New Delhi : चीन के तियानजिन में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) समिट में प्रधानमंत्री मोदी, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात पूरी दुनिया में सुर्खियां बटोर रही है. अहम बात यह कि भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाने वाले अमेरिका के माथे पर बल पड़ गये हैं. तीनों नेताओं का एक मंच पर उपस्थिति अमेरिका को रास नहीं आ रही है.
The partnership between the United States and India continues to reach new heights — a defining relationship of the 21st century. This month, we’re spotlighting the people, progress, and possibilities driving us forward. From innovation and entrepreneurship to defense and… pic.twitter.com/tjd1tgxNXi
— U.S. Embassy India (@USAndIndia) September 1, 2025
जानकारों का कहना है कि अमेरिका की चिंता अब साफ नजर आ रही है. इसका उदाहरण दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास द्वारा एक्स पर किया गया पोस्ट है. उसने भारत से दोस्ती की अहमियत दिखाते हुए बड़ा सा चौड़ा पोस्ट लिखा है. अमेरिकी दूतावास ने पोस्ट में लिखा कि ‘भारत-अमेरिका की साझेदारी 21वीं सदी का परिभाषित रिश्ता है. यह साझेदारी लगातार नयी ऊंचाइयां छू रही है. इसका आधार दोनों देशों की जनता की स्थायी मित्रता है.
अमेरिकी दूतावास के पोस्ट के अलावा अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने भी महत्वपूर्ण बयान जारी किया है. मार्को रुबियो ने कहा कि भारत और अमेरिका की जनता के बीच की यह गहरी दोस्ती हमारी साझेदारी की नींव है. यही हमें आगे बढ़ाती है और हमारी आर्थिक साझेदारी की अपार संभावनाओं को साकार करती है.
विशेषज्ञों की मानें तो SCO समिट में मोदी-पुतिन-जिनपिंग के बीच जिस तरह की जुगलबंदी नजर आयी,उसने अमेरिका भारी दबाव महसूस कर रहा है. रूस-चीन के साथ भारत की बढ़ती नजदीकी से वॉशिंगटन को समझ में आ गया है कि अगर उसे एशिया में अपने हित को सुरक्षित रखना है, तो उसे भारत के साथ मजबूत रिश्ते को अहमियत देनी होगी.
मामला यह है कि अमेरिका ने भारत द्वारा रूस से तेल की खरीदारी पर तेवर तल्ख करते हुए कड़ी टिप्पणियां की थीं. लेकिन SCO समिट में दिख रहे नजारे से समीकरण बदल गये हैं. अमेरिका को बहुत कुछ समझ में आ रहा है.
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