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आदिवासी संगठनों में फूट के बीच गरमाई सियासत, कुड़मी को ST में शामिल करने के विरोध में अब दो रैलियां आमने-सामने

Ranchi : झारखंड में कुड़मी समुदाय को अनुसूचित जनजाति (आदिवासी) सूची में शामिल करने की मांग ने राज्य की राजनीति में बड़ा उबाल ला दिया है. एक ओर जहां कुड़मी समुदाय अपने हक की लड़ाई का बिगुल फूंक चुका है, वहीं आदिवासी संगठन इस मांग का पुरजोर विरोध कर रहे हैं. लेकिन विरोध के बीच अब आदिवासी संगठनों के भीतर ही विभाजन की स्थिति बन गई है.

 

राज्य भर में आदिवासी संगठनों ने कुड़मी को अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल करने का विरोध तेज कर दिया है. कोई रैली की तैयारी में जुटा है तो कोई हुंकार भरने को तैयार. इसी क्रम में 12 अक्टूबर को रांची के मोरहाबादी मैदान में एक रैली और 17 अक्तूबर को प्रभात तारा मैदान में आदिवासी हुंकार महारैली आयोजित की जाएगी. दोनों रैलियों को लेकर आदिवासी समाज में हलचल बढ़ गई है.

 

घटनाक्रम: कैसे टूटा आदिवासी एकजुटता का प्रयास

कुड़मी समुदाय को अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल करने के विरोध की शुरुआत 13 सितंबर को नगड़ा टोली सरना भवन में हुई बैठक से हुई थी. इसमें सभी आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ताओं को बुलाया गया था, लेकिन कई संगठन इस बैठक में शामिल नहीं हो सके.

 

इसके बाद 15 सितंबर को सिरमटोली सरना स्थल में व्यापक एकता बनाने के लिए बैठक बुलाई गई, लेकिन वहां पहले से ही देवकुमार धान और गीताश्री उरांव का समूह बैठक कर रहा था. नतीजतन, यह बैठक धुमकुड़िया भवन में आयोजित की गई. इसमें 20 सितंबर को राजभवन के समक्ष धरना देने का निर्णय लिया गया.

 

20 सितंबर को दो समानांतर विरोध मार्च भी निकले एक राजभवन के समक्ष धरना, और दूसरा मोरहाबादी से अल्बर्ट एक्का चौक तक, जिसका नेतृत्व गीताश्री उरांव, देवकुमार धान और प्रेम शाही मुंडा ने किया.

 

23 और 24 सितंबर को सभी आदिवासी संगठनों के नेताओं ने एकता के प्रयास किए और सामूहिक आंदोलन पर सहमति जताई. लेकिन 25 सितंबर को केंद्रीय सरना समिति के अध्यक्ष अजय तिर्की और सामाजिक कार्यकर्ता ग्लैडसन डुंगडुंग ने 12 अक्टूबर को मोरहाबादी मैदान में अलग रैली की घोषणा कर दी.

 

इसके जवाब में 26 सितंबर को मुंडा, हो, उरांव, संथाल, भूमिज, बेदिया, भोक्ता, खरवार, चेरो  एवं अन्य आदिवासी समुदाय के प्रतिनिधियों ने सर्वसहमति से बैठक कर 17 अक्तूबर को प्रभात तारा मैदान में आदिवासी हुंकार महारैली आयोजित करने का फैसला किया.

 

आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू

अब दोनों पक्ष खुलकर एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं. 12 अक्टूबर की रैली के आयोजक अजय तिर्की का कहना है कि हर किसी को विरोध करने का अधिकार है, लेकिन कुछ संगठन राज्य सरकार को टारगेट कर रहे हैं. ये संगठन आरएसएस के इशारे पर काम कर रहे हैं, इसलिए हम उनके मंच पर नहीं जाएंगे.

 

वहीं, 17 अक्तूबर की रैली के आयोजको में से एक लक्ष्मी नारायण मुंडा ने पलटवार करते हुए कहा कि हमने सभी को साथ लेने की कोशिश की, लेकिन कुछ लोग जो पहले कभी नगड़ी आंदोलन या सूर्या हांसदा एनकाउंटर मामले में सामने नहीं आए, वही लोग अब सरकार और चर्च के इशारे पर 12 अक्तूबर को रैली कर रहे हैं. यह रैली सरकार और चर्च प्रायोजित है.

 

राजनीतिक पारा चरम पर

लगातार बढ़ते विरोध प्रदर्शनों और दो समानांतर रैलियों से झारखंड की राजनीति में नया मोड़ आ गया है. आदिवासी संगठनों के भीतर बढ़ती दूरी जहां एकता के प्रयासों को कमजोर कर रही है, वहीं सत्तारूढ़ दलों और विपक्ष दोनों की नजर इस आंदोलन पर टिकी हुई है.

 

कुड़मी को अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल करने के सवाल पर अब न सिर्फ समुदाय बनाम समुदाय की जंग दिख रही है, बल्कि आदिवासी समाज के भीतर ही मतभेद की रेखाएं गहरी होती जा रही हैं.

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