के रिकार्ड केस : महाराष्ट्र, यूपी, गुजरात व हरियाणा में भी नाइट कर्फ्यू
मर्डर जो मर्डर नहीं लगे!
दुश्मन को रास्ते से हटाने के लिए जहर का इस्तेमाल सदियों से होता रहा है. लेकिन, जैविक हथियार के रूप में किसी बीमारी, वायरस या जर्म का इस्तेमाल कर दुश्मन की हत्या का संभवतः पहला डॉक्युमेंटेड मामला पिछली सदी में सामने आया. महाभारत या हेमलेट की तरह ही. राजपाट के लिए हत्या या हत्या की कोशिश. फर्क बस यह है कि तब जहर का इस्तेमाल हुआ था और इसमें बायोलॉजिकल वीपन का. साइंस का ऐसा इस्तेमाल कि दुश्मन मार दिया जाए और दुनिया उसे बीमारी से मौत समझे. पेश है बीसवीं सदी में पाकुड़ के जमींदार परिवार में हुई उस हत्याकांड की कहानी, जो तब दुनियाभर के अखबारों की सुर्खियां बनी थी.कहानी है तत्कालीन बंगाल प्रांत के तहत आने वाले पाकुड़ के एक जमींदार परिवार की. पाकुड़ बाद में बिहार और अब आखिरकार झारखंड का हिस्सा है. अमरेंद्र चन्द्र पाण्डेय पाकुड़ के इसी जमींदार परिवार से थे. इसे भी पढ़ें-हजारीबाग">https://lagatar.in/hazaribagh-three-accused-of-drinking-water-scam-still-out-of-police-custody/">हजारीबाग: पेयजल घोटाले के तीन आरोपी अब भी पुलिस की पकड़ से बाहर
बांह में अचानक महसूस हुई चुभन
26 नवंबर 1933। जाड़े का मौसम. 20 साल के अमरेंद्र चन्द्र पाण्डेय हावड़ा के व्यस्त रेलवे स्टेशन की प्लेटफॉर्म की सीढ़िया चढ़ रहे हैं. उन्हें पाकुड़ के लिए ट्रेन पकड़नी है. साथ में कुछ करीबी दोस्त और रिश्तेदार हैं. अचानक खद्दर की शॉल ओढ़ा एक शख्स पाण्डेय से टकराता है. उनकी दायीं बांह पर अचानक चुभन महसूस होती है. वह चिल्ला उठते हैं- किसी ने मुझे कुछ चुभा दिया. साथ चल रहे दोस्त-रिश्तेदार जबतक खद्दर ओढ़े शख्स की तलाश करते, तब तक वह भीड़ में ओझल हो जाता है. पाण्डेय की बांह पर एक बहुत ही छोटा सा निशान बना है, जैसे कोई सूई चुभाई गयी हो. दोस्त अमरेंद्र को डॉक्टर को दिखाने की सलाह देते हैं. तभी अचानक अमरेंद्र के सौतेले भाई बेनोयेंद्र पाण्डेय को वहां आते देख सभी चौंक जाते हैं. वह उम्र में अमरेंद्र से करीब 10 साल बड़े हैं. बोनयेंद्र बोल उठते हैं- ये कौन सी बड़ी बात है. कोई कीड़ा-मकोड़ा काट लिया होगा. घर चलते हैं, ये कोई ऐसी बात नहीं कि डॉक्टर को दिखाएं. फिर सभी ट्रेन से पाकुड़ के लिए रवाना हो जाते हैं.घर पहुंचने पर अमरेंद्र को बुखार चढ़ जाता है. शुरु में घरेलू नुस्खे अपनाए गए लेकिन जब हालत बहुत ज्यादा बिगड़ने लगी तो परिवार ने कलकत्ता में इलाज का फैसला किया. इसे भी पढ़ें-कोडरमा">https://lagatar.in/48-corona-infected-found-in-koderma-in-two-days/">कोडरमामें दो दिनों में 48 कोरोना संक्रमित मिले
बिगड़ने लगी हालत और अंत में मौत
