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पेसा नियमावली की मंजूरी जन-संघर्षों की ऐतिहासिक जीत: महासभा

Ranchi : झारखंड जनाधिकार महासभा (JJM) ने राज्य कैबिनेट द्वारा ‘झारखंड पेसा नियमावली 2025’ को दी गई मंजूरी का स्वागत किया. इसे आदिवासियों, मूलवासियों और ग्राम सभाओं के दशकों लंबे संघर्ष की ऐतिहासिक उपलब्धि बताया है. महासभा के अनुसार यह फैसला जल-जंगल-जमीन और स्वशासन की रक्षा के लिए चले व्यापक जन-आंदोलन और जन-भागीदारी का प्रतिफल है.

 

महासभा ने कहा कि इस नियमावली के अस्तित्व में आने के पीछे हजारों कार्यकर्ताओं और ग्रामीणों का योगदान है, जिन्होंने आंदोलन के दौरान लाठियां खाईं और जेल तक गए.

 

संगठन ने स्वयं गांव-गांव जाकर पेसा कानून पर जागरुकता फैलाने, पर्चे बांटने, राजधानी में बड़े धरनों के आयोजन और एक जन-पक्षीय ड्राफ्ट तैयार कर सरकार को सौंपने जैसी सक्रिय भूमिका निभाई.

 

महासभा ने नियमावली निर्माण प्रक्रिया में जन-भागीदारी और विशेषज्ञ सुझावों को शामिल किए जाने की सराहना की और इसे लोकतांत्रिक नीति निर्माण का आदर्श उदाहरण बताया. साथ ही केंद्र सरकार से भी झारखंड की इस समावेशी प्रक्रिया से सीख लेने की अपील की गई.

 

हालांकि, महासभा ने स्पष्ट किया कि झारखंड पंचायत राज अधिनियम (JPRA), 2001 में संशोधन के बिना यह नियमावली अधूरी रहेगी. संगठन के अनुसार जब तक JPRA में पेसा के सभी प्रावधान शामिल नहीं किए जाते, तब तक पंचायतों के अधिकार और प्रशासनिक ढांचा पूर्ववत रहेगा तथा ग्राम सभा के निर्णयों में हस्तक्षेप की आशंका बनी रहेगी.

 

चूंकि नियमावली ‘नियम’ है और JPRA ‘कानून’, ऐसे में किसी भी विरोधाभास की स्थिति में नौकरशाही ग्राम सभा के फैसलों को बाधित कर सकती है. महासभा ने सरकार से मांग की है कि स्वीकृत नियमावली को तत्काल सार्वजनिक किया जाए और सभी ग्राम सभाओं तक पहुंचाया जाए.

 

महासभा की प्रमुख मांगें इस प्रकार हैं

* JPRA में शीघ्र संशोधन कर उसे पेसा की मूल भावना के अनुरूप बनाया जाए.

* नियमावली का व्यापक प्रचार-प्रसार स्थानीय भाषाओं में हो तथा जिला प्रशासन और पुलिस को ग्राम सभा के अधिकारों पर विशेष प्रशिक्षण दिया जाए.

* अगले छह महीनों में भूमि, वन और खनिज से जुड़े सभी राज्य कानूनों को पेसा नियमावली के अनुरूप संशोधित किया जाए.

* प्रभावी क्रियान्वयन के लिए मुख्य सचिव के नेतृत्व में उच्च-स्तरीय निगरानी तंत्र गठित किया जाए.

* नियमित फीडबैक के लिए जन संगठनों और पारंपरिक नेतृत्व के साथ मासिक बैठकें आयोजित की जाएं.

* पेसा की धारा 4(o) के तहत छठी अनुसूची के व्यापक प्रावधानों को कोल्हान, संथाल परगना जैसे पारंपरिक आदिवासी स्वायत्त क्षेत्रों में लागू करने की संभावनाओं पर विचार हेतु समिति बनाई जाए.

 

महासभा ने इस ऐतिहासिक पड़ाव पर सभी संघर्षशील साथियों को बधाई देते हुए कहा कि “अबुआ दिशोम, अबुआ राज” के सपने को साकार करने तक संघर्ष जारी रहेगा. नियमावली के अधिसूचित होने के बाद महासभा अपने ड्राफ्ट से तुलना करते हुए विस्तृत टिप्पणी भी जारी करेगी.

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