Ranchi : झारखंड केंद्रीय विश्वविद्यालय (सीयूजे) के मानव विज्ञान और जनजातीय अध्ययन विभाग (डीएटीएस) ने आज विश्व लोकसंस्कृति दिवस के अवसर पर प्रेरक व्याख्यानों का आयोजन किया. इस कार्यक्रम का विषय था अमूर्त संस्कृति की विरासत की सुरक्षा: भारतीय परिदृश्य में प्रमुख मुद्दे और संग्रहालय और वैकल्पिक स्थलों में लोक इतिहास, आख्यान, स्मृति और जुड़ाव की खोज.
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में डॉ सुभ्रा देवी (सांस्कृतिक अध्ययन विभाग, तेजपुर विश्वविद्यालय) और पंकज प्रोतिम बोरदोलोई (उप निदेशक, राष्ट्रपति भवन संग्रहालय) और कला संग्रह (नई दिल्ली) ने अपने विचार प्रस्तुत किए.
इस दौरान प्रो रवींद्रनाथ सरमा (संस्कृति अध्ययन स्कूल के डीन) और मानव विज्ञान और जनजातीय अध्ययन विभाग के प्रमुख भी उपस्थित थे. इसके अलावा विश्वविद्यालय के विभिन्न शोधार्थी, छात्र और शिक्षक भी इस कार्यक्रम का हिस्सा बने.
यह व्याख्यान भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण के क्षेत्रीय केंद्र, लुप्तप्राय भाषा केंद्र, स्वदेशी ज्ञान एवं सतत विकास केंद्र, समान अवसर प्रकोष्ठ और राष्ट्रीय कैडेट कोर, (सीयूजे) रांची के सहयोग से आयोजित किया गया था.
डॉ सुभ्रा देवी ने अपने व्याख्यान में विशेष रूप से जातीय समुदायों की पारंपरिक सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों और प्रकृति के साथ उनके स्थायी संबंधों पर प्रकाश डाला. मानव जाति के लिए भविष्य के जोखिमों को कम करने में इन सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों की भूमिका पर जोर दिया.
इसके साथ ही सुभ्रा देवी अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के दस्तावेजीकरण में आने वाली व्यावहारिक समस्याओं पर भी चर्चा की और उनके समाधान के लिए कुछ संभावित उपायों पर विचार किया.
पंकज प्रोतिम बोरदोलोई ने भारतीय संग्रहालय और लोक इतिहास पर अपने विशेष व्याख्यान में इस बात पर जोर दिया कि पारंपरिक इतिहास विजेताओं की कहानी बताता है जबकि लोक इतिहास उपेक्षितों की. उन्होंने संग्रहालयों के महत्व को उजागर किया जो सार्वजनिक इतिहास के स्थलों के रूप में काम करते हैं.
उन्होंने कुछ प्रमुख संग्रहालयों जैसे रंगभेद संग्रहालय (नेल्सन मंडेला का संघर्ष), नाजी अत्याचार संग्रहालय (जर्मनी), और भोपाल गैस त्रासदी संग्रहालय का उल्लेख किया और समझाया कि कैसे ये संग्रहालय जनता के लिए इतिहास की नई व्याख्याएं प्रस्तुत करते हैं.
इसके अलावा पंकज प्रोतिम ने वैकल्पिक स्थानों जैसे सामुदायिक अभिलेखागार, सांस्कृतिक केंद्र, कला प्रतिष्ठान और डिजिटल प्लेटफार्मों के महत्व पर भी प्रकाश डाला, जो इतिहास को लोकतांत्रिक तरीके से साझा करने का अवसर प्रदान करते हैं.
कार्यक्रम के समापन पर सीयूजे के कुलपति प्रो क्षिति भूषण दास ने मानव विज्ञान और जनजातीय अध्ययन विभाग की इस पहल की सराहना की और विश्व लोकसंस्कृति दिवस के अवसर पर इस विशेष व्याख्यान के आयोजन की महत्वता पर जोर दिया.
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