चौथे दिन अमरेंद्र एक बार फिर कलकत्ता में थे. ठिकाना था रासबिहारी इलाके में स्थित पाकुड़ पैलेस गेस्ट हाउस. परिवार ने उस वक्त की बंगाल की मशहूर फीजिशियन डॉक्टर नलिनी रंजन सेनगुप्ता को इलाज के लिए बुलाया. अचानक उनकी नजर अमरेंद्र की बांह पर हाइपोडर्मिक नीडल के निशान पर पड़ी. तत्काल ब्लड टेस्ट के लिए सैंपल लिया गया. लेकिन तबतक मरीज की हालत बहुत बिगड़ चुकी थी. तेज बुखार उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था. हाथ सूज गए थे. इस बीच अमरेंद्र के सौतेले भाई बोनयेंद्र अपनी पसंद के एक डॉक्टर को लेकर पहुंचते हैं. परिवार को भरोसा देते हैं कि डॉक्टर बहुत काबिल हैं और अमरेंद्र जल्द ही ठीक हो जाएंगे. लेकिन 3 दिसंबर की रात को मरीज कोमा में पहुंच जाता है और अगले दिन उसकी मौत हो जाती है. डॉक्टर इसे न्यूमोनिया से मौत का मामला बताते हैं. अंत्येष्टि भी हो जाती है. लेकिन लैब में भेजे गए ब्लड सैंपल की जांच रिपोर्ट से कहानी में बड़ा ट्विस्ट आ जाता है. इसे भी पढ़ें-हुआ">https://lagatar.in/amendment-done-now-in-jssc-graduate-level-exam-general-ebc-obc-will-have-to-pay-100-and-st-sc-will-have-to-pay-50-rupees-exam-fee/">हुआसंशोधन : अब JSSC ग्रैजुएट लेवल की परीक्षा में General, EBC, ओबीसी को 100 और एसटी, एससी को देना होगा 50 रुपये परीक्षा शुल्क
लैब रिपोर्ट से कहानी में आया नया मोड़
लैब रिपोर्ट से पता चलता है कि अमरेंद्र के खून में यर्सिनिया पेस्टिस नाम का खतरनाक बैक्टिरिया मौजूद था. ऐसा बैक्टिरिया जिसने 1896 से 1918 के बीच भारतीय उपमहाद्वीप में तबाही मचाई थी. तब प्लेग ने सवा करोड़ जिंदगियों को लील लिया था. यर्सिनिया पेस्टिस बैक्टिरिया से मौत की बात से भारत से लेकर ब्रिटेन तक हड़कंप मच जाता है. मौत की जांच के आदेश दिए जाते हैं. जब सच्चाई सामने आती है तो सभी दंग रह जाते हैं. जिसे न्यूमोनिया से मौत का मामला समझा जा रहा था, वह मर्डर का मामला निकला. जैविक हथियार से हत्या का मामला.बायोलॉजिक वीपन से मर्डर के अपने तरह के इस पहले मामले ने दुनियाभर के अखबारों की सुर्खियां बना. टाइम मैगजीन ने इसे `मर्डर विद जर्म्स` तो सिंगापुर के स्ट्रेट टाइम्स ने इसे `बांह में चुभन का रहस्य` के तौर पर बताया. कलकत्ता पुलिस की जांच ने इस अनोखे मर्डर मिस्ट्री का राजफाश कर दिया. पाकुड़ के जमींदार का कलकत्ता में हत्या होती है और हथियार बनता है 1900 किलोमीटर दूर मुंबई (तब बॉम्बे) के एक लैब से मंगाया गया बैक्टिरिया. हत्या के केंद्र में जमींदार परिवार के भीतर का सत्ता संघर्ष था. पिता की मौत के बाद बोनयेंद्र पाण्डेय की नजर जमींदार परिवार की सत्ता संभालने पर थी. लेकिन अधिकार मिला सौतेले छोटे भाई अमरेंद्र पाण्डेय को. वजह यह कि बोनयेंद्र की छवि. तभी बोनयेंद्र ने अपने ही सौतेले छोटे भाई को खत्म करने का मन बना लिया. इसे भी पढ़ें-पीयूष">https://lagatar.in/after-piyush-jain-another-perfume-traders-house-raided/">पीयूषजैन के बाद एक और इत्र कारोबारी के घर छापा
