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मेन रोड में भीड़भाड़ व शोरगुल के बीच ऐसी है इंसानियत को झकझोरने वाली तस्वीर

Ranchi : राजधानी रांची के मेन रोड स्थित अंजुमन प्लाजा के सामने शुक्रवार को एक ऐसा दृश्य देखने को मिला, जिसने हर किसी के दिल को झकझोर कर रख दिया. तेज धूप और चिलचिलाती गर्मी के बीच एक विकलांग मां अपने घुटनों और हाथों के सहारे सड़क पर रेंगते हुए भीख मांग रही थी. उसकी गोद में महज आठ महीने की मासूम बच्ची थी, जो खिलौने जैसी छोटी गाड़ी में लेटी भूख और प्यास से कराह रही थी.

 

उस मां के दोनों पैर काम नहीं करते. वह खड़ी तक नहीं हो सकती. माथे पर सिंदूर और चेहरे पर तपती धूप की मार झेलती हुई. वह मां, अपने नन्हें शिशु को लेकर सड़क पर भीड़ के बीच उम्मीद की नजरों से लोगों की ओर देखती रही. राहगीर उसे देखते रहे, कईयों ने मुंह फेर लिया, पर बहुत कम लोग ही उसकी मदद को आगे आए.यह दृश्य चीख-चीख कर बताता है कि जिंदा होते हुए भी इंसान किन हालात में जीने को मजबूर हो सकता है. शायद वह मां इसलिए सड़कों पर निकलती है, ताकि किसी का दिल पसीजे और कोई मदद का हाथ बढ़ाए.

 

रेलवे स्टेशन की पार्किंग में गुजर-बसर, सरकारी योजनाओं से वंचित एक परिवार


पिछले पांच वर्षों से रांची रेलवे स्टेशन की पार्किंग में लालती देवी और उनके पति गुड्डू पासवान अपने चार बच्चों के साथ जिंदगी गुजार रहे हैं. लालती देवी जन्म से ही विकलांग हैं. पति रिक्शा चलाकर किसी तरह परिवार का गुजारा करते हैं. लेकिन गरीबी इतनी विकराल है कि आज तक यह परिवार किसी भी सरकारी योजना का लाभ नहीं उठा पाया है.न उनके पास राशन कार्ड है, न ही पहचान पत्र. आधार कार्ड चोरी हो गया और दोबारा बनवाने की कोशिशें आज तक अधूरी ही रह गईं. परिणामस्वरूप, कभी पैसे होते हैं तो खाना बनता है, वरना पूरा परिवार भूखा ही सो जाता है.

 

गुड्डू पासवान बच्चों की देखभाल से लेकर पत्नी को नहलाने और कपड़े धोने तक की जिम्मेदारी खुद निभाते हैं. जब लालती देवी अपने शिशु को लेकर मेन रोड पर भीख मांगती हैं, तो वह उनकी मजबूरी होती है, न कि आदत.बैंक खाता न होने के कारण वे पैसे भी सुरक्षित नहीं रख पाते. कई बार उनके पास रखे पैसे चोरी हो चुके हैं. गुड्डू और लालती का कहना है कि यदि सरकार उन्हें एक घर और पहचान पत्र दे दे, तो वे भीख मांगना छोड़कर मेहनत से अपने बच्चों का भविष्य संवार सकते हैं.

 

उनका बड़ा बेटा राजा 10 साल का है. दो बच्चे आंगनबाड़ी में पढ़ते हैं, जबकि सबसे छोटा बेटा करण सिर्फ एक महीने का है. यह परिवार आठ साल पहले लातेहार से रांची आया था और तब से अब तक कई बार अधिकारियों से मदद की गुहार लगा चुका है. लेकिन कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला

 

 

 

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