Ranchi : झारखंड स्थापना दिवस के अवसर पर राज्य ने एक बार फिर अपनी पहचान को नये आयाम देते हुए यह साबित किया है कि यह सिर्फ खनिजों की धरती नहीं, बल्कि पर्यटन का ऐसा उभरता केंद्र है, जहां प्रकृति, आस्था, साहसिकता और औद्योगिक विकास एक ही धागे में पिरोए हुए हैं.
वर्ष 2025 में जब देश का पहला माइनिंग टूरिज्म सर्किट झारखंड में शुरू हुआ, तो उसने न केवल राज्य को पर्यटन नक्शे पर विशेष स्थान दिलाया, बल्कि एक अनूठी अवधारणा को जन्म भी दिया, ऐसी अवधारणा, जो खनन की कठोरता को पर्यटन के कोमल अनुभवों से जोड़ती है.
झारखंड पर्यटन विकास निगम (जेटीडीसी) और सीसीएल के संयुक्त प्रयास से तैयार इस सर्किट ने हजारों पर्यटकों को खनन की दुनिया के भीतर झांकने का दुर्लभ अवसर दिया है. उरीमारी ओपन कास्ट कोयला खदान पर ले जाई जाने वाली यात्राएं अब झारखंड की पहचान बन चुकी हैं, जहां पर्यटक विशाल मशीनों, गहरे गड्ढों और सतत खनन प्रक्रिया को करीब से देखते हैं.
भविष्य में अंडरग्राउंड खदानों, बॉक्साइट क्षेत्रों और खनिज उत्पादक इलाकों को भी पर्यटन के दायरे में लाने की तैयारी चल रही है, जिससे यह सर्किट और व्यापक हो सके.
सर्किट के दो मुख्य रूट रजरप्पा और पतरातू अपने आप में अलग-अलग भावनाओं और अनुभवों का संसार हैं. रजरप्पा का मार्ग अध्यात्म और उद्योग का अनोखा मेल है. छिन्नमस्तिका मंदिर की दिव्यता के बाद कोयला खदानों की कठोर वास्तविकता जैसे झारखंड की आत्मा का प्रतीक लगती है जहां आस्था और श्रम एक-दूसरे के पूरक हैं.
दूसरी ओर पतरातू का रूट यात्रियों को पतरातू घाटी की सांसें थाम देने वाली सुंदरता से लेकर उरीमारी की कोयला खदानों तक ले जाकर यह अहसास कराता है कि प्रकृति और उद्योग दोनों के मध्य झारखंड संतुलन की कहानी लिखता है.
पर्यटन के प्रति राज्य का समर्पण केवल खनन तक सीमित नहीं है. झारखंड की धरती उन प्राकृतिक चमत्कारों से भरी हुई है, जो हर यात्रा को अविस्मरणीय बनाते हैं.
कर्क रेखा भी राज्य की ऐसी ही प्राकृतिक पहचान है, जो लातेहार, गुमला, लोहरदगा, रांची, रामगढ़ और बोकारो जैसे जिलों को छूती हुई गुजरती है. रांची के ओरमांझी इलाके में मुस्कुराइए, आप कर्क रेखा पार कर रहे हैं लिखे बोर्ड के पास से गुजरना भूगोल को महसूस करने जैसा अनुभव देता है.
सारंडा वन, जिसे एशिया का सबसे बड़ा साल वन कहा जाता है, अपनी घनी हरियाली के बीच हाथियों, तेंदुओं और दुर्लभ पक्षियों का घर है. दलमा अभयारण्य हाथियों का पारंपरिक गलियारा होने के साथ-साथ मानव-वन्यजीव सह-अस्तित्व की अनूठी मिसाल भी है. बेतला राष्ट्रीय उद्यान और पलामू टाइगर रिजर्व राज्य के वन्यजीव संरक्षण के प्रति प्रतिबद्धता को रेखांकित करते हैं.
राज्य का पर्यटन विकास अपने चरम सौंदर्य पर तब पहुंचता है, जब बात उसके झरनों की होती है. हुंडरू जलप्रपात की धुंधली बूंदें जिनमें इंद्रधनुष की झलक दिख जाती है, हिरनी की शांत लय, दशम की प्रचंड धाराएं, जोंहा की लोककथाएं, लोध और रजरप्पा की ऊंचाई और गूंजती ध्वनियां इन सभी में झारखंड का प्राकृतिक वैभव जीवंत होता है. उसरी जलप्रपात अपने तीन-स्तरीय स्वरूप के कारण अलग ही सौंदर्य रचता है, जबकि चंदवा का छत्रछाया जलप्रपात प्रकृति की सहज प्रतिभा का उदाहरण है.
पर्यटन नीति 2021 के बाद राज्य में पर्यटकों की संख्या और राजस्व में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है. जहां 2021 में विदेशी पर्यटकों की संख्या महज 1500 के आसपास थी, वहीं 2023 में यह कई गुना बढ़ गई.
वर्ष 2024 में पर्यटन से 9362 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ, जो अब तक का सर्वोच्च स्तर है. यह उपलब्धि इस बात का प्रमाण है कि राज्य सरकार के प्रयास इको-टूरिज्म, एडवेंचर टूरिज्म और धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने वाले सही दिशा में जा रहे हैं.
राज्य में पर्यटन को लेकर कई नई शुरुआतें आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं. पतरातू और गेतलसूद में वॉटर स्पोर्ट्स, जोंहा में रोपवे, खूंटी में विकसित होते इको-टूरिज्म सर्किट, बसनजोर बांध में वाटर एडवेंचर की संभावनाएं और नेतरहाट में होम-स्टे योजना ग्रामीण पर्यटन को नया जीवन दे रही हैं. सरकार का उद्देश्य न केवल पर्यटकों को आकर्षित करना है, बल्कि स्थानीय समुदायों को पर्यटन आधारित रोजगार भी देना है.
झारखंड स्थापना दिवस पर यह कहानी केवल पर्यटन की नहीं, बल्कि आत्मगौरव की भी है. यह वह राज्य है जिसने अपने जंगलों, पहाड़ों, नदियों, झरनों और खदानों को एक साथ जोड़कर एक ऐसा पर्यटन पथ तैयार किया है, जहां हर मोड़ पर अनुभव बदलता है और हर कदम पर झारखंड अपनी नई पहचान गढ़ता दिखाई देता है.




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