ऐसे रची सौतेले भाई ने साजिश
बीबीसी ने कोर्ट डॉक्युमेंट्स के हवाले से अपनी रिपोर्ट में बताया है कि अमरेंद्र को मारने की साजिश संभवतः 1932 में उस वक्त रची गयी थी जब बोनयेंद्र के एक करीबी डॉक्टर ने लैब से बैक्टीरिया हासिल करने की नाकाम कोशिश की थी. बोनयेंद्र ने अमरेंद्र की हत्या से पहले कम से कम 4 बार उन्हें मारने की नाकाम कोशिश की थी. एक बार बैक्टीरिया वाले चश्मे से भी सौतेले भाई को मारने की कोशिश की थी लेकिन तब अमरेंद्र बीमार होने के बाद ठीक हो गए थे. किसी हॉलिवुड मर्डर मिस्ट्री फिल्म के अंदाज में की गई हत्या की इस साजिश में तारानाथ झा नाम का एक डॉक्टर भी शामिल था जो बोनयेंद्र का जिगरी यार था. उसी ने बैक्टीरिया हासिल कर उसे जैविक हथियार का रूप दिया. मई 1932 में भट्टाचार्य ने बॉम्बे के हॉफकिन इंस्टिट्यूट के डायरेक्टर से बैक्टीरिया के लिए संपर्क किया था लेकिन उसे दो टूक जवाब मिला- नहीं मिल सकता. बंगाल के सर्जन जनरल से अनुमति लेकर आइए. हॉफकिन इंस्टिट्यूट भारत का इकलौता ऐसा लैब था जहां यर्सिनिया पेस्टिस बैक्टीरिया के कल्चर रखे गए थे. उसी महीने भट्टाचार्य ने कलकत्ता के एक डॉक्टर से संपर्क किया. उसने दावा किया कि उसने प्लेग का इलाज ढूंढ लिया है और वह बैक्टीरिया कल्चर पर इसका टेस्ट करना चाहता है. दरअसल, भट्टाचार्य को कहीं से पता चल गया था कि उस डॉक्टर के यहां बैक्टीरिया कल्चर मौजूद है जिस पर रिसर्च किया जा रहा है. डॉक्टर ने भट्टाचार्य को लैब में काम करने की इजाजत दे दी लेकिन हॉफकिन इंस्टिट्यूट से मंगाए गए बैक्टीरिया कल्चर से दूर रहने को कहा. 1933 में भट्टाचार्य ने हॉफकिन इंस्टिट्यूट को लेटर लिखा कि उसने प्लेग का इलाज ढूंढ लिया है, बस कुछ टेस्ट के लिए उसे लैब में काम करने की इजाजत दी जाए. इस बार उसे इजाजत मिल गयी. बेनोयेंद्र भी मुंबई पहुंच गया. वहां दोनों ने इंस्टिट्यूट के दो अधिकारियों को बैक्टीरिया कल्चर के लिए रिश्वत देने की भी कोशिश की. लेकिन बात नहीं बनी. भट्टाचार्य और बोनयेंद्र का मुंबई में रुकने का इकलौता मकसद प्लेग बैक्टीरिया कल्चर हासिल करना था. आखिरकार वे किसी तरह आर्थर रोड इन्फेक्शियस डिसीज हॉस्पिटल से इसे हासिल करने में कामयाब हो गए और कलकत्ता लौट आए. इसे भी पढ़ें-बर्न">https://lagatar.in/burn-ward-full-the-fireplace-of-heat-is-getting-deadly-eight-people-died-of-suffocation-in-a/">बर्नवार्ड फुल…गर्माहट की “अंगीठी” हो रही जानलेवा : एक हफ्ते में आठ लोगों की दम घुटने से मौत

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