिर्फ एक बार इस्तेमाल करके फेंक दिया जाता है – जैसे कि बोतल, थैली, पैकिंग वगैरह.
इन फेंके गए प्लास्टिक का सिर्फ 10% से भी कम हिस्सा रीसायकल हो पाता है, बाकी सब कूड़े में या खुले में जल जाता है.हर साल करीब 11 मिलियन टन प्लास्टिक नदियों, झीलों और समुद्रों में बह जाता है, जो लगभग 2200 एफिल टावर के वजन के बराबर है.ये प्लास्टिक धीरे-धीरे माइक्रोप्लास्टिक में बदल जाता है – यानी ऐसे बेहद छोटे-छोटे टुकड़े जो हमारी आंखों से दिखते भी नहीं, लेकिन हमारे खाने, पानी और हवा के ज़रिए शरीर में पहुंच रहे हैं.
एक अनुमान के मुताबिक, हर इंसान हर साल करीब 50,000 माइक्रोप्लास्टिक कण खा-पी रहा है और अगर सांस से जाने वाले कण जोड़ लें तो संख्या और भी बढ़ जाती है.यह प्लास्टिक सिर्फ इंसान ही नहीं बल्कि प्रकृति और जीव-जंतुओं के लिए भी जानलेवा बन चुका है.
प्लास्टिक की वजह से 800 से ज्यादा समुद्री और तटीय प्रजातियां प्रभावित हो चुकी हैं – कुछ प्लास्टिक निगल जाती हैं, कुछ उसमें फंसकर मर जाती हैं.आज स्थिति यह है कि समुद्र में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक की संख्या हमारे आकाशगंगा के तारों से ज्यादा है. फेंका या जलाया गया प्लास्टिक पहाड़ों की चोटियों से लेकर समुद्र की गहराइयों तक हर जगह पहुंच चुका है.
प्लास्टिक प्रदूषण की कीमत – आर्थिक और पर्यावरणीय दोनों : इस प्रदूषण का असर सिर्फ सेहत पर नहीं पड़ रहा, बल्कि अर्थव्यवस्था पर भी भारी पड़ रहा है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, प्लास्टिक प्रदूषण की वजह से हर साल दुनिया को 300 से 600 अरब डॉलर का नुकसान हो रहा है. इससे खेती, मछली पालन, पर्यटन और लोगों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी सब पर असर पड़ रहा है.
2030 तक हर साल का ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन आधा नहीं किया गया तो ग्लोबल वार्मिंग 1.5 डिग्री से ऊपर चला जाएगा.अगले 10 सालों में हवा में प्रदूषण 50% तक बढ़ सकता है और प्लास्टिक कचरा तीन गुना हो सकता है.
हम सब मिलकर इस संकट को रोक सकते हैं. इसके लिए ज़रूरत है सोच बदलने की और अपने रोज़मर्रा के फैसलों को ज़िम्मेदारी से लेने की. एक छोटा प्रयास करके हम सभी प्लास्टिक कचरा को कम कर सकते हैं.